कभी रिक्शा चालक रहे इस शख्स ने अपनी बनाई मशीन को दुनिया भर में बेच कमाए लाखों रुपये
1970 के दशक में धर्मबीर काम्बोज अपनी किशोरावस्था में थे, जब परिवार की आर्थिक तंगी के चलते उन्हें अपनी पढ़ाई बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
हरियाणा के यमुनानगर के दामला गांव के रहने वाले धर्मबीर ने तब अपने परिवार के खेत और जड़ी-बूटियों के बागानों की देखभाल की। हालांकि इससे उन्हें परिवार की जरूरतों और अपनी बीमार मां और बहन के इलाज के लिए पर्याप्त कमाई करने में मदद नहीं मिल रही थी।
धर्मबीर ने कुछ वर्षों तक अपने खेत में काम करना जारी रखा लेकिन इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हुआ।
धर्मबीर ने SMBStory के साथ बातचीत में कहा,
“मेरी माँ ने अपनी बीमारी के कारण दम तोड़ दिया। मेरी बहन को जीवित रहने के लिए इलाज की जरूरत थी लेकिन हमारे पास पैसे नहीं थे। मेरी बेटी का जन्म भी उसी समय हुआ था और मुझे अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसों की सख्त जरूरत थी।”
एक समय में बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा वह आदमी अब अपनी पेटेंट मशीनों को 15 देशों को बेच रहा है और सालाना 67 लाख रुपये का राजस्व कमा रहा है। लेकिन वह इतनी दूर तक कैसे जा पाये? धरमबीर इसका श्रेय लचीलेपन और मुखरता को देते हैं।
फर्श से अर्श तक
धरमबीर 80 के दशक की शुरुआत में नौकरी की तलाश में दिल्ली आ गए। लेकिन डिग्री के बिना उनके प्रयास व्यर्थ थे और उन्होंने जीवित रहने के लिए कई छोटे-मोटे काम किए।
"जब मुझे कुछ नहीं मिला तो मैंने दिल्ली के खारी बावली इलाके में रिक्शा में चलाना शुरू कर दिया।"
एक दिन धरमबीर ने देखा कि कुछ यात्री दिल्ली के स्थानीय बाजारों से प्रोसेस्ड फल उत्पाद खरीदने के लिए मोटी रकम का भुगतान कर रहे थे।
यह देखकर धरमबीर क आश्चर्य हुआ कि उनके गाँवों में ये फल बड़ी मात्रा में उगाए जाते थे और औने-पौने दामों पर बेचे जाते थे। इन्हें इतनी बड़ी रकम पर क्यों बेचा जा रहा है? उन्होंने जैम और पुडिंग जैसे फलों से बने उत्पादों को भी देखा जो अधिक कीमत पर बेचे जाते थे।
जीवन के इस चरण ने धर्मबीर को जड़ी-बूटियों, फलों और अर्क की बाजार में बढ़ती मांग को समझने में मदद की।
धर्मबीर ने रिक्शा चालक के रूप में अपना पेशा जारी रखा जब तक कि 1987 में उनके साथ एक सड़क दुर्घटना नहीं हो गई। वह गंभीर रूप से घायल हो गए और बिस्तर पर पड़े थे। इन विपरीत परिस्थितियों से विचलित हुए धर्मबीर ने अपने गांव वापस आने और खेती फिर से शुरू करने का फैसला किया।
लेकिन दिल्ली में भारी दामों पर बेचे जा रहे फलों और उत्पादों का ख्याल उनके मन में बना रहा और उन्होंने अपना शोध शुरू किया।
इन वर्षों में उन्होंने जैविक खेती से संबंधित कई प्रयोग शुरू किए और बाद में अपनी भूमि पर एक छोटी कृषि प्रयोगशाला स्थापित की।
मशरूम की खेती, वर्मी कम्पोस्टिंग और खेती के अन्य तरीकों में उनके कार्य ने उन्हें कई प्रशंसाएं दिलाईं। हरियाणा के खेतों में स्ट्रॉबेरी और अन्य दुर्लभ फलों की उनकी खेती ने उन्हें और पहचान दिलाई।
2004 में धर्मबीर को हरियाणा के बागवानी विभाग के माध्यम से राजस्थान की यात्रा करने का अवसर मिला। इस यात्रा के दौरान उन्होंने एलोवेरा की फसल और औषधीय मूल्य उत्पादों को प्राप्त करने के लिए इसके अर्क के बारे में जानने के लिए किसानों के साथ बातचीत की।
अपने गांव लौटने के बाद धर्मबीर एलोवेरा जेल और अन्य प्रोसेस्ड उत्पादों को एक आकर्षक उद्यम के रूप में बेचने के तरीकों की तलाश कर रहे थे। 2002 में वह एक बैंक प्रबंधक से मिले जिन्होंने उन्हें खाद्य उत्पादों के प्रसंस्करण के लिए आवश्यक मशीनरी के बारे में शिक्षित किया, हालांकि उस मशीन की कीमत 5 लाख रुपये थी।
धर्मबीर कहते हैं,
“कीमत बहुत अधिक थी लेकिन मैंने हार नहीं मानी और मशीन को इन-हाउस विकसित करने के बारे में सोचा। 25,000 रुपये के निवेश और आठ महीने से अधिक के प्रयास के बाद बहुउद्देशीय प्रसंस्करण मशीन का मेरा पहला प्रोटोटाइप बाहर आ गया था।"
इसके बाद उन्होने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
सामाजिक प्रभाव पैदा करना
धरमबीर के इनपुट द्वारा डिजाइन और विकसित बहुउद्देशीय प्रोसेसिंग मशीन ने अपनी तरह की पहली, पोर्टेबल, यूजर के अनुकूल मशीन के रूप में व्यापक मान्यता और प्रसिद्धि प्राप्त की है जिसका उपयोग विभिन्न कार्यों जैसे कि चूर्णन, मिश्रण, स्टीमिंग, प्रेशर-कुकिंग के साथ ही रस, तेल व जेल निकालने के लिए भी किया जाता है। यह फलों और जड़ी-बूटियों की 100 से अधिक किस्मों को प्रोसेस कर सकता है।
इस मशीन के लिए उन्हें नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन से पेटेंट भी मिला है।
इन मशीनों को पूरे भारत के साथ ही अमेरिका, इटली, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया, केन्या, नाइजीरिया, जिम्बाब्वे, युगांडा सहित 15 देशों में बेचकर धरमबीर साथी किसानों और ग्रामीण सूक्ष्म-उद्यमियों को फलों और हर्बल फसलों को संसाधित करके बेहतर लाभ प्राप्त करने में सहायता की है।
उन्होंने देश भर में 7,000 से अधिक लोगों के लिए मशीनों को संचालित करने के तरीके पर कार्यशालाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का भी आयोजन किया है। इनमें से 4,000 से अधिक महिलाएं शामिल थीं।
चुनौतियां और आगे का रास्ता
कोरोना महामारी धर्मबीर के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक थी। वित्तीय और साजो-सामान संबंधी चुनौतियाँ थीं और उत्पादन भी रुक गया था। जमीनी स्तर पर लोगों के साथ संवाद करना भी मुश्किल था।
वे कहते हैं,
“इस समय सीईईडब्ल्यू-विलग्रो पहल पॉवरिंग लाइवलीहुड से जो समर्थन मिला वह वास्तव में मददगार था। वित्तीय सहायता ने हमें अपने संचालन का प्रबंधन करने में मदद की और मेंटरशिप ने हमारी व्यावसायिक योजना को कारगर बनाने, मशीनों को अधिक कुशल बनाने और हमारी उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में मदद की।”
धर्मबीर अब भारत के भीतर और विदेशों में भी अपनी पैठ बनाने की सोच रहे हैं। वह भविष्य में कम से कम 100 देशों में अपनी फूड प्रोसेसिंग मशीनों को देखने की इच्छा रखते हैं।
Edited by Ranjana Tripathi