कंपनी कानून में संशोधन की तैयारी, गैर-सूचीबद्ध कंपनियों को भी देना होगा तिमाही, छमाही लेखा-जोखा
कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय कंपनी कानून में ऐसा प्रावधान शामिल करने करने के लिये संशोधन करने पर विचार कर रहा है जिसके तहत गैर सूचीबद्ध कंपनियों को हर तीन या छह महीने में वित्तीय लेखे-जोखे का ब्योरा जमा कराने की जरूरत होगी।
गैर-सूचीबद्ध कंपनियों को भी सरकार के पास अपना तिमाही या छमाही वित्तीय लेखा जोखा जमा कराना पड़ सकता है। इसके लिये कंपनी कानून में प्रावधान किया जा सकता है। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।
देश में 11 लाख से अधिक गैर- सूचीबद्ध कंपनियां सक्रिय हैं। यह प्रस्ताव इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि कई बड़ी गैर सूचीबद्ध कंपनियों में भी वित्तीय संकट से जूझना पड़ा है। वर्तमान में गैर- सूचीबद्ध कंपनियों को तिमाही अथवा छमाही आधार पर वित्तीय लेखा- जोखा सौंपने की जरूरत नहीं होती है।
कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय कंपनी कानून में ऐसा प्रावधान शामिल करने करने के लिये संशोधन करने पर विचार कर रहा है जिसके तहत गैर सूचीबद्ध कंपनियों को हर तीन या छह महीने में वित्तीय लेखे-जोखे का ब्योरा जमा कराने की जरूरत होगी।
अधिकारी ने पीटीआई-भाषा से कहा,
“इस पूरी कवायद के पीछे मकसद प्रणालीगत दृष्टि से महत्वपूर्ण कंपनियों के वित्तीय ब्योरे को अद्यतन करना है।”
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के नियमनों के तहत शेयर बाजारों में सूचीबद्ध कंपनियों को प्रत्येक तीन माह में अपने वित्तीय ब्योरे का खुलासा करना होता है।
वहीं गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के मामले में अभी तिमाही या छमाही आधार पर वित्तीय लेखे-जोखे का ब्योरा देने की जरूरत नहीं होती।
अधिकारी ने कहा,
“किस श्रेणी की गैर-सूचीबद्ध कंपनियों को तिमाही या छमाही आधार पर वित्तीय ब्योरा देने की जरूरत होगी, इसके लिये सीमा तय की जायेगी। इस पर फैसला किया जाएगा।”
इसे लागू करने के लिए कंपनी कानून में संशोधन करने की जरूरत होगी। वर्तमान में किसी भी गैर सूचीबद्ध कंपनी को वित्त वर्ष पूरा होने के छह महीने बाद तक मंत्रालय के पास वित्तीय ब्योरा और वार्षिक रिटर्न जमा कराने की जरूरत होती है।
वित्त वर्ष की समाप्ति के बाद कंपनी को छह माह के भीतर अपनी वार्षिक आम बैठक (एजीएम) का आयोजन करना होता है और इस बैठक के 30 दिन के भीतर वित्तीय वक्तव्य को सरकार को सौंपना होता है। एजीएम के 60 दिन के भीतर कंपनी को वार्षिक रिटर्न जमा करानी होती है।
(Edited by रविकांत पारीक )