क्या था मुलायम सिंह यादव का वो ऐतिहासिक फैसला, जिसने बदल दी एक औरत की तकदीर
यूं तो मुलायम सिंह यादव के खाते में बहुत सारी उपलब्धियां दर्ज हैं, लेकिन उनका एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला ऐसा है, जिसका जिक्र बहुत कम होता है.
मुलायम सिंह यादव नहीं रहे और इसी के साथ उत्तर प्रदेश की राजनीति के एक समूचे युग का अंत हो गया. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का सोमवार सुबह 9 बजे के आसपास गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया. वे पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे. तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर इस महीने की एक तारीख को उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया था. पिछले 55 सालों से मुख्यधारा राजनीति में सक्रिय मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश और
भारतीय राजनीति के बुनियादी स्वरूप को बदलने में केंद्रीय भूमिका निभाई है.
अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में बलात्कार पर “लड़के हैं, लड़कों से गलती हो जाती है” जैसे बयान देने वाले मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक कॅरियर के शुरुआती दौर में स्त्रियों को सबल बनाने में भी बड़ी भूमिका निभाई है. यूं तो उनके खाते में बहुत सारी उपलब्धियां दर्ज हैं, लेकिन उनका एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला ऐसा है, जिसका जिक्र बहुत कम होता है.
क्या था मुलायम सिंह यादव का वह ऐतिहासिक फैसला
14 फरवरी, 1981 को बहमई में 22 ठाकुरों को गोली से उड़ाने वाली फूलन देवी को मुलायम सिंह यादव ने बिना मुकदमा चलाए जेल से रिहा कर दिया था. उन्होंने फूलन देवी पर लगे सारे आरोप भी वापस ले लिए थे. बाद में उन्हें बौद्ध धर्म की तरफ लेकर जाने और राजनीति में लाने का श्रेय भी मुलायम सिंह यादव को जाता है.
फूलन देवी की कहानी को लेकर इस देश में कई तरह के नरेटिव रहे हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित उभार से पहले फूलन देवी देश के सवर्णों के लिए नायिका नहीं थी. यह अंतर्विरोध भी बड़ा मार्मिक है कि बात-बात पर बलात्कारियों को जान से मारने, फांसी पर चढ़ाने और उनके लिए कैपिटल पनिशमेंट की मांग करने वाला समाज फूलन देवी से सहमत नहीं रहा. आखिर फूलन देवी ने अपने लिए न्याय ही तो मांगा था.
गांव के ठाकुरों ने उन्हें कई दिनों तक एक कमरे में बंद करके उनके साथ रेप किया और पूरे गांव में नग्न अवस्था में घुमाया था. बाद में फूलन देवी ने उसी गांव में घुसकर बहमई के 22 ठाकुरों को एक लाइन से खड़ा करके गोली से उड़ा दिया था.
बहमई नरसंहार के बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. चंबल के चप्पे-चप्पे में पुलिस फूलन की खोज में लग गई, लेकिन बड़ी कोशिशों के बाद भी उन्हें पकड़ नहीं पाई. फूलन देवी को स्थानीय गरीब और निचली जाति के लोगों का समर्थन प्राप्त है. लोग उन्हें बैंडिट क्वीन कहकर बुलाने लगे थे. मीडिया में उन्हें लेकर दो तरह की तस्वीरें पेश की गईं. एक पक्ष के लिए वो नरसंहार को अंजाम देने वाली मर्डरर थीं और दूसरे के लिए एक विद्रोही, साहसी, अदम्य स्त्री, जिसने अपने आत्मसम्मान के लिए बंदूक उठा ली थी.
बहमई नरसंहार के दो साल बीतने के बाद भी फूलन देवी को पुलिस पकड़ नहीं पाई.
आत्मसमर्पण करूंगी, लेकिन सिर्फ दद्दा के सामने
1983 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने फूलन देवी से आत्मसमर्पण के लिए बातचीत शुरू की. फूलन देवी आत्मसमर्पण के लिए राजी हो गईं, लेकिन उन्होंने इसके लिए कुछ शर्तें रखी थीं.
पहली शर्त ये थी कि सिर्फ दद्दा के सामने समर्पण करेंगी. मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को वो दद्दा कहती थीं. उनका कहना था कि उन्हें उत्तर प्रदेश की पुलिस और सरकार पर भरोसा नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि वो आत्मसमर्पण पुलिस के सामने नहीं, बल्कि महात्मा गांधी और देवी दुर्गा की मूर्ति के सामने करेंगी.
इसके अलावा उनकी कुछ और शर्तें भी थीं-
1- आत्मसर्पण सार्वजनिक रूप से होगा और उनके पूरे परिवार समेत जनमा इस घटना की गवाह होगी.
2- उनके गिरोह के किसी भी सदस्य को मृत्युदंड की सजा नहीं दी जाएगी.
अर्जुन सिंह सरकार ने अपना वादा निभाया. जैसाकि उम्मीद की जा रही थी और जिसका डर खुद फूलन को भी था कि पुलिस और सरकार मिलकर आत्मसमर्पण के बहाने उनका इनकाउंटर कर सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
आत्मसमर्पण वाले दिन एक निहत्था पुलिस वाला चंबल के बीहड़ जंगल में उनसे मिलने गया. उस पुलिस वाले के साथ फूलन मध्य प्रदेश के भिंड जिले तक आईं, जहां उन्हें सार्वजनिक रूप से आत्मसमर्पण करना था. उस जगह अर्जुन सिंह के अलावा तकरीबन दस हजार लोग और तीन सौ पुलिसकर्मी मौजूद थे. फूलन के गिरोह कि अन्य सदस्यों ने भी आत्मसमर्पण किया.
साल 1994, मुलायम सिंह का फैसला और उस फैसले का विरोध
फूलन देवी ने 1983 में आत्मसर्पण किया था. उन पर डकैती, अपहरण और हत्या समेत कुल 38 आरोप थे. वह 11 साल जेल में रहीं, लेकिन 1994 में जब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने एक बड़ा फैसला लेते हुए फूलन देवी पर लगे सारे आरोप वापस ले लिए और बिना मुकदमा चलाए उन्हें जेल से रिहा कर दिया.
इस फैसले का काफी विरोध भी हुआ. यह सार्वजनिक बहस और विवाद का विषय बन गया था. अखबारों में इस तरह के संपादकीय लिखे गए कि एक मास मर्डर के आरोपी को रिहा करने से समाज में अपराध को बढ़ावा मिलेगा. एक खास जाति समूह के लोगों में भी आक्रोश रहा.
लेकिन मुलायम सिंह यादव का यह फैसला कई मायनों में ऐतिहासिक साबित हुआ. तकरीबन दो दशक बाद फूलन देवी की कहानी लिखते हुए न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक लेख में मुलायम सिंह यादव के उस फैसले को बहुत गरिमा और आदर के साथ पेश किया. मार्च, 2014 में टाइम मैगजीन ने फूलन देवी को सदी की 17 सबसे विद्रोही स्त्रियों की सूची में शुमार किया. जुलाई, 2001 में जब एक क्रोधित ठाकुर शेर सिंह राणा ने गोली मारकर उनकी हत्या की तो टाइम मैगजीन ने फिर एक लंबा लेख छापा, जिसकी हेडलाइन थी- “India's Bandit Queen Died As She Once Lived.”
1994 में जेल से रिहाई के बाद मुलायम सिंह यादव फूलन देवी को राजनीतिक में लेकर आए. समाजवादी पार्टी के टिकट से उन्होंने मिर्जापुर सीट से चुनाव लड़ा और दो बार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची. 2001 में शेरसिंह राणा ने फूलन देवी के दिल्ली स्थित आवास में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी. शेरसिंह राणा का एक रिश्तेदार बहमई में मारे गए 22 ठाकुरों में से एक था.
एक गरीब, वंचित दलित परिवार में जन्मी, 8 साल की उम्र में ब्याह दी गई, आजीवन वीभत्स हिंसा, अपराध और अन्याय का शिकार हुई एक स्त्री को मुलायम सिंह यादव ने जेल की अंधेरी नाउम्मीद दुनिया से निकालकर ढेरों वंचित, सताई हुई औरतों की आंखों की रौशनी बना दिया था. इस देश का पूर्वाग्रही, जातिवादी मीडिया और समाज जिस स्त्री को एक हत्यारी से ज्यादा देखने और समझने को तैयार नहीं था, उस स्त्री को मुलायम सिंह यादव ने विद्रोही का खिताब दिया. जिसका नाम भारत की महान विद्रोही, क्रांतिकारी स्त्रियों की सूची में कभी शामिल न किया गया, उस औरत को टाइम मैगजीन ने दुनिया की सबसे बहादुर स्त्री बताया.
आज जब मुलायम सिंह यादव नहीं रहे, लोग उनके जीवन और राजनीतिक कॅरियर से जुड़ी तमाम बातों को याद कर रहे हैं. लेकिन इस अध्याय को शायद ही कोई याद करे. लेकिन सच तो ये है कि जब भी मुलायम सिंह यादव का जिक्र होगा, फूलन देवी का जिक्र भी होगा जरूर.