घरेलू हिंसा की सताई हुईं सिंगल मदर चेतना मेहरोत्रा का अनोखा स्टार्टअप 'रंगभूमि'
घरेलू हिंसा की सताई हुई चेतना मेहरोत्रा के 'रंगभूमि : ए हैप्पी प्लेग्राउंड' स्टार्टअप से इस समय मुंबई के पांच स्कूलों के साथ ही हैदराबाद, पुणे और बेंगलुरु के लगभग तीन हजार क्रिएटिव स्कूली बच्चे जुड़े हुए हैं। चेतना काव्यात्मक थियेटर जैसे अपने इस बेमिसाल सृजन को 'ड्रामा फॉर लर्निग एन्ड रिफ्लेक्शन ऑफ लाइट' कहती हैं।
युवाओं को अपनी भाव-भंगिमाओं के इस्तेमाल से किरदार निभाने का हुनर सिखाता है चेतना मेहरोत्रा का 'रंगभूमि : ए हैप्पी प्लेग्राउंड' स्टार्टअप। इसे काव्यात्मक थियेटर भी कहा जा सकता है।
बच्चों को इस हुनर में निपुण किया जाता है कि कैसे हर थियेटर के माध्यम से वे सभ्य और जीवंत नागरिक समाज का हिस्सा बन सकते हैं। यह स्टार्टअप अपने किरदारों को रोजमर्रा की सतह से ऊपर उठाकर स्टेज, सार्वजनिक मंचों तक ले जाता है।
चेतना अपने स्टार्टअप को सिर्फ थियेटर क्रिएटिवटी न मानकर इसे 'ड्रामा फॉर लर्निग एन्ड रिफ्लेक्शन ऑफ लाइट' कहती हैं।
करीब तीन साल तक अकेले दम पर चलाती रहीं चेतना की टीम में आज लगभग चार दर्जन क्रिएटिव लोग सक्रिय हैं, जिनमें से पांच कोर टीम का हिस्सा हैं।
रंगभूमि ने इंटरनेशन थियेटर शैली, जैसे- प्लेबैक थियेटर, थियेटर ऑफ ऑपरेट, थियेटर इन एजुकेशन जैसी आर्ट शैली की शुरुआत की है।
इस समय उससे मुंबई के पांच स्कूल जुड़े हैं। कौन हैं चेतना मेहरोत्रा, आइए, पहले इस सवाल को जान लेते हैं।
अपने उस खौफ़नाक अतीत के पन्ने पलटती हुईं चेतना बताती हैं,
"मैं मुंबई की रहने वाली हूं। दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद मैंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से समर एप्लिकेशन प्रोग्राम किया और कथक का भी प्रशिक्षण लिया। पढ़ाई के बाद मेरी शादी हो गई। शादी के कुछ साल बाद से ही जिंदगी के उतार-चढ़ाव शुरू हो गए थे। मामूली कहासुनी के बाद अक्सर पति हाथापाई करने लगे। इस बीच मेरे बेटे का जन्म हुआ। मुझे लगा कि अब सब कुछ सही हो जाएगा। पर कुछ ही महीने बाद फिर से मारपीट शुरू हो गई। इस सबसे तंग आकर आखिरकार एक दिन मैंने पति से अलग होने का फैसला कर लिया।"
वह कहती हैं,
"घरेलू उत्पीड़न से तंग आकर जब मैंने पति का घर छोड़ा, एक साथ तमाम तरह की मुश्किलों ने घेर लिया। कुछ दिन अवसाद में भले रही लेकिन मेरा हुनर मेरे साथ था। मैं अपने सपनों को पूरा करने के लिए साहस के साथ दोबारा उठी, और फिर 'रंगभूमि : ए हैप्पी प्लेग्राउंड' का उदय हुआ।"
जुझारू महिला चेतना मेहरोत्रा बताती हैं,
"लगभग एक दशक तक घरेलू उत्पीड़न बर्दाश्त करती हुई जिस रात मैंने घर छोड़ा, उस समय मेरे पास रहने के लिए छत भी नहीं थी, लेकिन मैंने सोच लिया था कि अब इसे और सहन नहीं करना है। पति का घर छोड़ने के बाद मैं चाहकर भी नौकरी नहीं कर सकती थी, क्योंकि उन दिनो मेरा बेटा छोटा था। तब मैंने तय किया कि अपने हुनर के जरिये ही जिंदगी को आगे बढ़ाना है। उस समय घरेलू हालात के साथ ही आर्थिक दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा। अकेली होने के कारण रंगभूमि के साथ-साथ बच्चे की परिवरिश का भी ध्यान रखना पड़ता था।"
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वह कहती हैं,
"शुरुआत में लोग यह नहीं समझ पाते थे कि उनके लिए यह आर्ट शैली क्यों उपयोगी है। मैं उनको बताती थी कि युवाओं पर, कम्यूनिकेशन स्किल पर, लीडरशिप स्किल पर कैसे थियेटर के जरिये भी काम किया जा सकता है। दो-तीन साल तक मुझे इससे कुछ खास फायदा नहीं हुआ। पर धीरे-धीरे लोगों को समझ में आने लगा कि रंगभूमि एक अलग तरीके की शैली है, जो सही मायने में जीने का मकसद सिखाती है।"
वर्ष 2011 से 'रंगभूमि : ए हैप्पी प्लेग्राउंड' युवाओं को थियेटर से जोड़कर रोजगार के नए मौके दिला रहा है।
मुंबई, पुणे, बेंगलुरू, हैदराबाद समेत कई शहरों के स्कूलों और कॉरपोरेट सेक्टर से वह युवाओं और महिलाओं को जोड़ रहा है।
आमतौर पर थियेटर स्क्रिप्ट पर आधारित होता है, जबकि रंगभूमि कलाकारों को सीधे दर्शकों के साथ जोड़ देता है।
इसका पाठ्यक्रम कक्षा एक से 12वीं तक के बच्चों के लिए डिजाइन किया गया है। कक्षा के हिसाब से बच्चों को थियेटर की अलग-अलग शैली सिखाई जाती है। समाज में जागरूकता लाने के उद्देश्य से समय-समय पर कैंसर अस्पताल, झुग्गी बस्तियों, जेल, अनाथ आश्रमों आदि में भी इसके बच्चे और युवा कलाकार प्रस्तुतियां देते रहते हैं।
अब तक करीब 350 स्कूली बच्चों को प्रशिक्षित कर चुके ‘रंगभूमि’ के साथ इस समय लगभग 3000 बच्चे जुड़ हुए हैं। आज शून्य से शिखर तक का सफर तय करने वाली चेतना मेहरोत्रा किसी मिसाल से कम नहीं हैं। वह जानती हैं कि इरादे मजबूत हों तो आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है।