शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता... बुनियादी सुविधाएं पाने में ग्रामीण भारत की ऐसे मदद कर रहे हैं रॉनी स्क्रूवाला
देश के जाने-माने बिजनेसमैन रॉनी स्क्रूवाला का एनजीओ स्वदेस फाउंडेशन भी ग्रामीण भारत को देश की विकास की धारा से जोड़ने के लिए पिछले 10 सालों से लगा हुआ है. आजादी की 75वीं सालगिरह के मौके पर 2200 गांवों में काम करने वाले स्वदेश फाउंडेशन ने 75 ड्रीम विलेज का टारगेट अचीव कर लिया है.
आजादी के 75 साल पूरे कर चुके भारत ने बीते 15 अगस्त को इस उपलब्धि का जमकर जश्न मनाया. इसके लिए सरकार ने एक साल तक आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम भी चलाया. इस दौरान 75 सालों में देश के विकास के क्रम में हासिल की गई उपलब्धियों का जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया गया.
हालांकि, एक तरफ जहां देश दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की कर रहा है तो वहीं दूसरी तरफ भारत जैसे विशाल देश में अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है. विकास के क्रम में जहां शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है तो वहीं सरकार की अनेकों योजनाओं के बावजूद ग्रामीण भारत विकास की रफ्तार को पकड़ नहीं पा रहा है.
शहरीकरण और ग्रामीण जीवनस्तर के बीच की गहरी खाई को भरने के लिए सरकार से लेकर सिस्टम तक और सिस्टम के बाहर के लोग जीतोड़ कोशिश करते रहते हैं. इसमें सामाजिक कार्यकर्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. हालांकि, ऐसे कामों में बिजनेसमैन भी पीछे नहीं रहते हैं.
ऐसे ही देश के जाने-माने बिजनेसमैन रॉनी स्क्रूवाला (Ronnie Screwvala) का एनजीओ स्वदेस फाउंडेशन भी ग्रामीण भारत को देश की विकास की धारा से जोड़ने के लिए पिछले 10 सालों से लगा हुआ है. आजादी की 75वीं सालगिरह के मौके पर 2200 गांवों में काम करने वाले स्वदेस फाउंडेशन ने 75 ड्रीम विलेज (Dream Village) का टारगेट अचीव कर लिया है.
क्या है ड्रीम विलेज इनिशिएटिव?
स्वदेस फाउंडेशन का ड्रीम विलेज प्रोग्राम एक समग्र 360 डिग्री रुरल डेवलपमेंट मॉडल है. यह ग्रामीण भारत में गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वालों का जीवनस्तर ऊपर उठाने और सुधारने पर फोकस करता है.
इसका उद्देश्य 4 मुख्य विषयों जल और स्वच्छता, स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा और आर्थिक विकास (आजीविका) के माध्यम से सामाजिक रूप से प्रेरित आर्थिक विकास और ग्रामीण सशक्तिकरण के साथ लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के माध्यम से एक स्थायी शासन मॉडल बनाना है. इस प्रोग्राम के तहत महाराष्ट्र के रायगढ़ और नासिक के 2200 गांवों में 5 लाख लोगों की जिंदगी में बदलाव लाया गया.
ऐसे हुई शुरुआत
YourStory से बात करते हुए स्वदेस फाउंडेशन के फाउंडर रॉनी स्क्रूवाला ने कहा कि साल 2012 में जब मैंने अपनी मीडिया और एंटरटेनमेंट कंपनी UTV का Walt Disney में विलय कर दिया तब पहली बार मेरे पास लोन के बजाय बैंक बैलेंस था और हमने इसे बड़े पैमाने पर ले जाने का विचार किया.
साल 2013 में स्क्रूवाला ने एनजीओ मॉडल को समझने के लिए 300-400 एनजीओ से मुलाकात की. उन्होंने बांग्लादेश के भी बहुत से लोगों से मुलाकात की क्योंकि उनका मॉडल बहुत ही अच्छा है. उससे प्रेरणा लेकर वह समग्र मॉडल लेकर आए.
रॉनी स्क्रूवाला ने 2013 में अपनी पत्नी जरीना स्क्रूवाला के साथ मिलकर एनजीओ स्वदेस फाउंडेशन की शुरुआत की थी. स्वदेस फाउंडेशन का लक्ष्य हर पांच साल में 10 लाख ग्रामीण जीवन को सशक्त बनाना है, जिससे समुदायों को अपने जीवन की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार किया जा सके और उन्हें गरीबी से बाहर निकाला जा सके. स्वदेस में करीब 1000 कम्यूनिटी वालंटियर्स हैं जबकि कुल स्टाफ की संख्या 300 से अधिक है.
स्क्रूवाला कहते हैं कि साल 2013 में स्वदेस फाउंडेशन शुरू करने के बाद शुरुआती दो साल हमने ग्राम विकास समिति (विलेज डेवलपमेंट कमिटी) बनाने में लगाए. कमिटी बनने के बाद हमें ग्रामीणों से जुड़ने के तीन मुख्य बिंदु मिल गए. पहला यह कि उन्हें लगने लगा कि यह उनका काम है. इसके बाद वे बताने के लगे की कमियां कहां, विकास के कौन से कार्य कराने हैं, इसे कैसे आगे बढ़ाना है.
रॉनी आगे बताते हैं कि विलेज डेवलपमेंट कमिटी में हमने पुरुषों, महिलाओं और युवाओं संतुलित अनुपात देखा. इसके साथ ही हमें महिलाएं लीडरशिप रोल में दिखीं और हमने आशा वर्कर्स की तर्ज सुरक्षा मित्र का ढांचा तैयार किया.
हमारे ट्रस्ट की पहली कर्मचारी रायगढ़ के ग्रामीण इलाके से आई थीं. उन्होंने हमसे कहा कि यहां आकर देखिए कि पानी की क्या स्थिति है, टॉयलेट की स्थिति है और हमने वहां जाकर देखा. इस तरह हमारी इस यात्रा की छोटी सी शुरुआत हुई थी.
स्क्रूवाला ने कहा कि स्वदेस फाउंडेशन की 20 साल की जर्नी में हमारे पास देने के लिए बहुत कुछ नहीं था, लेकिन फिर भी हमने लगातार सोसायटी को कुछ देने की कोशिश जारी रखी. शुरुआत में हमारे पास 10 हजार वर्ग फीट का रेंटेड ऑफिस था और उसमें से 1000 वर्ग फीट हमने वृद्धाश्रम और क्रेच (माता-पिता की अनुपस्थिति में बच्चों की देखभाल की जगह) के लिए दिया.
ड्रीम विलेज के लिए 40 क्राइटेरिया
स्क्रूवाला बताते हैं कि हमारे पास ड्रीम विलेज बनाने के लिए 40 क्राइटेरिया है. पानी, टैप वाटर, ओपन डेफिकेशन फ्री (ODF) तो बेसिक चीजें हैं. इसके साथ ही स्कूलों में स्टूडेंट्स की 100 फीसदी उपस्थिति, कम से कम 10वीं क्लास पास करना, पक्का मकान और आय के दो साधन भी इसका हिस्सा हैं.
उन्होंने कहा कि किसी के पास जमीन नहीं है तो हमने उन परिवार के युवाओं को स्किल्ड किया है ताकि वे जॉब या कोई काम कर सकें. वहीं, अगर किसी के घर के युवा रोजगार के लिए पुणे, महाराष्ट्र या शोलापुर जाते हैं तो उनके लिए गांव में ही रोजगार मुहैया कराना जैसे कि पोल्ट्री उद्योग शुरू कराना.
प्रभाव
स्क्रूवाला बताते हैं कि हमने नासिक के 200 और रायगढ़ के 2000 गांवों में पानी, स्वच्छता, हेल्थ, एजुकेशन, लाइवलीहुड को लेकर काम करना किया क्योंकि ऐसे अभावग्रस्त गांवों में एक काम करके आप कभी भी सफल नहीं हो सकते हैं.
पानी- स्वदेस फाउंडेशन ने ड्रीम विलेज गांवों में टैप वाटर मुहैया कराए हैं. इसके साथ ही एनजीओ यह भी सुनिश्चित किया कि उसका बेजा इस्तेमाल न हो. एनजीओ ने इस बात का भी ध्यान रखा है कि वाटर सिस्टम का पूरा देखभाल हो ताकि उनका लंबे समय तक इस्तेमाल हो सके.
बता दें कि, भारत सरकार भी अगस्त 2019 से राज्यों के साथ साझेदारी में जल जीवन मिशन को लागू कर रही है, जिसके तहत 2024 तक देश के हर ग्रामीण घर में जल से नल (टैप वाटर) की आपूर्ति की जानी है. पिछले महीने संसद के मानसून सत्र के दौरान सरकार ने बताया था कि देश में पिछले 35 महीने में जल जीवन मिशन के तहत 6.57 करोड़ ग्रामीण घरों में नल से जल का कनेक्शन दिया गया है.
टॉयलेट- सरकार ने 2019 में ही भारत को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर दिया था, लेकिन 2019-21 में कराये गये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 के ताजा सर्वे में सामने आया है कि 19 प्रतिशत परिवार किसी शौचालय सुविधा का उपयोग नहीं करते. स्वदेस फाउंडेशन ने ड्रीम विलेजेज को ओडीएफ कर दिया है जबकि बाकी गांवों में भी इस दिशा में काम चल रहा है.
स्क्रूवाला ने कहा कि टॉयलेट के मामले में सबसे पहली बात यह आती है कि उसका कितना इस्तेमाल हो रहा है. हर कोई कह सकता है कि उसके पास टॉयलेट है, लेकिन इसका यह बिल्कुल मतलब नहीं है कि विलेजेज खुले में शौच से मुक्त (ODF) हो गए हैं. अगर आप पानी की समस्या का समाधान किए बिना टॉयलेट बनवाते हैं तो उनका कभी इस्तेमाल ही नहीं होगा. इस तरह पानी और टॉयलेट के इंफ्रास्ट्रक्चर की समस्या के समाधान के लिए हमने नॉन-कम्यूनिटी टॉयलेट पर फोकस किया है.
हेल्थ- स्क्रूवाला ने कहा कि हेल्थ के मामले में हमने सबसे अधिक फोकस आईकेयर पर किया क्योंकि आईसाइट प्रॉब्लम मुख्य तौर पर साइकोलॉजी से जुड़ा है. इसके बाद हम कुपोषण पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो कि ग्रामीण भारत की एक बड़ी समस्या है. हमने सुरक्षा मित्रों को लेकर प्री-मैटर्नल और पोस्ट मैटर्नल पर काम करना शुरू किया. ड्रीम विलेजेज में आज 100 फीसदी डिलीवरी अस्पतालों में हो रही है.
एजुकेशन- स्क्रूवाला ने कहा कि एजुकेशन पर काम करना सबसे मुश्किल टास्क है क्योंकि आज भी हमारे स्कूल सैकड़ों साल पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं. उनका समाधान निकालने के लिए हम आज भी प्रयासरत हैं. हम उनके लिए ऑन्त्रप्रेन्योर कोर्सेज, केमिस्ट्री-फिजिक्स कोर्सेज, इंग्लिश स्पीकिंग कोर्सेज के माध्यम से एक संपूर्ण और वेलबीइंग एजुकेशन उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं.
वह कहते हैं कि लेकिन सबसे बड़ा बदलाव स्कूलों में लाइब्रेरी मुहैया कराने से आएगा जो कि कोई भी अन्य चीज करने से 10 गुना बेहतर है. स्कूलों में आज भी लाइब्रेरी प्रिंसिपल्स के कमरों में होता है, जो कि ताले से बंद होता है. वहां से किताबें मांगकर पढ़ने के लिए स्टूडेंट्स में हिम्मत होनी चाहिए.
जीवनयापन- स्क्रूवाला ने कहा कि ग्लोबल स्टैटिक्स है कि दुनिया की 60 फीसदी आबादी आर्थिक साक्षरता को नहीं समझती है. इसलिए जीवनयापन पर फोकस करने से हमारा मतलब है कि हम अगले 5-6 सालों में ग्रामीणों की आय तीगुनी कर दें. इसके लिए हम उन्हें आय के कम से कम दो अतिरिक्त सोर्स मुहैया कराने पर काम कर रहे हैं. वे या तो कृषि या कुटीर उद्योग से जुड़ें या फिर कोई स्किल्ड जॉब हासिल करें.
ऐसे जीता ग्रामीणों का विश्वास
स्क्रूवाला कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में लोगों के लिए काम करने के लिए सबसे पहले उनका विश्वास जीतना जरूरी होता है. अगर आप कुछ अच्छा करने की कोशिश करेंगे तो लोग आप पर संदेह करने लगेंगे कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? कहीं चुनाव लड़ने का इरादा तो नहीं है? और ऐसी ही बहुत सी बातें होती हैं.
उन्होंने कहा कि इसके साथ ही, आप किसी के घर में घुसकर यह नहीं कह सकते हैं कि हम आपके घर को पेंट करेंगे. पिछले 20-22 सालों की मेहनत का नतीजा है कि हम आज कम्यूनिटीज का विश्वास जीत पाए हैं. विलेज डेवलपमेंट कमिटीज इस विश्वास को बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभा रही हैं.
स्क्रूवाला बताते हैं कि कई बार लोग कहते हैं कि आप यह क्यों कर रहे हैं, यह तो सरकार का काम है. लेकिन सब कुछ सरकार का काम नहीं होता है. सरकार के साथ भी सबसे बड़ी समस्या विश्वास बनाने की है. एक बार जब हम 100 बिस्तरों के अस्पताल में गए तो तो वहां देखा कि केवल चार मरीज थे. वहां अस्पताल चलाने वाली लेडी से हमने बात की तो उन्होंने बताया कि मैं अपना एक साल का बच्चा छोड़कर गांव में सेवा करने आई हूं लेकिन इलाके के लोगों को सरकारी अस्पताल पर विश्वास नहीं है.
गांव में काम करने को लेकर युवाओं की मानसिकता बदलने की आवश्यकता
स्क्रूवाला ने कहा कि युवाओं में गांव में काम करने को लेकर एक इज्जत का भाव पैदा कराना जरूरी है. युवाओं को लगता है कि गांव में काम करने में कोई इज्जत नहीं है, जो कि सरासर गलत है.
उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी जैसे गलत कारणों से रिवर्स माइग्रेशन शुरू हुआ था. लेकिन गांवों के लिए वह एक सकारात्मक बदलाव के रूप में आया है. अब वे वापस आकर देख रहे हैं कि गांव में पानी आ गया है, टॉयलेट बन गए हैं. अब हम यहां पर अपना डेयरी, पोल्ट्री जैसा बिजनेस स्टार्ट करके ऑन्त्रप्रेन्योर बन सकते हैं. इस तरह मेरा मानना है कि ग्रामीण भारत को सशक्त बनाना एक अच्छी बात है.
अभी कोई गांव सांसद आदर्श ग्राम योजना का हिस्सा नहीं
स्क्रूवाला बताते हैं कि हमारे शुरुआती 75 ड्रीम विलेजेज में एक भी ऐसा गांव नहीं है जो कि भारत सरकार के सांसद आदर्श ग्राम योजना का हिस्सा हो. हालांकि, अगले दो-तीन साल में हम 750 ड्रीम विलेज पर काम करने वाले हैं उसमें कुछ गांव ऐसे होंगे जो कि सांसद आदर्श ग्राम योजना का हिस्सा होंगे.
यंग बनाता है बार-बार जीरो से शुरुआत करना
रॉनी स्क्रूवाला को देश के सफलतम कारोबारियों में माना जाता है. इसके साथ ही वह लगातार एक्सपेरिमेंट भी करते रहते हैं. अलग-अलग तरह के कारोबार में उन्होंने सफलता के झंडे गाड़े हैं. देश में सबसे पहले उन्होंने केबल टीवी लाकर एक नई शुरुआत की थी. इसके बाद टूथब्रश मैन्यूफैक्चरिंग में कई झटके खाने के बाद उन्होंने देश में टूथब्रथ मैन्यूफैक्चरिंग का बड़ा कारोबार खड़ा किया.
टीवी होम शॉपिंग की असफलता से भी रॉनी डिगे नहीं और आखिरकार उन्होंने मीडिया और एंटरटेनमेंट कंपनी UTV की शुरुआत की 15 सालों तक सफल कारोबार के बाद उन्होंने साल 2012 में वाल्ट डिज्नी में उसका विलय कर दिया. रॉनी कहते हैं कि मेरे कारोबार में इतनी विविधता इसलिए है क्योंकि मुझे अभी जवान रहना है. जीरो पर आकर वापस शुरुआत करना आपको यंग बनाए रखता है. यह मेरे लिए बहुत अच्छे से काम करता है.
अब एजुकेशन सेक्टर पर कर रहे हैं फोकस
अपने आगे के प्लान के बारे में बात करते हुए स्क्रूवाला कहते हैं कि
के कारण मेरा आगे का ज्यादातर फोकस एजुकेशन पर है.बता दें कि, अपग्रैड देश औऱ दुनिया में तेजी से आगे बढ़ रहे एजुकेशन-टेक्नोलॉजी (एडटेक) से जुड़ी कंपनी है. अपग्रैड ने पिछले साल अगस्त में 1.2 बिलियन डॉलर के वैल्यूएशन के साथ यूनिकॉर्न क्लब में प्रवेश किया था. जून में इसने कथित तौर पर 2.25 बिलियन डॉलर के वैल्यूएशन पर एक नए राउंड की फंडिंग में 225 मिलियन डॉलर जुटाए.
मुंबई स्थित कंपनी के पास 100 से अधिक देशों में 3 मिलियन से अधिक लर्नर्स हैं और 300 से अधिक यूनिवर्सिटीज पार्टनर हैं. अपग्रैड ने अपनी स्थापना के बाद से 13 स्टार्टअप का अधिग्रहण किया है. इसकी 1000 कंपनियां क्लाइंट हैं.
यही नहीं, रॉनी स्क्रूवाला को न्यूजवीक भारत का जैक वार्नर कह चुकी है जबकि एस्क्वायर ने उन्हें 21वीं सदी के 75 सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक का दर्जा दिया और फॉर्च्यून ने उन्हें एशिया के 25 सबसे शक्तिशाली लोगों में से एक बताया था.