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अपनी असफलताओं से सबक लेकर भारतीय मूल के रिचर्ड ब्रैनसन बने अरबपति

रिचर्ड ब्रैनसन के गिर कर उठने की कहानी...

अपनी असफलताओं से सबक लेकर भारतीय मूल के रिचर्ड ब्रैनसन बने अरबपति

Friday December 13, 2019 , 4 min Read

जिंदगी में पैसा ही सब कुछ नहीं, व्यक्ति की निजी दिलचस्पियां भी कितने बड़े मायने रखती हैं, यह हुनर तो कोई ब्रिटेन में भारतीय मूल के अरबपति रिचर्ड ब्रैनसन से सीखे। वही रिचर्ड, जिनकी कंपनी वर्जिन अटलांटिक का पुणे-मुंबई रूट पर हाइपरलूप नेटवर्क खड़ा करने का महाराष्ट्र सरकार से करार है। रिचर्ड को एक ताज़ा लैब टेस्ट से पता चला है कि उनके पूर्वज कडलोर (तमिलनाडु) के रहने वाले थे।

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रिचर्ड ब्रैनसन (फोटो: Social Media)

पुणे-मुंबई रूट पर हाइपरलूप नेटवर्क खड़ा करने के लिए महाराष्ट्र सरकार के साथ करार करने वाली ब्रिटेन की वर्जिन अटलांटिक कंपनी के अरबपति मालिक रिचर्ड ब्रैनसन तरह-तरह की गतिविधियों, अभिरुचियों से निजी सरोकार रखते हुए बताते हैं, एक ताज़ा लैब टेस्ट से उन्हे पता चला है कि चार पीढ़ी पहले उनकी पूर्वज एरिया 1793 में कडलोर (तमिलनाडु) में रहती थीं। अब उन्होंने एरिया नामक अपनी पूर्वज की फोटो मुंबई से लंदन के बीच उड़ान भरने वाले अपने विमानों में लगाने का फैसला किया है। विदेशी मूल की एरिया ने उनके पूर्वज से शादी की थी।


इस समय 400 कंपनियों के मालिक रिचर्ड ब्रैनसन सिर्फ अरबपति बिजनेसमैन ही नहीं, उन्होंने कुछ वर्ष पहले एक बार अपने दोस्त टोनी फर्नांडिस से एक शर्त लगाई और हारने के बाद पैरों की वैक्सिंग कराने के बाद टोनी के हाथों महिला एयर होस्टेस के मेकअप और ड्रेस में पूरे दिन एयर एशिया की फ्लाइट में खुद यात्रियों को सर्विस दी। यात्री उन्हे इस अनोखे अंदाज में देखकर लोटपोट हो गए। इसके लिए उनको एयरलाइंस ने एक सर्टिफिकेट भी दिया।


रिचर्ड का जन्म लंदन में हुआ। उनकी मां बैले डांसर और एयर होस्टेस रही थीं। पिता वकील थे। 69 वर्षीय रिचर्ड ब्रेनसन की जिंदगी के कई अध्यायों से आज भी ज्यादातर लोग अपरिचित हैं। स्कूल के दिनों में वह पढ़ाई में बहुत कमजोर थे। वह खुद स्वीकारते हैं कि स्कूल के छात्र और शिक्षक उन्हे सबसे बड़ा मूर्ख समझते थे।

स्कूल के अंतिम दिन प्रिंसिपल ने कहा था कि या तो वह जेल में रहेंगे या करोड़पति बनेंगे। उसके बाद वह सोचने लगे कि क्या उनमें कोई खासियत नहीं है? तब उन्हे एहसास हुआ कि उनके पास जुनूनी होने का एक बड़ा हुनर है। अपनी उसी खासियत को उन्होंने अपनी शख्सियत में तब्दील कर लिया और 1970 के दशक में स्थापित उनके वर्जिन ग्रुप की चार सौ कंपनियों की आज टोटल नेटवर्थ 410 करोड़ डॉलर है। उन्होंने खुद पर भरोसा कर वर्जिन कंपनी खड़ी कर दी।





कोई भी व्यक्ति कोशिश करने से कभी नहीं हारता, वह या तो जीतता है या फिर कुछ बड़ा कर गुजरने के बारे में ठीक से सीख लेता है। अपनी जिंदगी में उन्होंने पहले कभी ये नहीं सोचा था कि वह इस मुकाम तक पहुंच जाएंगे। उन्हे डिसलेक्सिया बीमारी थी। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को पढ़ने और ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होती है। ऐसे हालात में वह कभी नहीं सोच सकते थे कि अपने साथियों से ज्यादा सफल हो पाएंगे लेकिन उनकी यही कमजोरी उनकी ताकत बन गई।


रिचर्ड ब्रैनसन ने पंद्रह साल की उम्र में ही स्कूल से ड्रॉपआउट ले लिया। फिर 1966 में वह 'स्टूडेंट' मैग्जीन निकालने लगे लेकिन वह पूरा प्रोजेक्ट आखिरकार फ्लॉप होकर रह गया। उस असफलता से भी उन्होंने भविष्य का एक बड़ा सबक लिया तो उनको ऑनलाइन बिजनेस का आइडिया मिला और वर्जिन ग्रुप की नींव पड़ी। उस समय उन्हे पहले के सगे लोगों ने किसी भी तरह के सहयोग से इनकार कर दिया। उसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।


रिचर्ड जब अकेले बिजनेस में हाथ आजमाने लगे, उनके साथियों ने सोचा था कि वह इस काम में भी असफल हो जाएंगे। रिचर्ड कहते हैं, असफलता बहुत प्यारी चीज है। रिस्क लीजिए, असफल होइए। इससे मुश्किलों का जमीनी अनुभव मिलता है। वह 16 साल की उम्र में ही कारोबार की दुनिया में दाखिल हो गए थे। बाईस साल की उम्र तक उन्होंने वर्जिन का रिकॉर्ड बना दिया। आज वह औरों के प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं।

 




रिचर्ड ब्रैनसन बताते हैं कि उनके रिकॉर्ड लेबल ने उनके लिए एक रिकॉर्डिंग स्टूडियो और नाइट क्लब खरीदने का रास्ता खोला। उनकी मां ने उन्हे सिखाया था कि बेटे, कभी बीत चुकी बातों का अफसोस मत करना। इसलिए वह कारोबार के मामले में पुरानी बातों के बारे में कभी नहीं सोचते हैं। एक उद्यमी के लिए इससे बड़ा सबक और क्या हो सकता है। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों से काफी पहले अंतरिक्ष की यात्रा के बारे में सोच लिया था। इसी तरह उन्होंने वर्जिन गैलेक्टिक के लिए पहले ही बाजार को भांप लिया।


फिलहाल, रिचर्ड महाराष्ट्र की नवागत शिवसेना सरकार से जानना चाहते हैं कि उनके हाइपरलूप प्रोजेक्ट को लेकर वह उत्साहित है या नहीं, क्योंकि उनको पूरा विश्वास है कि उनका वर्जिन हाइपरलूप वन प्रोजेक्ट 21वीं सदी के भारत पर वैसा ही असर करेगा, जैसा 20वीं सदी में ट्रेनों ने किया था।