क्यों खास है मिस्र के राष्ट्रपति का गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनना?
भारत और मिस्र दोनों देश अपने राजनयिक संबंधों की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. हालांकि, यह पहला मौका है, जब मिस्र के राष्ट्रपति को गणतंत्र दिवस समारोहों में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया है. मिस्र की सेना की एक टुकड़ी भी गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लेगी.
आज देश 74वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. देश में 26 जनवरी का दिन गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसी दिन भारत का संविधान लागू हुआ था. गणतंत्र दिवस के मौके पर हर साल राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक कर्तव्य पथ पर बेहद भव्य और आकर्षक परेड होती है. कर्तव्य पथ को पहले राजपथ के नाम से जाना जाता था.
इस मौके पर हर साल किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष को मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होने के लिए बुलाया जाता है. इस बार के गणतंत्र दिवस पर मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए हैं. उनके साथ एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी आया है.
अल-सीसी तीन दिवसीय राजकीय यात्रा पर मंगलवार को नई दिल्ली पहुंचे हैं. उनकी यात्रा के दौरान कृषि, डिजिटल क्षेत्र और व्यापार सहित कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ करने पर प्रमुख रूप से जोर दिया जाएगा.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में मिस्र के राष्ट्रपति अल सीसी का पारंपरिक स्वागत किया. इस अवसर पर वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी आगवानी की. उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गयी. अल सीसी ने राजघाट जाकर महात्मा गांधी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की.
मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी का परिचय?
साल 2014 में मिस्र के राष्ट्रपति बनने से पहले अल सीसी वहां के सैन्य प्रमुख और रक्षा मंत्री थे. वह 2013 में एक तख्तापलट के बाद लोकतांत्रिक रूप से चुने गए मोहम्मद मोर्सी के उत्तराधिकारी बने. इसके बाद, अल-सिसी ने 2014 में आर्थिक विकास के मुद्दे पर राष्ट्रीय चुनाव में जीत दर्ज की.
अब तक, उनकी सरकार को मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिली हैं क्योंकि उनके आलोचक मिस्र के मौजूदा आर्थिक संकट और विपक्षी आवाजों के हिंसक दमन को लेकर चिंतित हैं. अल सीसी ने तीसरे भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए अक्टूबर 2015 में भारत की यात्रा की थी, जिसके बाद सितंबर 2016 में उन्होंने राजकीय यात्रा की थी.
क्यों महत्वपूर्ण है मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करना?
भारत और मिस्र दोनों देश अपने राजनयिक संबंधों की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. हालांकि, यह पहला मौका है, जब मिस्र के राष्ट्रपति को गणतंत्र दिवस समारोहों में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया है. मिस्र की सेना की एक टुकड़ी भी गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लेगी.
भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाना प्रोटोकॉल के मामले में सबसे अधिक सम्मान है.
मुख्य अतिथि की यात्रा प्रतीकवाद से भरी है. यह मुख्य अतिथि को भारत के गौरव और खुशी में भाग लेने के रूप में चित्रित करता है, और भारत के राष्ट्रपति और मुख्य अतिथि द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए दो लोगों के बीच दोस्ती को दर्शाता है.
मिस्र और भारत के रिश्तों का इतिहास
मिस्र और भारत, दोनों ही प्राचीन सभ्यताएं हैं और इनके बीच सदियों पुराने संबंध हैं. दोनों देश गुटनिरपेक्ष आंदोलन के स्तंभ भी थे. मिस्र आज हमारे रक्षा उद्योग के लिए पर्याप्त क्षमता प्रदान करने के अलावा हमारे पश्चिम एशियाई हितों को आगे बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण धुरी है.
भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के साथ ही, भारत और मिस्र राजनयिक संबंधों को भी 75 साल हो गए. दोनों देशों में 18 अगस्त, 1947 से लोगों से लोगों के बीच संबंध स्थापित कर रहे हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के कारण दो गुटों में बंटी दुनिया में 1947 के बाद दोनों देश गुटनिरपेक्ष आंदोलन के योद्धा भी रहे हैं.
भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है मिस्र?
तीन महाद्वीपों एशिया, अफ्रीका और यूरोप (भूमध्य सागर के पार) के संगम पर स्थित मिस्र, अरब देशों का एक महत्वपूर्ण देश है और अफ्रीकी महाद्वीप का एक स्थापित नेतृत्वकर्ता देश है. भूमध्य सागर और लाल सागर को जोड़ने वाली स्वेज नहर पूर्व से पश्चिम तक सबसे छोटी समुद्री कड़ी है और वैश्विक व्यापार के लिए महत्वपूर्ण है. यह इस क्षेत्र में मिस्र के महत्व का एक प्रमुख कारण भी है.
10 करोड़ से अधिक की आबादी के साथ, मिस्र सबसे बड़ा अरब राष्ट्र है और पारंपरिक रूप से दशकों से क्षेत्रीय राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता रहा है. मिस्र के साथ भारत का जुड़ाव और हित ऐतिहासिक संबंधों से परे हैं, और भारत में पश्चिम एशियाई क्षेत्र में मिस्र की स्थिति और महत्व को साफ तौर पर स्वीकार किया जाता है.
भारत अपनी 'लुक वेस्ट पॉलिसी' के एक भाग के रूप में पश्चिम एशियाई क्षेत्र और अफ्रीका में अपने हितों का विस्तार करना चाहता है. इसके लिए मिस्र में शांति और स्थिरता और घनिष्ठ द्विपक्षीय सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.
नई ऊंचाई को छू रहा भारत और मिस्र का रिश्ता
लंबे समय तक स्थिर रहने के बाद अब दोनों देशों के बीच संबंध तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. भारत और मिस्र पिछले कुछ वर्षों से द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों की एक करीबी समझ बनाने की कोशिश कर रहे हैं. खासकर साल 2014 के बाद से यह तब और बढ़ गया दोनों देशों की कमान उनके मौजूदा नेतृत्वकर्ताओं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति अल सिसी के हाथ में आई.
तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज ने अगस्त 2015 में मिस्र का दौरा किया था और दोनों पक्षों ने सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग को बढ़ाने का फैसला किया था.
2022 दोनों देशों के बीच जुड़ाव के मामले में बेहद महत्वपूर्ण साल रहा. फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद, भारत अपनी फूड सिक्योरिटी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गेहूं की आपूर्ति करने की पेशकश करके मिस्र के बचाव में सामने आया. था. आज भारत और मिस्र के बीच करीब का कारोबार करीब 6 खरब रुपये का है.
भारत ने जब दिसंबर, 2020 में G-20 देशों की अध्यक्षता हासिल की तब उसने मिस्र को कुछ चुनिंदा देशों में से एक 'अतिथि देश' के रूप में नामित किया गया है.
मिस्र भी उन छह देशों में से एक है जिसने भारत से एलसीए तेजस विमान खरीदने में रुचि दिखाई है. इसके अलावा, मिस्र ने भारतीय ब्रह्मोस मिसाइलों को खरीदने में भी दिलचस्पी दिखाई है.
मिस्र 'मेक इन इंडिया' पहल में एक संभावित भागीदार के रूप में भी महत्वपूर्ण है और भारतीय उद्योगों, को-प्रोडक्शन यूनिट्स, डिफेंस प्रोडक्ट्स और ज्वाइंट डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग के लिए एक आकर्षक बाजार हो सकता है.