100 लोगों के साथ खेले जा सकने वाले शतरंज का आविष्कार करने वाले नन्हे साइंटिस्ट हृदयेश्वर को मिलने जा रहा प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल शक्ति पुरस्कार
जयपुर के नन्हे साइंटिस्ट सत्रह वर्षीय किशोर हृदयेश्वर सिंह भाटी आगामी 22 जनवरी को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल शक्ति पुरस्कार से सम्मानित होने जा रहे हैं, जबकि वह शरीर से लगभग पचासी फीसद ड्यूशिन सिंड्रोम के शिकार हैं। उन्होंने जापानी रिकॉर्ड तोड़ते हुए एक साथ सौ लोगों के शतरंज खेलने का तरीका ईजाद किया है।
देश प्रतिभाओं से भरा पड़ा है। और तो और, अब हमारे देश के किशोर वय बच्चे भी चमत्कारी होते जा रहे हैं। पिछले कुछ महीनो का ही रिकॉर्ड उठाकर देख लें तो खुद पता चल जाएगा कि भारत के बच्चे विश्व मंचों तक पहुंच कर अपने टैलेंट का लोहा मनवाने लगे हैं।
छोटा स्टीफन हाकिंग्स कहते हैं लोग
एक ऐसे ही प्रतिभाशाली जयपुर के सत्रह वर्षीय किशोर हृदयेश्वर सिंह भाटी आगामी 22 जनवरी को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल शक्ति पुरस्कार से सम्मानित होने जा रहे हैं, जबकि वह शरीर से लगभग पचासी फीसद ड्यूशिन सिंड्रोम के शिकार हैं। इस बाल वैज्ञानिक हृदयेश्वर उर्फ छोटा स्टीफन हाकिंग्स उर्फ हार्डी की उंगलियां कांपती हैं लेकिन ब्रेन से साइंटिस्ट हैं। अपनी नौ वर्ष की उम्र में ही मल्टीप्लेयर सरक्यूलर चेस (गोलाकार शतरंज) तैयार करने वाले इस बाल वैज्ञानिक को अब तो लोग हार्डी कहकर बुलाने लगे हैं।
बना डाला अनोखा शतरंज
हृदयेश्वर की मां डॉ. मीनाक्षी कंवर स्कूल में अंग्रेजी की शिक्षिका हैं। पिता सरोवर सिंह भाटी मैथ्स में नेशनल अवॉर्डी हैं। हृदयेश्वर का मल्टीप्लेयर सरक्यूलर तीन तरह के आकार में बनाया गया है। पहले को 6, दूसरे को 12 और तीसरे को 60 लोग एक साथ खेल सकते हैं। पहले शतरंज को 11, दूसरे को 27 और तीसरे को 62 तरीके से खेला जा सकता है।
अभी तक जापान ने 52 तरीके से खेलने वाला शतरंज बनाया है, जबकि हृदयेश्वर ने जापानी रिकॉर्ड तोड़कर अपने मल्टीप्लेयर सरक्यूलर में खेलने के कुल 100 तरीके ईजाद किए हैं। इसके लिए सरकार हृदयेश्वर को पहले भी 'मोस्ट आउटस्टैंडिंग क्रिएटिव इंवेंटर टीन अवॉर्ड' से नवाज चुकी है। उनके पास ऐसे सात पेटेंट हैं, जिनमें खुद के बनाए शतरंज भी शमिल हैं।
हौसलों से हर बाधा की पार
हृदयेश्वर के बचपन का एक रोचक वाकया है,
वह जब आठ साल के थे, एक दिन अपने पिता के साथ शतरंज खेल रहे थे, तभी कुछ दोस्त घर आ गए। दोस्तों ने भी शतरंज खेलने की इच्छा जताई तो हृदयेश्वर के पिता ने कहा कि शतरंज तो दो खिलाड़ियों के लिए ही बना है। उसी समय हृदयेश्वर के दिमाग में ये आइडिया आया कि क्यों न वह कोई ऐसी तकनीक ईजाद करें, जिससे दो से ज्यादा लोग एक साथ शतरंज खेल सकें। उन्होंने छह महीने तक इस पर माथापच्ची की। और आज वह कामयाबी के इस मुकाम तक पहुंच चुके हैं।
इस नन्हे साइंटिस्ट का कहना है कि
विकलांगता चाहे जैसी भी हो, हौसलों की कमी नहीं होने चाहिए। दिव्यांग भी अपने हौसलों के दम पर ऊंची उड़ान भर सकते हैं।
फिजिकल प्रॉब्लम से एक नुकसान जरूर हुआ है कि हृदयेश्वर स्कूल नहीं जा पाते हैं, लेकिन घर से ही पूरी दुनिया को यूनिवर्सिटी बनाकर तालीम लेते हैं। वह हर दिन 10 घंटे इंटरनेट और टीवी के जरिए देश-दुनिया की जानकारी लेते हैं। उन्हें भारतीय, पश्चिमी संगीत पसंद है।