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कैसे राजस्थान के एक गाँव में माताओं और नवजात शिशुओं के लिए बुनियादी स्वास्थ्य सेवा को सुलभ बना रही हैं शांता गर्ग

कैसे राजस्थान के एक गाँव में माताओं और नवजात शिशुओं के लिए बुनियादी स्वास्थ्य सेवा को सुलभ बना रही हैं शांता गर्ग

Tuesday September 24, 2019 , 3 min Read

भारत में, क्वालिटी हेल्थकेयर कई वर्षों से अमीरों और प्रभावशाली लोगों का विशेषाधिकार बनी हुई है। 1.2 बिलियन से अधिक आबादी वाले देश में, प्रत्येक 1,000 नागरिकों के लिए केवल 0.7 डॉक्टर और 1.1 बेड हैं। यह आंकड़ा बताता है कि भारत में स्वास्थ्य सेवा कितनी दुर्गम है।


यह चिंता का विषय है, लेकिन बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं को हाशिये पर रहने वाले लोगों के लिए सुलभ बनाना समय की आवश्यकता है। हालांकि राजस्थान के एक गांव में ये बदलाव ला रही हैं शांता गर्ग। उदयपुर जिले के बड़गांव ब्लॉक में पड़ने वाले गांव डुलावतो का गुडा में शांता गर्ग ने बुनियादी स्वास्थ्य सेवा को आसान बनाने के लिए बेहद ही सराहनीय काम किया है।


Shanta

फोटो में शांता गर्ग अपने पति के साथ

शांता समुदाय और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के बीच संपर्क प्रदान करके गांव में महिलाओं और बच्चों के लिए जीवन की नई उम्मीद देने में सहायक रही हैं।


शांता गर्ग पोस्ट ग्रेजुएट हैं। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद शांता विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से बच्चों और उनकी माताओं को शिक्षित करने के लिए हर दिन लगभग 10 घरों में जाती हैं।


NDTV से बात करते हुए, उन्होंने कहा,

“हम बच्चों और माताओं को शिक्षित करने के लिए सूचना शिक्षा और संचार (आईईसी) गतिविधियों का भी उपयोग करते हैं। हम खेल और कहानियों जैसी आईईसी गतिविधियों का उपयोग करते हैं, उन्हें स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण के महत्व को सिखाते हैं। ये हमारे गाँव के लिए बहुत अच्छा साबित हुआ है।”


मदर्स और ग्रैंड मदर्स के लिए आयोजित सत्र पहले 1,000 दिनों में पोषण के महत्व को समझाने के साथ शुरू होता है। इसमें जब बच्चा गर्भ में आता है तब से लेकर पहले छह महीनों तक बच्चे को स्तनपान कराना आदि शामिल होता है।


उन्होंने सामने आई चुनौतियों के बारे में बात करते हुए कहा,


“इससे पहले, जागरूकता की कमी के कारण, हमारे गाँव में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत प्रदान की गई सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए बेहद कम गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण होता था। मुझे पता चला कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि महिलाओं के ससुराल वालों ने उन पर प्रतिबंध लगा रखा है और वे खुद आकर उनका पंजीकरण नहीं कराते हैं। तब मुझे लगा कि मुझे अब किससे बात करनी चाहिए। एक साल तक सास-बहूओं को मजबूर करने, समझाने और शिक्षित करने के बाद, वे अब अपनी बहुओं को हमारे साथ पंजीकृत करने और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच बनाने के लिए ला रही हैं।"
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वर्तमान में शांता के गांव के पर्यवेक्षक कन्हैया लाल के अनुसार, प्रत्येक बच्चे को उचित पोषण और टीकाकरण प्राप्त हो रहा है। इसके अलावा, माताओं को अच्छी तरह से पता होता है कि गर्भावस्था के दौरान क्या खाना चाहिए और अपने नवजात शिशुओं की देखभाल कैसे करनी चाहिए। आउटलुक के अनुसार, शांता को हाल ही में उनके योगदान के लिए पहचाना गया और उन्हें आउटलुक पोषण अवार्ड्स 2019 से सम्मानित किया गया।


बस इतना ही नहीं, शांता के काम को IPE द्वारा भी नोटिस किया गया है, जो कि भारत भर में आंगनवाड़ियों के साथ विभिन्न प्रशिक्षण सत्र आयोजित करने वाली एक इंडियन-इंटरनेशनल डेवलपमेंट कंसल्टेंसी है।


वह कहती हैं,

"मैं उस प्रगति से खुश हूँ जो मैं पिछले 12 वर्षों में बना पाई हूँ, और केवल आने वाले वर्षों में इसे बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहती हूँ।"