किसानों को मधुमक्खी पालन से जोड़ रहे हैं रायबरेली के नितिन सिंह, खड़ी कर चुके हैं बड़ी कंपनी
मधुमक्खियाँ किसानों की सच्ची दोस्त होती हैं और धरती पर ईकोसिस्टम को सुचारु रूप से चलाये रखने में मधुमक्खियाँ एक अहम भूमिका निभाती हैं, जिनके चलते अधिकतर पौधों का परागण संभव हो पाता है। उत्तर प्रदेश के रायबरेली के नितिन सिंह आज ना सिर्फ मधुमक्खियों का पालन कर रहे हैं बल्कि वे बड़ी संख्या में किसानों को मधुमक्खी पालन से जोड़कर उनकी आय को बढ़ाने का भी काम कर रहे हैं।
नितिन इजरायल में तीन साल रहकर इस पर रिसर्च कर चुके हैं और साल 2015 में वे भारत वापस आ गए थे। भारत आकर नितिन ने मधुमक्खियों की कॉलोनी खरीदकर उनका पालन शुरू किया और आज उनकी कंपनी रॉयल हनी एंड बी फ़ार्मिंग सोसाइटी के पास 12 सौ से अधिक कॉलोनियां हैं।
अब नितिन किसानों से मिलकर उन्हें मधुमक्खी पालन के फायदे समझाते हुए उन्हें भी इससे जोड़ने का काम कर रहे हैं। फिलहाल नितिन लखनऊ में रहते हैं और उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों के साथ वे पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के किसानों के साथ भी काम कर रहे हैं।
बढ़ा रहे हैं फसल की उपज
नितिन के अनुसार अगर कोई किसान सरसों की खेती करता है और वो अपने खेत में मधुमक्खी के कुछ बक्से भी स्थापित कर सकता है, जिससे उस किसान की उपज में 30 प्रतिशत की अतिरिक्त बढ़त संभव की जा सकती है।
पाँच बक्सों की बात करें तो इसकी लागत उस किसान को करीब 30 हज़ार रुपये पड़ेगी। गौरतलब है कि मधुमक्खी पालन से जुड़ने के लिए किसान के लिए कृषि भूमि का होना अनिवार्य नहीं है।
आज नितिन अपनी कंपनी के जरिये अन्य किसानों को उनकी फसल की उपज को बढ़ाने में सीधे मदद करते हैं, ऐसे में वे अपने मधुमक्खियों के बक्सों को फसल के आधार पर अन्य किसानों को भी देते हैं। इन मधुमक्खियों के जरिये किसान शहद के साथ ही मोम आदि उत्पाद भी प्राप्त करते हैं।
तैयार करते हैं शुद्ध उत्पाद
नितिन की कंपनी आज शहद के साथ ही साबुन, लिप बाम और मोमबत्ती जैसे उत्पादों को उत्तर प्रदेश के साथ ही पूरे भारत में सप्लाई करती है। नितिन के अनुसार उनकी कंपनी द्वारा तैयार किए गए उत्पाद पूरी तरह से शुद्ध होते हैं और उनके निर्माण में किसी भी तरह के रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है।
इतना ही नहीं, नितिन आज बड़ी तादाद में किसानों के साथ सीधे जुड़कर उन्हें परामर्श भी मुहैया कराते हैं। अपने एक इंटरव्यू में नितिन ने बताया है कि कई बार प्रकृति थोड़ी मुश्किलें पैदा कर देती है।
उदाहरण के तौर पर ओलावृष्टि और बाढ़ आदि की स्थिति में सरसों के पौधों में फूल नहीं आ पाते हैं और ऐसे में मधुमक्खियों को परागण में अपनी भूमिका निभाने का मौका नहीं मिलता है। नितिन के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग इस पर बड़ा प्रभाव डाल रही है।
Edited by Ranjana Tripathi