रिसर्च : लाखों लोगों को गहरे अवसाद में धकेल रहा दफ्तरों के भीतर का माहौल
पूरी दुनिया में इस समय दफ्तरों के अंदर के माहौल पर तरह-तरह के रिसर्च चल रहे हैं। अस्सी हजार कर्मचारियों पर हुई ऐसी ही एक ताज़ा स्टडी में पता चला है कि ऑफिसों के अंदर की अप्रिय स्थितियां ड्यूटी और काम की गुणवत्ता को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रही हैं। लाखों लोग गहरे अवसाद में गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
सरकारी, गैरसरकारी दफ्तरों, कंपनियों के अंदर काम की स्थितियों को लेकर कर्मचारियों में बढ़ते स्ट्रेस, डिप्रेशन पर आई कुछ ताज़ा स्टडी चौंकाने वाली हैं। ऐसी रिसर्च में दफ्तरों के अंदर दादागिरी की प्रवृत्ति को खासतौर से रेखांकित किया गया है।
हाल ही में स्कैंडिनेवियाई देशों के सार्वजनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड के अध्ययन के बाद पता चला है कि धौंस जमाने का शारीरिक सेहत पर भी गंभीर असर पड़ सकता है। 2018 के एक रिसर्च पेपर के लिए कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी की तियानवेई शू की अगुआई में एक दल ने स्वीडन और डेनमार्क के 80 हज़ार पुरुष और महिला कर्मचारियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया।
शोधकर्ताओं ने देखा कि क्या पिछले साल दफ़्तर में उन पर धौंस जमाई गई थी। इसके बाद उन्होंने सेहत के आंकड़े देखे कि अगले चार वर्षों में कहीं उनको दिल की बीमारी तो नहीं हो गई। पुरुषों और महिलाओं दोनों के आंकड़ों से एक साफ तस्वीर उभरकर आई। सर्वेक्षण में शामिल 8 से 13 फीसदी लोगों ने माना कि उनके साथ दादागिरी हुई। उनमें दूसरे लोगों के मुक़ाबले दिल की बीमारी या हृदयाघात की संभावना 1.59 गुणा ज़्यादा पाई गई।
दूसरे शब्दों में, दादागिरी का शिकार होने पर दिल संबंधी समस्याएं होने की आशंका 59 फीसदी बढ़ गई। शोधकर्ताओं ने बॉडी-मास इंडेक्स और धूम्रपान जैसे कारकों को शामिल करके देखा तो भी यही नतीजे दिखे। जिन प्रतिभागियों पर ज़्यादा धौंसपट्टी जमाई गई थी, उनमें हृदय रोग का जोखिम ज़्यादा देखा गया।
हम सब ज़िंदग़ी में कभी न कभी थोड़े समय के लिए नाख़ुश होते हैं मगर डिप्रेशन यानी अवसाद उससे कहीं ज़्यादा गहरा, लंबा और ज़्यादा दुखद होता है। एक महिला कर्मचारी लक्ष्मी चरण ने करियर सलाहकार की नई नौकरी शुरू की तो कुछ ही दिनों में उनको दफ़्तर जाने में डर लगने लगा। एक सहकर्मी उनके काम में लगातार नुक्स निकालता था, दूसरों की ग़लतियों के लिए उनको दोषी ठहराता था और अपमानित करता था।
इस दादागिरी का असर हुआ और कुछ ही दिनों में घोष में चिंता और अवसाद के लक्षण दिखने लगे। उनकी सेहत बिगड़ गई, नींद उड़ गई, सर्दी और बुख़ार सताने लगा, बांह के नीचे एक गांठ उभर आया। पर्याप्त आराम के बिना लंबे समय तक काम करने के दबाव से उंगलियों, हाथों और कंधे में दर्द शुरू हो गया।
इसकी वजह से लोगों की ज़िंदगी से रुचि ख़त्म होने लगती है और रोज़मर्रा के कामकाज से मन उचट जाता है। ताजा रिसर्च से ये बात भी सामने आई है कि इसके पीछे कोई आनुवांशिक वजह भी हो सकती है। इसके तहत कुछ लोग जब चुनौतीपूर्ण समय से गुज़र रहे होते हैं तो उनके अवसाद में जाने की आशंका अधिक रहती है। दिमाग़ में रसायन जिस तरह काम करता है एंटी डिप्रेसेंट्स उसे प्रभावित करता है मगर इन रसायनों की अवसाद में क्या भूमिका होती है ये पूरी तरह समझी नहीं जा सकी है और एंटी डिप्रेसेंट्स सबके लिए काम भी नहीं करते।
दिमाग़ में न्यूरोट्रांसमिटर जिस तरह काम करते हैं उसका संतुलन भी अवसाद के चलते बिगड़ जाता है। ये रासायनिक संदेशवाहक होते हैं जो कि न्यूरॉन्स यानी दिमाग़ की कोशिकाओं के बीच संपर्क क़ायम करते हैं।
बहरहाल, ताज़ा स्टडी में शोधकर्ताओं ने बताया है कि अगर दफ़्तर की दादागिरी और दिल की बीमारी के बीच कोई रिश्ता है तो खींचतान ख़त्म करने का मतलब होगा, हम हृदय रोग के मामलों को 5 फीसदी कम कर सकते हैं। वैसे शोध की डिजाइन इसे साबित नहीं करती, लेकिन इसके सच होने की संभावना काफी ज़्यादा होगी। स्वीडन, डेनमार्क और फ़िनलैंड के प्रतिभागियों पर इसी तरह के अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि दफ़्तरों की आपसी खींचतान के शिकार लोगों में टाइप 2 डायबिटीज़ होने की आशंका 1.46 गुणा अधिक रही।
शोधकर्ताओं ने आगे की शोध परियोजनाओं में इन संभावनाओं का पता लगाने की योजना बनाई है। वे नियोक्ताओं को दफ़्तरों में कर्मचारियों के साथ खराब बर्ताव और उनसके नतीजों के बारे में गंभीरता से स्टडी करना चाहते हैं। उनकी सलाह है कि नियोक्ताओं को अपने दफ़्तर में खींचतान रोकने के योजनाबद्ध प्रोजेक्ट पर भी काम करना होगा। जो कर्मचारी अपने सहकर्मियों से आंखों के सामने अपमानित होते देखते हैं, उनकी सेहत खुद-ब-खुद बिगड़ने लगती है।
शेफ़ील्ड यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ़ वर्क साइकोलॉजी के शोधकर्ताओं ने पाया है कि जो स्टाफ अपने साथियों के साथ ऐसा सलूक देखते हैं, वे उदास रहने लगते हैं। सिंगापुर मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी में पहले हुए रिसर्च में भी यही नतीजे आए थे कि काम के दौरान हुए कटु अनुभव पास के व्यक्तियों की मानसिक सेहत पर बुरा असर डालते हैं, जिनका बाद में शारीरिक सेहत पर भी असर होता है।
शेफ़ील्ड यूनिवर्सिटी के दूसरे शोध से पता चला कि दादागिरी देखने भर से उन कर्मचारियों को नुकसान होता है जिनके पास सामाजिक समर्थन की कमी होती है या जो निराशावादी प्रकृति के होते हैं।