थर्ड जेंडर बच्चों की जिंदगी में शिक्षा का उजाला भर रही हैं संगरूर डेरा प्रमुख प्रीति महंत
"संगरूर (पंजाब) के रेड़ी रोड स्थित किन्नर डेरे की प्रमुख प्रीति महंत थर्डजेंडर बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाकर देश का सुशिक्षित प्रबुद्ध नागरिक बनाना चाहती हैं। उनकी एक ऐसी ही चहेती बच्ची है थर्ड जेंडर विश्वनूर। इसमें वह खुद की जिंदगी के खुरदरे अक्स देख पाती हैं। डेरे पर नवागत बच्चों की गीत-संगीत से अगवानी होती है।"
बच्चों का भविष्य संवारने में जुटीं संगरूर (पंजाब) के रेड़ी रोड स्थित किन्नर डेरे की प्रमुख प्रीति महंत कहती हैं कि भले ही अब हमें थर्ड जेंडर कहा जाने लगा है, लेकिन समाज में किन्नरों की जिंदगी बेहद बदतर बनी हुई है। किसी प्रकार की सुविधा उन्हें नहीं दी जाती है। अपने हकों के लिए भी वे जागरूक नहीं हैं। हमारी नई पीढ़ी यदि सुशिक्षित होगी तो ही इस दुर्दशा से उबर सकेगी। डेरे पर किन्नर बच्चों को अमानत समझा जाता है। उनकी बेहतर परवरिश कर सुखद-प्रबुद्ध जीवन जीने के लिए प्रेरित किया जाता हैं। किसी नए बच्चे की अगवानी में डेरे पर बच्चे का गीत-संगीत से स्वागत किया जाता है।
प्रीति कहती हैं कि यद्यपि कई बार स्कूल किन्नर बच्चों को दाखिला देने से मना कर देते हैं, लेकिन कई स्कूल सहमत हो जाते हैं।
इस समय उनकी कोशिश के चलते संगरूर समेत कई शहरों में ऐसे बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है।
वह नहीं चाहतीं कि डेरे में छोड़ दिए गए बच्चे केवल इसलिए मुश्किल जिंदगी जिएं कि वे थर्ड जेंडर हैं। इसमें उनका क्या कुसूर है।
आम किन्नरों से अलग पहचान रखने वाली डेरा प्रमुख प्रीति महंत बताती हैं कि उनकी शरण में आए थर्ड जेंडर बच्चे स्कूल में सामान्य बच्चों के साथ पढ़ाए जा रहे हैं।
कुछ साल पहले उन्होंने नवजात थर्ड जेंडर विश्वनूर को गोद लिया था। वह उस समय मात्र सात दिन की थी।
जब वह कुछ बड़ी हुई तो अक्सर डेरे के बाहर से रोजाना गुजरने वाली स्कूल वैन के पीछे भागने लगी। तभी उनकी नजर उस पर पड़ी तो उसी दिन उन्होंने सोच लिया कि वह इसे आम बच्चों की तरह पढ़ाएंगी। उसका स्कूल में दाखिल करा दिया।
वहीं से थर्डजेंडर बच्चों को पढ़ाने-लिखाने की जिम्मेदारी को उन्होंने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद बना लिया। अब तो वह चाहती हैं कि विश्वनूर उच्च शिक्षा प्राप्त कर एक काबिल आइपीएस अफसर बने। वह सोच रही हैं कि विश्वनूर का ऑपरेशन कराएंगी ताकि वह एक सामान्य महिला का जीवन जी सके।
स्कूल की अध्यापिका अंजलि वर्मा प्रीति की पहल को दिल से सराहती हैं। शिक्षा पर सबका बराबर का हक है। विश्वनूर खूब मन लगाकर पढ़ती है। पढ़ाई में बहुत अच्छी है। वह अपने पाठ्यक्रम को लेकर हमेशा सजग रहती है।
प्रीति बताती हैं कि उनकी बचपन से आजतक की जिंदगी तो शहरों में नाचते-गाते हुए बीती है। न कोई नौकरी, न और कोई रोजी-रोजगार, अब तो किन्नरों को समाज ने भी हाशिये पर धकेल रखा है।
उनको भी पढ़ने का बड़ा शौक था, लेकिन अवसर नहीं मिला। जिंदगी में हासिल तो काफी कुछ किया, लेकिन शिक्षा का अरमान दिल में ही धरा रह गया।
अब आगे किसी के साथ ऐसा न होगा ताकि हमारी नई पीढ़ी को स्कूल-कॉलेज जाने का मौका मिले और वे समाज में आसान और सम्मान की जिंदगी जी सकें। नाच-गाकर जिंदगी बसर करना तो किन्नरों की एक मजबूरी है।
आज तमाम किन्नर उच्च शिक्षा हासिल कर जमाने को दिखा चुके हैं कि वह भी किसी से कम नहीं हैं। इन बच्चों की जिंदगी बधाई मांगने तक ही सीमित न रहे, इस बात को ध्यान में रखती हुई वह इस समय आधा दर्जन से अधिक बच्चों को स्कूल भेज कर पढ़ा-लिखा रही हैं।