जीतने के लिए खेलना: मुख्यधारा में आया ऑनलाइन गेमिंग, 2025 तक देश में होंगे 65.7 करोड़ गेमर्स
कोरोना महामारी के दौरान भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कैजुअल गेमिंग मार्केट बन गया है। लूडो किंग और तीन पत्ती जैसे गेम्स की आपार सफलता और लोकल गेमिंग स्टूडियो की बढ़ती संख्या के चलते वित्त वर्ष 2021 में ऑनलाइन गेमिंग का रेवेन्यू बढ़कर 136 अरब रुपये पहुंच गया।
भारत में ऑनलाइन गेमिंग का कारोबार सालों से एक बिंदु पर अटका हुआ था। आखिरकार इस महामारी में भारत ने वह बिंदु पार कर लिया। 2016 में 4जी डेटा क्रांति आने के बाद से ही देश में गेमर्स की संख्या लगातार बढ़ रही थी। हालांकि महामारी के दौरान ऑनलाइन गेमिंग मुख्यधारा के मनोरंजन के एक विकल्प के रूप में उभरा।
2020 में, ऑनलाइन गेमिंग भारत के मीडिया और मनोरंजन (M&E) क्षेत्र में सबसे तेजी से बढ़ने वाला सेगमेंट था।
केपीएमजी की एक रिपोर्ट के अनुसार, M&E के उपभोग पर एक दिन में खर्च किए गए समय में गेम का हिस्सा बढ़ रहा है और यह इसमें मनोरंजन के पारंपरिक रूपों (जैसे टीवी, रेडियो, सिनेमा) के साथ मुकाबला करता है।
जून 2021 की रिपोर्ट में कहा गया है,
"गेमचिलिंग एक ऐसी चीज है जो पिछले 12 महीनों में महामारी के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में सामने आई है। इसके चलते ऑनलाइन गेमिंग का कारोबार एक गंभीर अवसर में बदल गया है और कॉरपोरेट्स और निवेशकों के बीच जबरदस्त दिलचस्पी पैदा कर रहा है।"
ऑनलाइन गेमिंग के ग्रोथ की कहानी
भारत में मार्च 2018 में 25 करोड़ गेमर्स थे, जो जून 2020 में बढ़कर 43.3 करोड़ हो गए। ऐसा लॉकडाउन में मनोरंजन के विकल्पों की कमी, तकनीक-प्रेमी युवा आबादी, स्थानीय स्टूडियो से अच्छी क्वॉलिटी वाले खेलों की सप्लाई, 4जी की बढ़ती पैठ और डिजिटल पेमेंट के बुनियादी ढांचे के विस्तार जैसे कारकों के चलते हुआ।
रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2025 तक गेमर्स की संख्या बढ़कर 65.7 करोड़ पहुंचने का अनुमान जताया गया है।
लॉकडाउन के बाद मोबाइल गेम पर बिताया जाने वाला साप्ताहिक समय भी 2.5 घंटे (या स्क्रीन समय का 11 प्रतिशत) हो गया, जो कोरोना काल के पहले 4.1 घंटे (या स्क्रीन समय का 15 प्रतिशत) था। मार्च 2020 से शीर्ष 100 मोबाइल गेम्स के लिए एमएयू 10-15 प्रतिशत अधिक है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि गेम डाउनलोड, इन-ऐप खरीदारी, डीएयू से सशुल्क उपयोगकर्ताओं में रूपांतरण आदि सहित लगभग सभी दूसरे पैमाने भी अब "लॉकडाउन के पहले के समय की तुलना में काफी ऊंचे स्तर पर काम कर रहे हैं, जो अब नया समान्य हो गया है।"
केपीएमजी के भारत में मीडिया एंड टेलीकॉम वर्टिकल के पार्टनर और हेड ऑफ टेक्नोलॉजी सत्य ईश्वरन ने बताया, “पिछले पांच सालों में, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में बढ़ोतरी के साथ-साथ प्रमुख टाइटल्स की उपलब्धता के कारण, भारत का ऑनलाइन गेमिंग सेगमेंट अब एक गंभीर बिजनेस बन गया है। साथ ही यह गेमिंग बाजार अब पूरी तरह से मोबाइल पर फोकस है।"
वित्त वर्ष 2021 में घरेलू ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र का मूल्य 136 अरब रुपये था और वित्त वर्ष 2025 तक इसके 21 प्रतिशत की सालाना ग्रोथ (सीएजीआर) के सात बढ़कर 290 अरब रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।
निवेशकों की धारणा में भी बदलाव आया है। सत्या ने कहा, "हमें कॉरपोरेट्स और निवेशकों की गहरी दिलचस्पी के बारे में पता चला है, जो ऑनलाइन कैजुअल गेमिंग के कारोबार में अवसरों की लहर की सवारी करना चाहते हैं।"
मेपल कैपिटल एडवाइजर्स के अनुसार, अगस्त 2020 और जनवरी 2021 के बीच, गेमिंग सेक्टर में 544 मिलियन डॉलर का पूंजी निवेश देखा गया। इसके विपरीत, 2014 से 2020 के बीच, भारतीय गेमिंग स्टार्टअप्स में सिर्फ 350 मिलियन डॉलर का निवेश हुआ था।
इस वर्ष भारत के पहले गेमिंग-केंद्रित फंड लुमिकाई का भी शुभारंभ हुआ, जो लूडो किंग जैसे स्थानीय विजेताओं को दुनिया के सामने लाता है।
लुमिकाई के सह-संस्थापक और जनरल पार्टनर सलोन सहगल ने योरस्टोरी को कुछ दिनों पहले हुई एक बातचीत में बताया, "हम गेमिंग के लिए समर्पित एक माइक्रो वीसी हैं। हम बड़ी सफलताओं के के लिए जरूरी बहुत सारे नवाचार, रचनात्मकता और प्रतिभा को अनलॉक करने के लिए पूंजी निवेश को जारी रखना चाहते हैं।"
बढ़ी हुई फंडिंग ने भी कई स्थानीय गेमिंग कंपनियों को अपना स्तर बढ़ाने में मदद की। इसके अतिरिक्त, उपयोगकर्ताओं की संख्या में बढ़ोतरी और लंबे समय तक जुड़ाव ने उन्हें ऑपरेटिंग मार्जिन में सुधार करते हुए ग्राहक अधिग्रहण लागत को 60-70 प्रतिशत तक कम करने में मदद की।
कैजुअल गेमिंग का चमकीला उदय
कैजुअल गेमिंग ने खासतौर से इस क्षेत्र को अब तक परिभाषित किया है।
भारत ने गेमिंग की एक पूरी पीढ़ी (जापान, दक्षिण कोरिया, यूएस, यूके जैसे विकसित बाजारों में लोकप्रिय पीसी और कंसोल-आधारित गेम) को छोड़ दिया और मोबाइल गेमिंग को अपना लिया। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके लिए आपको बहुत अधिक हार्डवेयर और गेमिंग टाइटल्स की जरूरत नहीं है।
सेंसर टॉवर के अनुसार 2020 में, चीन के बाद दुनिया में दूसरा सबसे अधिक कैजुअल गेमिंग का डाउनलोड भारत में हुआ। भारत में 7.3 अरब डाउनलोड (2020 की पहली से तीसरी तिमाही के दौरान) था, जो पूरी दुनिया का कुल मोबाइल गेम डाउनलोड का 17 प्रतिशत था।
भारत में 42 करोड़ गेमर्स कैज़ुअल मोबाइल गेम खेलते हैं, और वित्त वर्ष 2021 में इस सेगमेंट की कीमत 60 अरब रुपये थी, जो कुल गेमिंग रेवेन्यू का 44 प्रतिशत था। वित्त वर्ष 2025 तक इसके 29 प्रतिशत बढ़कर 169 अरब रुपये होने का अनुमान है।
केपीएमजी के भारत में मीडिया एंड एंटरटेनमेंट के पार्टनर और हेड गिरीश मेनन ने बताया,
“ऑनलाइन कैज़ुअल गेमिंग ने 2020 में खपत और जुड़ाव के साथ अपने सर्वकालिक उच्च स्तर को छुआ। इस सब-सेगमेंट में ग्रोथ की आपार क्षमता है, बेहतर आमदनी से डेवलपर और पब्लिशर ईकोसिस्टम के विकास में मदद मिलती है, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने के खिलाड़ियों के उभरने की संभावना है।”
कैज़ुअल गेमिंग के ग्रोथ की शुरुआत मुख्य रूप से लूडो किंग और तीन पत्ती ने की थी, जो ऐप स्टोर चार्ट में शीर्ष पर प्रदर्शित होने वाले एकमात्र भारतीय गेमिंग टाइटल थे। केपीएमजी ने एक नोट में कहा, "लूडो किंग [गैमेटियन टेक्नोलॉजीज द्वारा विकसित] ने खिलाड़ियों की एक नई आबादी (45 वर्ष और पुराने) को आकर्षित किया जो अपेक्षाकृत कम था, और गेमिंग को मुख्यधारा के मनोरंजन और सोशल मीडिया विकल्प में बदल दिया।"
इसके अलावा, अधिकांश कैजुअल गेम्स ने समूह की खपत को बढ़ाने और यूजर्स का जुड़ाव बढ़ाने के लिए मल्टीप्लेयर सुविधाओं, चैट कार्यक्षमता, लीडरबोर्ड और अन्य सामाजिक तत्वों को जोड़ा। कैजुअल गेमिंग एआरपीयू के वित्त वर्ष 2025 तक 268 रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।
देसी स्टूडियो और स्थानीयकरण
खेलों के बढ़ते स्थानीयकरण और वैश्विक मंच पर घरेलू स्टूडियो के उदय ने भारत में ऑनलाइन गेमिंग के विकास में अहम भूमिका निभाई है।
यहां ऑक्ट्रो (जो तीन पत्ती प्रकाशित करता है और गेमर्स को हिंदी, गुजराती, मराठी, आदि में खेलने का विकल्प प्रदान करता है), गैमेटियन टेक्नोलॉजीज (जो भारत के सबसे अधिक डाउनलोड किए जाने वाले गेम लूडो किंग का मालिक है), नाजारा टेक्नोलॉजीज (जिसने जनवरी में अपना आईपीओ लॉन्च किया और छोटा भीम, मोटू पतलू जैसे लोकप्रिय गेम पब्लिश करती है), मूनफ्रॉग (जिसे स्वीडन स्थित स्टिलफ्रंट द्वारा अधिग्रहित किया गया), जियोगेम्स (जो डब्ल्यूडब्ल्यूई मेहेम, रियल स्टील बॉक्सिंग चैम्पियंस जैसे एक्शन गेम का मालिक है) सहित कई अन्य पब्लिशर्स मैदान में हैं।
दूसरे उल्लेखनीय घरेलू स्टूडियो में माइंडयोरलॉजिक स्टूडियो शामिल हैं, जो क्षेत्रीय भाषाओं में एनिमेटेड शब्द और पहेली गेम विकसित करता है। उनके सबसे लोकप्रिय टाइटल, आरा दरवाजे और पहेली, ने 2.5 मिलियन से अधिक डाउनलोड दर्ज किए हैं।
इसके अलावा 'nCore गेम्स' भी मैदान हैं, जिन्होंने भारत का पहला बैटल रॉयल गेम FAU-G ( पबजी पर बैन लगने के बाद विकल्प के तौर पर लॉन्च हुआ गेम) लॉन्च किया और काफी सुर्खियां बटोरी। FAU-G की स्थानीय कहानी भारत और चीन के बीच गलवान घाटी संघर्ष पर आधारित है।
इस सेक्टर में बढ़ती दिलचस्पी को इससे भी समझा जा सकता है कि पिछले स्वीडन की दिग्गज गेमिंग कंपनी एमटीजी ने 360 मिलियन डॉलर में प्लेसिंपल की खरीद की। एमटीजी के ग्रुप प्रेसिडेंट और सीईओ मारिया रेडिन ने एक बयान में कहा, "प्लेसिंपल एक तेजी से बढ़ता और अत्यधिक लाभदायक गेम स्टूडियो है जिसने खुद को फ्री-टू-प्ले वर्ड गेम्स के अग्रणी वैश्विक डेवलपर्स में से एक के रूप में स्थापित किया है, जो एक रोमांचक नई शैली है।"
गेमिंग के बढ़ते स्थानीयकरण के साथ, अधिक से अधिक टियर II और III शहरों में सक्रिय गेमर्स की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
ओपन सिग्नल की अक्टूबर 2020 में आई एक रिपोर्ट से पता चला है कि अहमदाबाद भारत का शीर्ष गेमिंग बाजार है और शीर्ष 10 में मौजूद टियर I के सिर्फ दो शहरों में से एक था (दूसरा मुंबई था)। बाकी में वडोदरा, सूरत, भोपाल, ग्वालियर, इंदौर और राजकोट जैसे टियर II और III शहर शामिल थे।
केपीएमजी के अनुसार, "लूडो किंग और तीन पत्ती जैसे गेमिंग टाइटल्स की सफलता ने दिखाया है कि टारगेट बाजार के स्थानीयता के आधार पर जो खेल विकसित होते हैं, उनके पास एक मुनाफा कमाने वाले व्यवहारिक मॉडल बनाने के साधन थे।"
इसके अलावा, पूरी तरह स्थानीय मार्केट पर फोकस गेमिंग प्लेटफॉर्म को भी ग्रामीण भारत में अच्छा रिस्पॉन्स मिलता है। जैसे विंजो (जहां 80 प्रतिशत उपयोगकर्ता गैर-अंग्रेजी गेम खेलते हैं), जूपी, ईवॉर गेम्स, बैकबक आदि।
गिरीश ने बताया, "उपभोक्ता खर्च और विज्ञापन-आधारित मुद्रीकरण दोनों में मजबूत ग्रोथ दिखने की संभावना है। भारत की मैच्योरिटी कर्व में उछाल और वैश्विक स्तर के टाइटल्स की सप्लाई के साथ, पुरस्कृत/प्रोत्साहित विज्ञापनों में बढ़ोतरी और गेमिंग खिताबों का स्थानीयकरण अहम पहलू है।"
मुनाफा कमाने की चुनौती बरकरार
पिछले 12 से 15 महीनों में गेमिंग की जबरदस्त ग्रोथ और डिजिटल भुगतान की बढ़ती सुलभता के बावजूद, कम पैसे बनाना इस क्षेत्र की चुनौती बनी हुई है। भारत में ऑनलाइन कैज़ुअल गेमिंग के लिए एवरेज रेवेन्यू पर पेइंग यूजर (एआरपीपीयू) वित्त वर्ष 2021 में 2 डॉलर से कम था, जो दुनिया में सबसे कम है। यह एक ऐसे बाजार का प्रदर्शन खराब करता है जिसके पास वैश्विक स्तर पर कैजुअल गेमर्स का दूसरा सबसे बड़ा आधार है।
ऐसा मुख्य रूप से गेमिंग कंसोल की काफी कम पहुंच के कारण है, जिसने परंपरागत रूप से दूसरे देशों के बाजारों में गेम के लिए अधिक भुगतान करने की संस्कृति को स्थापित किया है।
केपीएमजी ने कहा, "इंडोनेशिया, मलेशिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे गेमिंग बाजारों की तुलना में भारत के गेमिंग मार्केट में एआरपीयू कम है। जबकि इन देशों की प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत से कम है।"
हालांकि, गेम पब्लिशर्स इस समस्या को हल कर रहे हैं। इसके चलते विज्ञापन-चालित मुद्रीकरण मॉडल का उभार हो रहा है। लगभग 54 प्रतिशत गेमर पुरस्कृत करने वाले विज्ञापनों को चुनते हैं - जहां वे अगले स्टेप पर जाने के लिए वीडियो देखते हैं और यह उनका खेलने का पसंदीदा मोड है।
गेमिंग ऐप्स पर समय की बढ़ती हिस्सेदारी के साथ, मार्केटिंग और विज्ञापन इंडस्ट्री के लोग कैजुअल गेमिंग को अपने टारगेट दर्शकों तक पहुंचने के लिए एक व्यवहारिक चैनल के रूप में देख रहे हैं। वित्त वर्ष 2021 में कैजुअल गेमिंग के राजजस्व 60 प्रतिशत हिस्सा विज्ञापन से आया था।
रिपोर्ट में कहा गया है, "मुद्रीकरण के साधन के रूप में विज्ञापन पर निर्भरता भारत के लिए अद्वितीय बनी हुई है और इसके निकट से मध्यम अवधि में दूर होने की संभावना नहीं है। क्योंकि फ्री-टू-प्ले गेम्स खपत पर हावी हैं।"
इस बीच, इन-ऐप खरीदारी की कैजुअल गेमिंग के राजस्व में (आईएपी) ने वित्त वर्ष 2021 में 40 प्रतिशत या 24 अरब रुपये की हिस्सेदारी रही।
हालांकि मुद्रीकरण का यह तरीका 30 प्रतिशत की सीएजीआर से बढ़ रहा है और मोबाइल पर मिड-कोर शीर्षकों की बढ़ती संख्या के पीछे वित्त वर्ष 2025 तक 70 अरब रुपये को पार कर सकता है। गेमर आमतौर पर मील के पत्थर, नए स्तर, बैज और अन्य प्रीमियम सुविधाओं को अनलॉक करने के लिए IAP बनाते हैं।
भविष्य के रुझान: ईस्पोर्ट्स और क्लाउड गेमिंग
अगले पांच वर्षों में ईस्पोर्ट के तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। ऐसा इसलिए क्योंकि स्पॉन्सरशिप और प्रकाशकों की दिलचस्पी इसमें बढ़ी है और इवेंट आयोजकों से लेकर भाग लेने वाली टीमों तक की मूल्य श्रृंखला में नए खिलाड़ियों का प्रवेश हुआ है।
मार्च में, रिलायंस जियो और मीडियाटेक ने गेमिंग मास्टर्स नामक एक 70-दिवसीय ईस्पोर्ट्स टूर्नामेंट का आयोजन किया, जिसमें 43,000 से अधिक टीमों ने 12.5 लाख रुपये के पुरस्कार पूल के लिए प्रतिस्पर्धा की।
वित्त वर्ष 2020 में भारत में लगभग 10 से 15 मिलियन ईस्पोर्ट्स दर्शक थे, जिसके वित्त वर्ष 2025 तक 10 गुना बढ़कर से 130 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2021 में यह सेगमेंट 1.7 अरब रुपये का था, जिसके वित्त वर्ष 2025 तक बढ़कर 5.7 अरब रुपये तक पहुंचने की संभावना है।
ईस्पोर्ट्स को आधिकारिक तौर पर भारतीय ओलंपिक संघ द्वारा मान्यता दी गई है, साथ ही 2022 एशियाई खेलों में एक पदक कार्यक्रम के रूप में जोड़ा गया है। इससे देश में निर्यात मूल्य श्रृंखला में मजबूत वृद्धि होने की उम्मीद है।
अगले कुछ वर्षों में 5G तकनीक के मुख्यधारा बनने के साथ, भारत में भी क्लाउड गेमिंग क्रांति के आने की संभावना है। खासकर हार्डवेयर में निवेश करने की इसकी सीमित क्षमता के कारण।
रिपोर्ट के अनुसार, "व्यावसायिक उपभोक्ता के नजरिए से 5G का लॉन्च क्लाउड गेमिंग को अपनाने के लिए एक नया मोड़ हो सकता है।"
क्लाउड गेमिंग से सदस्यता-आधारित आर्थिक मॉडल का उदय भी हो सकता है। द गेमिंग प्रोजेक्ट, डूफी और वोर्टेक्स जैसी स्थानीय क्लाउड गेमिंग सेवाओं ने पहले ही अनलिमिटेड-डे पास से लेकर वार्षिक योजनाओं तक की सदस्यता की पेशकश शुरू कर दी है।
केपीएमजी के गिरीश ने कहा, “क्लाउड गेमिंग जैसी तकनीकों के साथ, हम आने वाले वर्षों में ऑनलाइन गेमिंग सेगमेंट को देश के M&E इंडस्ट्री का सबसे बड़ा सेगमेंट बनने की परिकल्पना करते हैं, जो भारत की एक अरब की डिजिटल आबादी की समय और वॉलेट दोनों लेगा।"
Edited by Ranjana Tripathi