पीएम मोदी को भी मुग्ध कर चुकी है दिव्यांग ऑर्टिस्ट पूनम राय की पेंटिंग
उस अपराजिता के ज़ज्बे को भला कौन नहीं सलाम करना चाहेगा, जो ससुराल में तीसरी मंजिल से फेक दिए जाने के बाद 17 साल बिस्तर पर पड़ी रहीं और हमेशा के लिए कमर से नीचे का सुन्न होने पर भी वाकर से चल पड़ीं। वह शख्सियत हैं वाराणसी की संघर्षशील ऑर्टिस्ट पूनम राय, जिनकी पेंटिंग पीएम को भी मुग्ध कर चुकी है।
एक छोटे-से कैनवास पर एक साथ 648 महिलाओं की विभिन्न दुखांतक मुद्राएं उकेरने वाली वाराणसी की दिव्यांग आर्टिस्ट पूनम राय के हौसलों की उड़ान जितनी ऊंची है, एक भयानक हादसे से गुजर चुकी उनकी ज़िन्दगी की दास्तान उतनी ही अकथनीय, जिसे बयान करने में शब्द भी अपर्याप्त लगते हैं। पिछले साल उनकी इस नायाब कलाकृति को 'वर्ल्ड रिकार्ड इंडिया' में जगह मिल चुकी है।
पूनम डोमेस्टिक वायलेंस सरवाइवर हैं। पेंटिंग में एकाधिक रिकॉर्ड बनाने के साथ ही अनेक पुरस्कारों से सम्मानित राय की जिंदगी को तो एक हादसे ने बर्बाद करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन वक़्त से जूझती हुई वह एक बार फिर अपनी कला धर्मिता के जुनून में सृजन की राह चल पड़ी हैं। उनके शरीर में कमर से नीचे का हिस्सा उस हादसे ने सुन्न कर दिया था। वह कहती भी हैं, मेरी कहानी जहाँ से शुरू होती है, उसका कोई अंत नहीं। पूनम कवि दुष्यंत कुमार की पंक्तियां अक्सर दुहराती हुई कहती हैं कि 'इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है, नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है।' आज उन्होंने पेंटिंग में ही अपना संसार बसा लिया है।
पूनम की पढ़ाई-लिखाई बीएचयू से हुई है। उनकी शादी वर्ष 1996 में पटना के युवक से हुई थी। शादी के बाद पता चला कि लड़का तो सिर्फ 12वीं पास है। एक दिन दहेज के आरोपी ससुराल वालों ने उनको तीसरी मंजिल से नीचे फेंक दिया। स्पाइनल इंजरी हो गई। बीएचू से पेंटिंग में ऑनर्स पूनम की उस समय दो महीने की एक बेटी भी थी। उस दुखद वाकये के बाद 17 साल तक तक वह अस्पताल से लेकर अपने मायके तक पूरी तरह बेड पर पड़ी रहीं लेकिन उन्होंने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी है।
वर्ष 2014 से पूनम वॉकर के सहारे चलने लगीं। स्वस्थ होने के बाद उन्होंने अपने पिता बिंदेश्वरी राय के नाम पर बीआर फाउंडेशन की स्थापना की, जिसमें उनके बड़े भाई नरेश कुमार राय का अहम योगदान रहा। वह इस साल लोकसभा चुनाव से पहले फरवरी 2019 में वाराणसी पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी अपनी एक पेंटिंग 'फेज़ ऑफ़ फेस' भेट कर चुकी हैं।
आपबीती सुनाती हुई पूनम राय कहती हैं कि हादसे के दिनो में पटना के एक डॉक्टर ने उनसे कहा था कि वह कभी चल नहीं पाएंगी, अब हमेशा अपंग रहेंगी लेकिन उस घटना में अपने पैरों की ताकत खो देने के बाद उन्होंने अपने अंदर के कलाकार को जिंदा किया। आज वह अपनी मजबूत इच्छाशक्ति के दम पर वाकर के सहारे कहीं भी आ जा सकती हैं। अब तो उनके पिता भी इस दुनिया में नहीं हैं। वह कहती हैं कि एक स्त्री को इतना भी कमजोर नहीं समझना चाहिए कि वह स्वयं को सुरक्षित नहीं रख सकती है। बस हमे खुद पर गहरा आत्मविश्वास होना चाहिए। इसके लिए चित्रकला भी एक सशक्त माध्यम है।
पूनम वाराणसी की महिलाओं को पेंटिंग और योगा सिखाती हैं। डांस सिखाने के लिए उन्होंने अलग शिक्षक नियुक्त कर रखा है। वह उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से संचालित समर कैंप में ड्राइंग क्लासेज ले चुकी हैं। अभी तक उनको न तो सरकार से कोई मदद मिली है, न वह अपने हुनर सिखाने की लोगों से कोई फीस लेती हैं। वह सिर्फ अपनी पेंटिंग बेचकर कुछ अर्जित कर लेती हैं, उसमें से ही वह बच्चों को गिफ्ट आदि भी देती रहती हैं।
'वर्ल्ड रिकार्ड ऑफ़ इंडिया' से पुरस्कृत उस नायाब कलाकृति में उन्होंने 17 दिनों में 6 फुट 8 इंच चौड़े, 6 फुट लम्बे कैनवास पर तीन-तीन इंच के 648 चेहरे उकेरे थे। यह हुनर उनको तीन बार वर्ल्ड रिकार्ड बना चुके डॉ जगदीश पिल्लई से मिला है। कैनवास पर ब्रश-पेंसल और रुई से तीन-तीन इंच के 648 चेहरे सहेजना कोई आसान काम नहीं था, जिसे उनको बेड पर बैठे-बैठे बनाना पड़ा।
डॉ पिल्लई बताते हैं कि वह पूनम राय के फ्री आर्ट क्लासेज में अक्सर जाया करते थे। उनका सृजन देखकर एक दिन उन्होंने उनसे कहा कि वह अब एक ऐसी मास्टरपीस बनाएं, जिससे उनकी अमिट पहचान बने। उन्होंने रात-रात भर जाग कर ऐसा कर दिखाया और आज उनका नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ इंडिया में दर्ज है। पिछले साल मनाली में आर्टजकोजी की ओर से आयोजित कार्यशाला में 50 फीट लंबे, चार फीट ऊंचे कैनवास पर तीन घंटे के अंदर बनाई गई पेटिंग के लिए उनको मैराथन लॉंगेस्ट पेंटिंग अवार्ड से नवाजा गया। इस पेंटिंह में उनकी टीम के दयानंद, रबींद्रनाथ दास, शालू वर्मा, बबिता राज, धनंजय, धर्मेंद शर्मा और शेफाली की महत्वपूर्ण सहभागिता रही। पूनम को दिल्ली की विसुअल आर्ट गैलरी में प्रथम पुरस्कार मिल चुका है।