एक 10वीं पास शख्स ने कैसे देश की सबसे बड़ी मोबाइल रिटेल चेन बनाई: 2000 करोड़ रुपये टर्नओवर वाली संगीता मोबाइल्स की कहानी
बेंगलुरु के उद्यमी सुभाष चंद्रा एल एक शिक्षित व्यक्ति हैं और वे अपने विचारों को काफी स्पष्ट तरीके से व्यक्त करते हैं। उनका व्यावसायिक कौशल कमाल का है और उन्हें करीब दो दशक पहले तक की तारीखों, आंकड़ों और वित्तीय जानकारियों को याद करने में कोई परेशानी नहीं होती है।
उन्हें देखकर किसी भी लग सकता है उन्होंने किसी महंगी इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी से फैंसी डिग्री ली होगी। हालांकि, सुभाष सिर्फ दसवीं पास है और उनकी अधिकतर असली शिक्षा तब हुई जब वह अपना बिजनेस चला रहा थे।
सुभाष का बचपन मुश्किलों भरा था। वे जब सिर्फ सात साल के थे, तब उनकी मां का निधन हो गया और उनके पिता का बिजनेस अच्छा नहीं चल रहा था। दसवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद सुभाष ने स्कूल छोड़ दिया और अपने पिता का व्यवसाय संभाला। उसके बाद उन्होंने कभी भी औपचारिक शिक्षा नहीं हासिल की। उनके पिता के बिजनेस का नाम संगीता मोबाइल्स था।
आज यह नाम दक्षिण भारत में ऑफलाइन मोबाइल फोन रिटेल का पर्याय बन गया है। देशभर में इसके लगभग 650 रिटेल आउटलेट्स हैं और करीब 2,000 करोड़ रुपये का कारोबार है।
हालांकि इस बिजनेस की शुरुआत काफी छोटी रही थी। पहली बार इसे बेंगलुरु के जेसी रोड में 600 स्क्वायर फीट के एक छोटे सी दुकान से शुरू किया गया था, जहां घरेलू उपकरण और विनाइल के म्यूजिक रिकॉर्ड्स बेचे जाते थे।
योरस्टोरी के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में, सुभाष ने अपने ऑफलाइन स्टोर की उद्यमशीलता से जुड़ी असाधारण कहानी को याद किया और बताया कि कैसे उन्होंने संगीता मोबाइल्स को देश की सबसे बड़ी मोबाइल रिटेल चेन में बदल दिया।
कठिन शुरुआत
सुभाष चंद्रा के पिता, नारायण रेड्डी एक किसान थे। बाद में उन्होंने चेन्नई में एक घरेलू उपकरण बेचने वाले एक कंपनी 'विजय होम अप्लायंस' में स्टोर मैनेजर की नौकरी कर ली। वहां से फिर उन्हें बेंगलुरु ट्रांसफर कर दिया गया।
हालांकि परिवार के बेंगलुरु आने के तीन महीने बाद, सुभाष की मां का निधन हो गया।
नारायण ने इसके बाद अपने सात वर्षीय बेटे सुभाष और उसकी पांच साल की बहन को नेल्लोर में उनके दादा-दादी के पास रहने के लिए भेज दिया। हालांकि सुभाष जब आठ साल के हुए तो वे बेंगलुरु वापस अपने पिता के पास रहने के लिए आ गए।
सुभाष बताते हैं,
"इस समय तक, 1973 में, मेरे पिता ने जेसी रोड में द मर्चेंट नाम से घरेलू उपकरणों की एक रिटेल स्टोर खोल लिया था। हालांकि बिजनेस अच्छा चला नहीं, जिसके बाद उन्हें द मर्चेंट को बंद करना पड़ा।"
हालांकि नारायण के पिता हार मानने वाले नहीं थे। उन्होंने घरेलू उपकरण बेचने के लिए एक और व्यवसाय शुरू किया और इस बार इसका नाम संगीता रखा। उन्होंने अपने स्टोर के एक कमरे को साउंडप्रूफ बना दिया, जहां वे विनाइल एल्बम रिकॉर्ड को बेचते थे।
सुभाष बताते हैं,
“स्टोर में घरेलू उपकरण और म्यूजिक रिकॉर्ड दोनों की बिक्री थी। इस दुकान को मेरे पिता ने तीन लोगों की साझेदारी में खोला था और सभी ने इसमें 20,000 रुपये के आसपास लगाए थे।”
हालांकि नियति ने नारायण का एक बार फिर साथ नहीं दिया। उन्होंने इन्वेंट्री की जगह दुकान की अंदरूनी सजावट और डिजाइन पर बहुत अधिक निवेश करने की गलती की। इससे बिक्री बुरी तरह प्रभावित हुई और सुभाष के पिता फिर से मुश्किल में पड़ गए।
उन्होंने दुकान बेचने की सोची, लेकिन कोई खरीदार नहीं मिला। एक के बाद एक उनके सभी साथी इस बिजनेस से बाहर निकल गए और संगीता के इकलौते मालिक बन गए।
पिता-पुत्र की जोड़ी के लिए यह समय काफी कठिन था। वे दुकान पर ही रहते थे और पड़ोस के भोजनालयों में खाते थे। हालांकि सुभाष के अंदर अपने पिता के व्यवसाय को बढ़ाने की एक आग थी। उन्होंने कुछ वर्षों तक दुकान में अपने पिता की मदद की। 1982 आते-आते सुभाष 16 वर्ष के हो गए थे और उसी समय उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़कर संगीता के बिजनेस को संभालने का पक्का इरादा किया।
होम अप्लायंसेज से लेकर मोबाइल और सिम कार्ड तक
सुभाष बताते हैं,
“मैं अपनी कक्षा में टॉपर था। ऐसे में मेरे पिता ने मुझे समझाने की काफी कोशिश किया कि मैं स्कूल न छोड़ू। लेकिन मैंने अभी भी अपनी पढ़ाई छोड़ दी और संगीता की जिम्मेदारी संभाली।”
करीबी इस समय टेलीविजन की मार्केट में एंट्री हुई थी। संगीता ने टेलीविजन सेट्स की रिटेल बिक्री शुरू कर दी और यह सुभाष के डूबते होम अप्लायंसेज और म्यूजिक की दुकान के लिए एक जीवनदान साबिक हुई। सुभाष ने कंप्यूटर और पेजर बेचना भी शुरू कर दिया और अपने बिजनेस को एक मल्टी-अप्लायंस स्टोर में बदला दिया, जहां विभिन्न तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बिक्री होती थी।
उनकी जिंदगी में असली मोड़ 1997 में आया जब पहला मोबाइल हैंडसेट भारत में दाखिल हुआ। सुभाष ने पहले ही तय कर लिया था कि वे इस नई तकनीक को अपने हाथ से फिसलने नहीं देंगे।
वह बताते हैं,
“मैं शुरू से ही यह जानता था कि मुझे इन दो-तरफा कम्युनिकेशन डिवाइसों को बेचना है। मेरे द्वारा बेचा गया पहला मोबाइल फोन सोनी हैंडसेट था जिसकी कीमत 35,000 रुपये थी। उन दिनों यह काफी अधिक पैसा होता था।”
सुभाष ने बाद स्पाइस टेलीकॉम और जेटी मोबाइल्स के साथ डील कर लिया और सिम कार्ड की रिटेल बिक्री शुरू कर दी। स्पाइस के साथ समझौता करना एक और निर्णायक मोड़ था क्योंकि संगीता सिम कार्ड से काफी अधिक मुनाफा हासिल हुआ।
उन दिनों एक प्रीपेड सिम की कीमत 4,856 रुपये थी। इसमें से संगीता को प्रत्येक सिम कार्ड की बिक्री पर 3,000 रुपये कमीशन के रूप में मिलते थे।
वे बताते हैं,
“कमीशन इतना अधिक इसलिए था क्योंकि उन दिनों सिम कार्ड के इस्तेमाल करना काफी महंगा था। ऐसे में इसके लिए नए ग्राहकों को खोजना और भी अधिक मुश्किल और महंगा काम हो गया था। टेलीकॉम प्रोवाइडर्स उन दिनों इनकमिंग और आउटगोइंग कॉल के लिए ग्राहकों से 16.80 रुपये प्रति मिनट का शुल्क लेते थे। ऐसे में ग्राहकों को सिम कार्ड के लिए मनाने में अधिक रकम खर्च करनी पड़ती थी।”
सुभाष ने बताया कि उनके स्टोर में जो ग्राहक फ्रिज, टीवी, या अन्य घरेलू उपकरणों को खरीदने के लिए आते थे, उन्हें वे मोबाइल फोन और सिम कार्ड से जुड़ी डील भी बताते थे। इसके जरिए उन्होंने एक महीने में लगभग 30 सिम कार्ड की बिक्री की और फिर कुछ ही समय में, संगीता लगभग 1,900 सिम कार्ड बेच रही थी। यह सबकुछ जेसी रोड के उसी एक स्टोर से हो रहा था।
ग्रे मार्केट से मुकाबला
मोबाइल और सिम कार्ड भारत में लोकप्रिय हो रहे थे, लेकिन इसके साथ ही इनका ग्रे मार्केट भी बढ़ रहा था। एरिक्सन, सीमेंस, सोनी, फिलिप्स, नोकिया और मोटोरोला के मोबाइल फोन पर लागत का करीब 60 प्रतिशत तक कस्टम्स ड्यूटी लगाया जाता था। इसके अलावा सेल्स टैक्स और टर्नओवर टैक्स भी लागत में जुड़ता था।
दूसरी ओर लोग ग्रे मार्केट में तस्करी वाले फोन आधे दामों में खरीद सकते थे क्योंकि तस्करी वाले फोन की कीमत में कस्टम्स ड्यूटी नहीं लगता था।
वे बताते हैं,
“लोग बर्मा बाजार जैसी जगहों पर जाकर मोबाइल फोन खरीदते थे। उन शुरुआती वर्षों में भारत में बिकने वाले अधिकांश फोन ग्रे मार्केट में बेचे गए थे।”
ग्रे मार्केट की लोकप्रियता का मुकाबला करने के लिए, सुभाष ने लंबे समय में अपने ग्राहकों के साथ बनाए विश्वास का लाभ उठाने का फैसला किया, जो आमतौर पर फैन, आयरन बॉक्स, टीवी, आदि खरीदने के लिए उनके पास आते थे। इसके अलावा उन्होंने लोगों को सिम कार्ड के आखिरी अंकों को उनकी जन्म तिथि के आधार पर देने का वादा किया।
इससे बिक्री बढ़ी, लेकिन अभी भी उन्हें एक लंबा रास्ता तय करना था। ग्रे मार्केट का दबदबा अभी भी कायम था।
ऐसे में सुभाष ने अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए कई उपायों को शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने बिल और वारंटी के साथ फोन बेचना शुरू किया। इसके अलवा वह फोन और सिम कार्ड को एक सिंगल पैकेज बनाकर बेचने लगे। उनका दावा है कि संगीता ऐसा करने वाली देश के पहले मोबाइल रिटेलरों में से एक थी।
हालांकि सुभाष को एहसास हुआ कि ग्राहक संगीता सहित किसी से भी स्टोर से महंगा मोबाइल खरीदना नहीं चाहते हैं क्योंकि उन दिनों शहर में मोबाइल चोरी की वारदातें काफी होने लगी थीं।
औसतन एक मोबाइल फोन की कीमत 10,000 रुपये से 20,000 रुपये के बीच होती है। चोरों के लिए इन डिवाइसों को बिना किसी खतरे के घरों से उठाना आसान था क्योंकि उस वक्त फोन पर कोई ट्रैकिंग सिस्टम या सिक्योरिटी फीचर नहीं थे।
इससे सुभाष के बिजनेस को चोट पहुंच रही था, लेकिन उन्होंने समझदारी से इसकाट काट निकाला। वह अपने दुकान से बिकने वाले होम अप्लायंसेज पर काफी समय से बीमा ऑफर कर रहे थे। अब उन्होंने मोबाइल फोन के लिए भी ऐसा ही करने का फैसला किया।
सुभाष ने EMI पर मोबाइल फोन खरीदने की सुविधा देने के लिए स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के साथ साझेदारी की। इससे ग्राहकों के लिए पेमेंट करना और भी अधिक पॉकेट-फ्रेंडली हो गया।
उन्हें उस वक्त ऐसा लग रहा था कि उन्होंने सही तरीका खोज लिया है क्योंकि उनकी मोबाइल की बिक्री आसमान छू रही थी। हालांकि ग्रे मार्केट के प्रति ग्राहकों का मोह अभी भी कम नहीं हुआ था। हालांकि संगीता में पहली बार खरीदारी करने और पुराने खरीदारों की भीड़ बराबर लगी रहीय़
उन्होंने बताया,
"मुझे याद है कि जब मैं रोज सुबह 9.30 बजे जेसी रोड की दुकान खोलता था, तो मुझे दुकान खुलने का इंतजार करने वाले ग्राहकों की एक लंबी कतार दिखाई देती थी।"
सुभाष ने जब अपने सप्लायर्स और ओईएम से हर महीने 100 से अधिक यूनिट की आपूर्ति करने के लिए कहा, तो उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ।
सुभाष ने बताया,
“उन्होंने मुझसे कहा कि मैं पागल हूं क्योंकि उस समय कोई भी एक महीने में इतने महंगे मोबाइल फोन नहीं बेच पाता था। हालांकि मेरे आंकड़ें बताते थे कि मैं यह कर रहा हूं और आखिरकार मैंने थोक में मोबाइल फोन खरीदना शुरू कर दिया।"
सुभाष बताते हैं कि 1997 और 2002 के बीच संगीता ने बेंगलुरु के 65 से 70 प्रतिशत मोबाइल फोन मार्केट पर कब्जा कर लिया था।
CDMA की एंट्री और उसके बाद का समय
2002 तक सीडीएमए की मोबाइल फोन मार्केट में एंट्री हुई। सीडीएमए एक दूसरी पीढ़ी का टेलीकॉम डिवाइस था और चिप निर्माता क्वालकॉम इसकी सबसे अग्रणी कंपनी थी। हालांकि, 2जी कम्युनिकेशन के लिए जीएसएम मोबाइलस पहले से ही एक अहम मानक था।
भारत में कई मोबाइल ऑपरेटर, जीएसएम-आधारित नेटवर्क ऑफर करते थे। हालांकि टाटा टेली और रिलायंस इनसे एक कदम आगे बढ़ गए थे और उन्होंने सीडीएमए-आधारित नेटवर्क का संचालन शुरू कर दिया।
हच भी एक सीडीएमए ऑपरेटर बन गया और उसने सुभाष से एक एक्सक्लूसिव हच स्टोर खोलने के लिए संपर्क किया। वह सहमत हो गए। हालांकि यह संगीता का ही स्टोर था, लेकिन अब यह एक हच स्टोर था।
2002 सुभाष के लिए एक अहम वर्ष था क्योंकि इसी साल उन्होंने अपने खुद के ब्रांड का मोबाइल फोन बनाने का फैसला किया। यह मैन्युफैक्चरिंग ताइवान में होती थी और वे सीडीएमए फोन को देश में टाटा को बेचते थे।
सुभाष के मोबाइल ब्रांड का नाम यूरोटेल था। हालांकि जल्द ही जीएसएम ने कम रॉयल्टी दरों और मोबाइल ऑपरेटर्स के अधिक विकल्प के चलते सीडीएमए को मात दे दी। सुभाष को डेढ़ साल बाद यूरोटेल को बंद करना पड़ा और इसमें उन्होंने अपना बहुत सारा पैसा खो दिया।
हालांकि इसका मार्केट पर दबदबा बनाए रखने की संगीता की मुहिम पर खास असर नहीं पड़ा।
उन्होंने बेंगलुरु में अपना दूसरा मोबाइल स्टोर खोला। इस बार ये स्टोर इंदिरानगर में सीएमएच रोड पर खुला था। इसके अलावा उन्होंने दूसरे शहरों में भी स्टोर खोलकर कर्नाटक में अपना विस्तार करना शुरू कर दिया।
मोबाइल फोन ब्रांड्स भी इस समय तक राज्य के बाजार पर संगीता की पकड़ को साफ तौर पर देखने लगे थे। वे चाहते थे कि संगीता उनका डिस्ट्रीब्यूटर बने। इसका मतलब यह कि संगीता दूसरे रिटेलरों को मोबाइल बेचें, जिनमें से कई संगीता के सीधे-सीधे प्रतिद्वंद्वी थे।
सुभाष बताते हैं,
“कई ब्रांडों ने हमें लुभाना शुरू कर दिया और हमें रिटलेर से डिस्ट्रीब्यूटर बनने के लिए कहा। 2002 तक मैं किसी भी ब्रांड के लिए डिस्ट्रीब्यूटर बनने के लिए इच्छुक नहीं था। मैं रिटेल बिजनेस को ही संभालने में बहुत व्यस्त था।”
आखिरकार उन्होंने इसके लिए बना ही लिया और एरिक्सन के लिए डिस्ट्रीब्यूटर बन गए।
हालांकि दूसरे रिटेल विक्रेता अपने प्रतिद्वंद्वी से माल खरीदने में सहज नहीं थे। ऐसे में सुभाष ने केवल डिस्ट्रीब्यूशन के लिए अनु डिस्ट्रीब्यूटर नाम से एक नई यूनिट शुरू की और रिटेलरों को बेचना शुरू किया। एक समय अनु देश में माइक्रोमैक्स की सबसे बड़ी डिस्ट्रीब्यूटर थी और उसने ब्रांड के साथ 1,000 करोड़ रुपये का कारोबार किया।
इस बीच संगीता का विस्तार हैदराबाद से लेकर चेन्नई तक हो गया। सुभाष ने इस दौरान ग्राहकों को कई अनूठी सर्विसेज देनी शुरू की, जिसमें लिक्विड डैमेज से लेकर फिजिकल डैमेज तक बीमा शामिल था। उन्होंने बिना एफआईआर के 72 घंटे में ओवर-द-काउंटर क्लेम सेटेलमेंट सेवा मुहैया कराने के लिए लंदन की कंपनी EIP.com के साथ भागीदारी की।
हालांकि बाद में सुभाष को एहसास हुआ कि मोबाइल पर अनिवार्य बीमा के लिए उनकी कंपनी बहुत अधिक पैसा दे रही है।
वे कहते हैं,
"ऐसे में हमने खर्च में कटौती के लिए बीमा को वैकल्पिक बना दिया।"
सुभाष ने एक बार फिर से एक ब्रांड लॉन्च कर अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। भारतीय मोबाइल फोन का जमाना खत्म हो रहा था और शाओमी जैसे चीनी ब्रांडों ने बाजार में पैर जमाना शुरू कर दिया था।
ई-कॉमर्स की लहर
चीनी हैंडसेट की भारी मात्रा में आमद के साथ-साथ ईकॉमर्स सेक्टर में भी उछाल आया। संगीता मोबाइल्स के लिए यह एक नया अध्याय था, क्योंकि फ्लिपकार्ट और अमेजन जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों ने उसके मार्केट शेयर में सेंध लगानी शुरू कर दी थी।
सुभाष याद करते हुए बताते हैं,
“फ्लिपकार्ट और अमेजन ने भारी डिस्काउंट ऑफर कर स्मार्टफोन बाजार में गदर मचा दिया। हम उनकी कीमत पर कभी भी मोबाइल नहीं बेच सकते थे। 2014 और 2016 के बीच हमारा आमदनी और मुनाफे को तगड़ी चोट लगी। हमारे इतिहास में हम पहली बार ढलान की ओर जा रहे थे।”
हालांकि सुभाष आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थे। सुभाष ने हमेशा की तरह एक बार और नई योजना बनाई, जिससे उन्हें ई-कॉमर्स कंपनियों के भारी छूट का मुकाबला करने में मदद मिली।
इसे स्कीम को उन्होंने 'प्राइस ड्रॉप प्रोटेक्शन' का नाम दिया था।
इस स्कीम के तहत संगीता से किसी ग्राहक द्वारा स्मार्टफोन खरीदने के बाद, कंपनी यह जांच करेगी कि कहीं अगले 30 दिनों में कोई ई-कॉमर्स कंपनी उसी मॉडल को उससे कम दाम में तो नहीं बेच रही है। अगर उन्हें इस बात का सबूत मिलता है तो संगीता ग्राहक से संपर्क करेगी और भुगतान की गई मूल राशि और ईकॉमर्स वेबसाइट पर नई कीमत के बीच के अंतर को वापस कर देगी।
उन्होंने कहा,
"हमने खुद को बचाने के लिए ऐसा किया। इस स्कीम को ग्राहकों ने काफी पंसद किया, इसलिए हमने इसे जारी रखा। हमने सबसे बड़ा रिफंड सोनी एक्सपीरिया मॉडल को लेकर किया है, जिसकी कीमत में 14,000 रुपए की गिरावट पाई गई थी।"
इस स्कीम ने संगीता को बिजनेस में बने रहने और अपनी ऑफलाइन मार्केट में अपनी उपस्थिति मजबूत बनाए रखने में मदद की। सुभाष ने डैमेज प्रोटेक्शन और स्क्रीन रिप्लेसमेंट के लिए नई योजनाएं भी शुरू कीं। उन्होंने एक साल तक डैमेज प्रोटेक्शन, लिक्विड डैमेज, कीमतों में गिरावट और स्क्रीन रिप्लेसमेंट स्कीम का एक बंडल लॉन्च किया और इसे 499 रुपये में पेश किया।
आज भी इस बंडल की कीमत यही बनी हुई है।
इसके अलावा चीन के स्मार्टफोन ब्रांड ने जब ऑनलाइन से ऑफलाइन मार्केट में पैर पसारना शुरू किया तो सुभाष उन पहले लोगों में से एक थे, जिनसे इन कंपनियों ने संपर्क किया था।
फिलहाल संगीता के पास 4,000 कर्मचारी हैं। इसमें से करीब 2,250 सीधे कंपनी के पेरोल पर और बाकी स्मार्टफोन ब्रांड की ओर से मुहैया कराए गए कर्मचारी हैं।
संगीता लगभग सभी ब्रांडों के स्मार्टफोन बेचती है। इसमें एप्पल, वनप्लस, शाओमी, ओपो, वीवो, सैमसंग, रियलमी, आदि शामिल हैं।
कंपनी एक दिन में लगभग 7,000 मॉडल और हर महीने लगभग दो लाख बेचती है। कंपनी की एक ई-कॉमर्स वेबसाइट भी है, जहां स्मार्टफोन ऑर्डर दिए जा सकते हैं।
सुभाष बताते हैं,
"एक धारणा है कि ई-कॉमर्स वेबसाइट हमसे सस्ती कीमतों पर बेचती हैं। हालांकि अगर 'इंड-ऑफ-लाइफ' माडल को छोड़ दें तो यह सच नहीं है। इसके अलावा, अगर हमारे सभी कीमतों और स्कीम को देखा जाए तो संगीता किसी भी स्मार्टफोन मॉडल को ऑनलाइन की तुलना में सस्ती कीमत पर पेश कर सकती है।"
संगीता एक निजी स्वामित्व वाली कंपनी है और उसने अभी तक इनवेस्टमें बैंकर्स के किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है। सुभाष कहते हैं, 'हम इनवेस्टमें बैंकर्स से बात करने से पहले 1,000 दुकानों तक पहुंचना चाहते हैं।'
एक आईपीओ लाने की भी योजना है। लेकिन उसके लिए संगीता के टर्नओवर को 3,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने का इंतजार किया जा रहा है। सुभाष को लगता है कि सिर्फ अगले दो सालों में वह यह लक्ष्य हासिल कर लेंगे।
वह कहते हैं,
"यह सच नहीं है कि मैंने हमेशा केवल सफलता का ही स्वाद चखा है। मैं कई प्रॉडक्ट कैटेगरीज में संभावनाएं तलाशी हैं और हमेशा नए ट्रेंड पर सवारी करना चाहता था। मैंने मोबाइल फोन में विश्वास कर दांव लगाया और यह भाग्यशाली साबित हुआ। मेरी बचपन की मुश्किलों ने मुझे मजबूत बनाया और मैंने बिजनेस खड़ा करने के लिएअपना सारा जीवन झोंक दिया। मैं संगीता मोबाइल्स के लिए अपना सबकुछ न्योछावर किया है।"