राजस्थान के पुलिसवाले ने सड़क पर भीख मांगने वाले 450 बच्चों को पढ़ाने के लिए बना दिया स्कूल
बच्चों की जिंदगी भीख मांगने में ना गुजरे इसके लिए कचरा उठाने वाले बच्चों को फ्री में पढ़ाता है यह पुलिसवाला
छोटी-छोटी चीजें ही समाज में बड़ा बदलाव लाती हैं। बड़े स्तर पर समाज में सुधार के लिए छोटी पहल करनी होती है। किसी देश में बदलाव शिक्षा और पढ़ाई के जरिए ही आ सकता है। राजस्थान के चुरू जिले में पुलिस विभाग में कॉन्स्टेबल के पद पर कार्यरत धर्मवीर जाखड़ का मानना है कि शिक्षा के जरिए भारत देश के गरीबों और वंचितों का उत्थान हो सकता है। इन्हीं सब बातों को समझते हुए आज धर्मवीर जाखड़ चुरू जिले में कचरा बीनने और भीख मांगने वाले बच्चों को शिक्षा तक ले जाने में मदद कर रहे हैं।
धर्मवीर जाखड़ राजस्थान के चुरू जिले के रहने वाले हैं। उन्होंने जिले में ही एक स्कूल खोला है जिसका नाम अपनी पाठशाला (आपणी पाठशाला) है। यहां गरीब और कमजोर आर्थिक स्थिति वाले बच्चों को फ्री में पढ़ाया जाता है। इसकी शुरूआत 1 जनवरी 2016 को हुई थी। यह स्कूल चुरू में महिला पुलिस स्टेशन के पास है और यहां 450 बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दी जाती है। इसमें खासतौर पर ऐसे बच्चों को पढ़ाया जाता है जो पहले भीख मांगते हैं या फिर कचरा उठाते हैं। स्कूल में छात्रों को पढ़ाई के अलावा यूनिफॉर्म, किताबें, बैग और अन्य जरूरी चीजें भी दी जाती हैं।
समाज के लिए इस काम की शुरुआत के बारे में धर्मवीर दी न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताते हैं,
'जब मैंने ऐसे बच्चों से बात की तो उन्होंने मुझे बताया कि उनके ना तो कोई पैरेंट्स हैं और ना ही कोई रिश्तेदार। शुरुआत में मैंने सोचा कि शायद वे झूठ बोल रहे हों लेकिन जब मैंने उनकी बस्ती में जाकर देखा तो पता चला कि वे सच बोल रहे थे। मैंने महसूस किया कि अगर मैं इनकी मदद नहीं करूंगा तो शायद ये अपनी पूरी जिंदगी भीख मांगने में ही खराब कर देंगे। फिर मैंने उन्हें रोज 1 घंटे पढ़ाना शुरू किया।'
फिलहाल इस स्कूल में कक्षा 1 से 7 तक कक्षा के बच्चों को पढ़ाया जाता है। इनमें 5वीं क्लास तक के बच्चों की संख्या 360 और 6ठी व 7वीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 90 है। बच्चों को घर से स्कूल लाने और वापस ले जाने के लिए गाड़ी की सुविधा भी है।
बच्चे रोज स्कूल आएं और पढ़ाई बीच में ना छोड़ें, इसके लिए बच्चों के पैरेंट्स से नियमित तौर पर बात की जाती है। इस अच्छे काम में धर्मवीर की मदद दो महिला कॉन्सटेबल करती हैं।
धर्मवीर बताते हैं,
'यहां पर उत्तर प्रदेश और बिहार के कई परिवार काम करने के लिए आते हैं। हम उनके बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। साथ ही बच्चे वापस अपने घर (यूपी और बिहार) जाकर वे पढ़ाई ना छोड़ें, यह भी सुनिश्चित करते हैं। हमने कई बच्चों को कचरा बीनने की अनुमति दी है। इन बच्चों के पैरेंट्स उन्हें स्कूल नहीं आने देते। इसलिए हमने उन्हें (बच्चों को) स्कूल के बाद कचरा बीनने की अनुमति दी है। इसी तरह कम से कम वे स्कूल तो आते हैं।'
वे साल 2011 में राजस्थान पुलिस में भर्ती हुए थे। अकेले धर्मवीर के लिए स्कूल को चलाना बहुत महंगा है क्योंकि 1 महीने का खर्चा 1.5 लाख रुपये के करीब होता है। इसलिए वह फेसबुक और बाकी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स के जरिए डोनेशन इकठ्ठा करके स्कूल चलाते हैं। पहले इस काम में धर्मवीर अकेले थे लेकिन अब उनका स्टाफ और चुरू जिला प्रशासन भी उनका साथ दे रहा है।