डॉलर मजबूत हो या रुपया कमजोर, महंगाई बढ़ना तो दोनों ही सूरतों में तय है; जानिए कैसे
शुक्रवार को अमेरिकी मुद्रा की तुलना में रुपया 8 पैसे फिसलकर 82.35 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था.
डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में कमी का सिलसिला जारी है. इस बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने अमेरिकी डॉलर (US Dollar) के मुकाबले इस वर्ष भारतीय मुद्रा रुपये (Rupee) में आई 8 प्रतिशत की गिरावट को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हुए कहा है कि कमजोरी रुपये में नहीं आई है बल्कि डॉलर में मजबूती आई है. बता दें कि शुक्रवार को अमेरिकी मुद्रा की तुलना में रुपया 8 पैसे फिसलकर 82.35 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक की सालाना बैठकों में शामिल होने के बाद सीतारमण ने संवाददाताओं से बातचीत में भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद को मजबूत बताया. उन्होंने कहा कि अमेरिकी डॉलर की मजबूती के बावजूद भारतीय रुपये में स्थिरता बनी हुई है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में भारत में मुद्रास्फीति कम है और मौजूदा स्तर पर उससे निपटा जा सकता है.
रुपये में गिरावट आने से जुड़े एक सवाल के जवाब में वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘सबसे पहली बात, मैं इसे इस तरह नहीं देखूंगी कि रुपया फिसल रहा है बल्कि मैं यह कहना चाहूंगी कि रुपये में मजबूती आई है. डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है. मजबूत हो रहे डॉलर के सामने अन्य मुद्राओं का प्रदर्शन भी खराब रहा है लेकिन मेरा खयाल है कि अन्य उभरते बाजारों की मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपया ने बेहतर प्रदर्शन किया है.’’
अगर आम आदमी के हिसाब से सोचें तो दोनों की सूरतों में उसके लिए मुश्किलें बढ़ना तय है. रुपया गिरे या डॉलर चढ़े, दोनों ही परिस्थितियों में चीजों के आयात के लिए देश से तो भारी मात्रा में करेंसी बाहर जाएगी. इसका असर आखिरकार देश में महंगाई में वृद्धि के तौर पर सामने आएगा. नतीजा आम आदमी पर मार.
रुपया गिरने से कैसे होता है नुकसान
डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में कमी की वजह से देश की अर्थव्यवस्था पर सीधा असर यह होता है कि इंपोर्ट बिल बढ़ जाते हैं. जब रुपये में कमजोरी आती है तो हर वह चीज जो आयात की जाती है मसलन- पेट्रोलियम पदार्थ, उर्वरक, खाद्य तेल, कोयला, सोना, रसायन, .....वगैरह की कीमतों में इजाफा होता है. हम जो भी सामान विदेश से मंगवाते हैं, उसकी कीमत डॉलर में होती है. ऐसे में हमें उस डॉलर मूल्य के बराबर रुपये में पेमेंट करना होता है. डॉलर का मूल्य रुपये के मुकाबले जितना ज्यादा चढ़ेगा, देश से उतनी ही ज्यादा करेंसी आयात के लिए बाहर जाएगी. नतीजा विदेशी मुद्रा भंडार कम होने लगता है. ऐसे में देश में सामान मंगाना महंगा होता जाएगा और उसकी भरपाई के लिए उस सामान का दाम भारत के अंदर बढ़ाना पड़ेगा. RBI की कैलकुलेशन के मुताबिक, रुपये में हर 5% की गिरावट महंगाई में 0.10% से 0.15% की बढ़ोतरी करती है,.
भारत के इंपोर्ट बिल में बहुत बड़ा हिस्सा क्रूड ऑयल यानी कच्चे तेल का होता है, जिसे रिफाइन करके पेट्रोल-डीजल, एलपीजी, पीएनजी, एटीएफ आदि को बनाया जाता है. देश में महंगा क्रूड आयात होना मतलब, उससे बनने वाले उत्पादों का महंगा होना और नतीजा आम आदमी का बजट बिगड़ना. पेट्रोल-डीजल महंगा होने से सामान के परिवहन की लागत बढ़ना और इसकी भरपाई के लिए उत्पादकों का उस सामान को महंगा करना. लिहाजा फल-सब्जी समेत कई तरह की चीजों के दाम बढ़ जाना. CNG, LPG, PNG महंगी होने से गाड़ी चलाना और खाना पकाना महंगा हो जाना. एटीएफ के दाम बढ़ने से एयर टिकट के दाम बढ़ जाना यानी हवाई सफर महंगा.
गिरते रुपये का यह असर क्रूड के अलावा इंपोर्ट की जाने वाली तमाम चीजों पर पड़ता है. इनमें खाने के तेल से लेकर फर्टिलाइजर और स्टील तक हर तरह की चीजें शामिल हैं. इतना ही नहीं, इन इंपोर्टेड चीजों का कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल करके बनने वाली वस्तुओं की लागत भी बढ़ जाती है.
विदेशी कर्ज पर ब्याज का बढ़ जाता है बोझ
रुपये में गिरावट का एक और बड़ा नुकसान यह होता है कि इससे विदेशी मुद्रा में लिए गए सारे कर्ज और उन पर दिए जाने वाले ब्याज में अचानक बढ़ोतरी हो जाती है. इनमें सरकार द्वारा लिए गए विदेशी लोन के अलावा सरकारी और प्राइवेट बैंकों और कंपनियों द्वारा लिए गए फॉरेन करेंसी लोन भी शामिल हैं. इसके अलावा विदेश में पढ़ाई करना भी महंगा हो जाता है.
शेयर बाजार में भी होती है उथल-पुथल
रुपये में लगातार गिरावट से शेयर बाजार में भी उथल-पुथल मचती है. विदेशी निवेशकों का भरोसा घटता है और वह डॉलर की मजबूती को देखकर भारतीय शेयर बाजारों से पैसे निकालने लगते हैं. नतीजा शेयर बाजार नीचे आ जाते हैं. विदेशी निवेशकों के इस कदम से रुपये में कमजोरी और बढ़ने का खतरा रहता है.
रुपये को संभालने के चलते घट रहा विदेशी मुद्रा भंडार
हाल ही में ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अमेरिकी मुद्रा डॉलर, यूरो और येन जैसी अन्य आरक्षित मुद्राओं के मुकाबले दो दशक के उच्च स्तर पर पहुंच गई है. इसने इन मुद्राओं की होल्डिंग की डॉलर वैल्यू को कम कर दिया. इसकी वजह से दुनिया भर में विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign-Currency Reserves) में काफी तेजी से गिरावट आ रही है. भारत से लेकर चेक गणराज्य तक, कई देशों के केंद्रीय बैंकों ने अपनी-अपनी मुद्रा को समर्थन देने के लिए हस्तक्षेप किया है. भारत की बात करें तो भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 7 अक्टूबर 2022 तक 532.87 अरब डॉलर था, जो एक साल पहले के 642.45 अरब डॉलर से कहीं कम है.
रुपये में कमजोरी के कुछ फायदे भी
रुपये में कमजोरी को आम तौर पर एक्सपोर्ट/निर्यात करने वालों के लिए अच्छी खबर माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि रुपये में गिरावट होने पर विदेशी बाजार में भारतीय वस्तुओं और सेवाओं की कीमत कम हो जाती है, जिससे उनकी मांग बढ़ने की उम्मीद रहती है. साथ ही डॉलर में मिलने वाले पेमेंट को रुपये में एक्सचेंज करने पर मिलने वाली रकम बढ़ जाती है. हालांकि ध्यान रहे कि अगर निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में आयातित कच्चे माल का इस्तेमाल हुआ है या जिन देशों को निर्यात किया जा रहा है, उन देशों की मुद्रा भारतीय रुपये के मुकाबले कमजोर हुई है तो रुपये में गिरावट का फायदा निर्यात में भी नहीं होता है. लेकिन ऐसे उत्पाद जिनमें आयातित कच्चे माल का इस्तेमाल न हुआ हो या और हम ऐसे किसी देश को आयात कर रहे हों जहां की मुद्रा में कमजोरी भारतीय मुद्रा की तुलना में कम हो, तो रुपये में कमजोरी का फायदा एक्सपोर्ट के मामले में होता है.
इसके अलावा एक फायदा यह भी है कि कमजोर रुपया घरेलू उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाता है. इसकी वजह है कि रुपये में कमजोरी से महंगे हुए आयात को कम करने के लिए आयात घटाया जाता है, जिससे घरेलू स्तर पर बनी वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ जाती है.
देश में कहां पहुंच चुकी है महंगाई
खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी के चलते खुदरा मुद्रास्फीति सितंबर 2022 में 5 महीने के उच्चस्तर 7.4 प्रतिशत पर पहुंच गई. खुदरा मुद्रास्फीति लगातार 9वें महीने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दो से छह प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित खुदरा महंगाई सितंबर में 7.41 प्रतिशत पर पहुंच गई. यह अगस्त में 7 प्रतिशत और सितंबर, 2021 में 4.35 प्रतिशत थी. खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति इस साल सितंबर में बढ़कर 8.60 प्रतिशत हो गई, जो अगस्त में 7.62 प्रतिशत थी.
हालांकि मैन्युफैक्चरिंग प्रॉडक्ट्स की कीमतों में नरमी, खाद्य वस्तुओं और ईंधन के दाम में कमी आने से थोक कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति (WPI or Wholesale Inflation) सितंबर में लगातार चौथे महीने घटकर 10.7 प्रतिशत पर आ गई. थोक मूल्य सूचकांक (WPI) पर आधारित मुद्रास्फीति इससे पिछले महीने, अगस्त में 12.41 प्रतिशत थी. यह पिछले साल सितंबर में 11.80 प्रतिशत थी. WPI इस वर्ष मई में 15.88% के रिकॉर्ड ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थी. WPI मुद्रास्फीति में लगातार चौथे महीने गिरावट का रुख देखने को मिला है. सितंबर 2022 में लगातार 18वें महीने, यह दहाई अंकों में रही.
सीतारमण ने बातचीत में यह भी कहा, ‘‘भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद अच्छी है, व्यापक आर्थिक बुनियाद भी अच्छी है. विदेशी मुद्रा भंडार अच्छा है. मैं बार-बार कह रही हूं कि मुद्रास्फीति भी इस स्तर पर है जहां उससे निपटना संभव है." उन्होंने कहा कि वह चाहती हैं कि मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत से नीचे आ जाए, इसके लिए सरकार भी प्रयास कर रही है. बाकी की दुनिया की तुलना में अपनी स्थिति को लेकर हमें सजग रहना होगा. वित्त मंत्री वित्तीय घाटे को लेकर पूरी तरह से सतर्क हैं.
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