रिटायर्ड फौजी बिरेंद्र की हाड़तोड़ मशक्कत से लहलहाने लगे पहाड़ के ठूंठ बंजर
फौज से रिटायर उत्तराखंड के बिरेंद्र सिंह रावत की हाड़तोड़ मशक्कत से पौड़ी के कल्जीखाल विकासखंड के गांव निलाड़ा के बंजर हरे-भरे हो उठे हैं। खेत सोना उगल रहे हैं। फसलें ठाठ मार रही हैं तो आसपास के इलाकों के लोग आंखें फाड़-फाड़ कर ठूंठ मिट्टी पर लहलहाती हरियाली हैरत भरी निगाहों से देखते हुए फूले नहीं समा रहे।
सीमा के प्रहरी जब अपने घर-गांव लौटकर भी अपने अंदर देश को कुछ न कुछ देते रहने का हौसला बरकरार रखें तो वे पूरे समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बन जाते हैं। कर दिखाने के जोश और जुनून से लैस ऐसे ही रिटायर्ड सेनानी हैं पौड़ी (उत्तराखंड) में कल्जीखाल विकासखंड के गांव निलाड़ा के बिरेंद्र सिंह रावत, जिन्होंने अपनी हाड़तोड़ मेहनत से बंजर हो चुकी ज़मीनों को लहलहा दिया है। ये हरियाली पर्यावरण के लिए सेहतमंद है ही, अब वे जंगली जानवरों की पनाहगाह भी बन चुकी हैं।
इतना ही नहीं, इन जमीनों के एक बड़े क्षेत्र में बंजर की जगह लहलहाती फसलों ने ले लिया है। रावत सेना में इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मेकेनिकल इंजीनियर्स (ईएमई) में 22 साल नौकरी करने के बाद 31 जुलाई 2017 को हवलदार पद से सेवानिवृत्त हुए थे। इससे पहले ही उन्होंने भी और ग्रामीणों की तरह गांव छोड़ दिया था और परिवार के साथ देहरादून के नवादा में बस गए। सेवानिवृत्त होने के बाद उनको कई जगह से नौकरी का ऑफर मिले लेकिन दोबारा ढर्रे की जिंदगी जीना उन्हें गंवारा नहीं हुआ।
बिरेंद्र सिंह रावत बताते हैं कि वह शहरी नुमायशी टाइप जीवन से परेशान हो गए थे और गांव लौटकर माटी का कर्ज अदा करना चाहते थे। गांव आकर उन्होंने बंजर जमीन को आबाद करने की ठानी और अपने खेतों के साथ गांव छोड़ चुके अन्य लोगों की जमीन पर उगी झाड़ियों को काटना शुरू किया। उन्होंने एक जोड़ी बैल भी खरीदा, लेकिन खेत आबाद किए तो जंगली जानवर मुसीबत बन गए।
फसलों को बचाने के लिए बिरेंद्र ने जिले के आला अफसरों के साथ कृषि विभाग के चक्कर काटने शुरू कर दिए। नतीजतन कृषि विभाग ने आबाद की गई जमीन पर तारबाड़ करा दी। उद्यान विभाग की मदद से रावत ने करीब 20 बीघे जमीन पर आलू, मटर और मसूर की खेती की है। पांच नाली भूमि पर आम और लीची के पेड़ लगाए हैं।
रावत बताते हैं कि वर्ष 2017 में जब उन्होंने गांव में बंजर खेतों को खोदना शुरू किया तो लोग मजाक उड़ाते थे। अब जब मेहनत रंग लाने लगी है तो वही लोग उनकी तारीफ करते नहीं अघाते हैं। वर्षों पहले गांव छोड़ चुके लोग दूर दूर से उनके खेत देखने आते हैं। निलाड़ा गांव में दो दशक पहले तक 30 परिवार थे।
अब केवल चार परिवार हैं और उनमें भी ज्यादातर बुजुर्ग बचे हैं। उनका कहना है कि अभी सिंचाई के लिए पानी नहीं है। इसलिए सीजनल सब्जी ही उगा रहे हैं। उनको उद्यान विभाग की ओर से 50 प्रतिशत छूट पर सब्जियों के बीज उपलब्ध कराए गए हैं। इसके अलावा उन्होंने आम और लीची का बागीचा भी तैयार किया है।
पौड़ी के अपर जिला उद्यान अधिकारी पीडी ढौंडियाल कहते हैं कि बिरेंद्र सिंह रावत विपरीत परिस्थितियों में गांव में सब्जी उत्पादन के लिए तो आसपास के लोगों में मिसाल बन चुके हैं।