टियर II और III शहरों में को-वर्किंग कल्चर को लाने का लक्ष्य बना रहा है पटना स्थित वर्क स्टूडियो
ज्यादातर शहरों में स्टार्टअप की चर्चा होती है। हालांकि ज्यादातर स्टार्टअप बेंगलुरु, दिल्ली, और मुंबई जैसे टियर I शहरों से शुरू हुए हैं लेकिन पटना, इंदौर, चंडीगढ़ और कोच्चि जैसे टियर II शहर भी इस मामले में बहुत पीछे नहीं हैं। हाल ही में, अपने संबोधन के दौरान, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 44 प्रतिशत से अधिक स्टार्टअप अब टियर II और III शहरों से हैं, और ये देश के 419 जिलों में फैले हुए हैं।
लेकिन फिर भी, इन स्टार्टअप्स के सामने एक चुनौती बनी हुई है। वो चुनौती है रिलाएबल वर्किंग और अफॉर्डेबल वर्किंग स्पेस की। हालांकि इस सेगमेंट में मैट्रो सिटीज में WeWork, Cowrk, Innov8 और CoLive जैसे स्टार्टअप हैं जो को-वर्किंग स्पेस की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं लेकिन छोटे कस्बे और शहरों में क्वालिटी को-वर्किंग स्पेस की कमी है।
बाजार में इस अंतर को पाटते हुए, आलोक कुमार (26), प्रतीक कश्यप (25), राहुल सम्राट (27), इशान पॉल (29), और सोनू सौरव (29) ने अप्रैल 2018 से पटना में वर्क स्टूडियो को-वर्किंग (Work Studio Coworking) शुरू किया।
स्टार्टअप न केवल 'शानदार' इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइड करने का दावा करता है, बल्कि व्यवसायों को शहर में खुद को बढ़ावा देने के लिए एक सहयोगी समुदाय (collaborative communit) भी प्रोवाइड कराता है। आलोक कहते हैं, "कर्मचारी अपने अधिकतर जीवन में काम करता रहता है इसलिए वह उम्मीद करता है कि उसे काम करने के लिए एक अच्छा ऑफिस मिले जहां विभिन्न पृष्ठभूमि के लोग हों ताकि वह बेहतर अवसर पा सके।"
अपने लॉन्च के सिर्फ एक साल में ही कंपनी ने 2 करोड़ रुपये का लाभदायक कारोबार किया।
असफलता से सीख
संस्थापकों के पास बीटेक और बीकॉम का बैकग्राउंड है। उनका कहना है कि वर्क स्टूडियो बनाने की राह उनकी विफलता से शुरू हुई। आलोक कहते हैं, ''हम सभी के पास अपने-अपने स्टार्टअप थे, लेकिन उनमें से सभी एक-एक करके फेल हो गए।"
बिना अपने अगले कदम के बारे में जाने, सभी ने अवसरों की तलाश में, विभिन्न ईवेंट्स और मीटिंग्स में भाग लेना शुरू कर दिया। यही वह समय था जब ये पांचों लोग 2017 में पटना में एक स्टार्टअप कार्यक्रम में मिले थे।
आलोक कहते हैं, "हम सभी को पता है कि हमारे शहर (पटना) में ज्यादा सैलरी वाली नौकरियां हैं, स्टार्टअप और यहां तक कि कई सारे ईवेंट्स भी होते हैं। लेकिन जो नहीं है वो है उचित वर्कस्पेस।"
इसी समय बैंगलोर, मुंबई और दिल्ली से स्टार्टअप्स सुर्खियों में आ रहे थे। इसी को ध्यान में रखते हुए इन पांचों ने वर्क स्टूडियो लॉन्च करने का फैसला किया। सभी को स्टार्टअप का अनुभव पहले से ही था। इन पांच सह-संस्थापकों के अलावा, वर्क स्टूडियो के पास आज अपनी टीम में 15 सदस्य हैं।
आकर्षक बाजार
मैट्रो शहरों में लोग पिछले कुछ वर्षों से को-वर्किंग के कॉन्सेप्ट से परिचित हैं लेकिन लेकिन यह भारत के टियर II और टियर III शहरों में अपेक्षाकृत एक नया कॉन्सेप्ट है। आलोक कहते हैं कि यहां ज्यादातर स्टार्टअप किराए पर कमरा लेकर काम करते हैं। इसलिए, टीम ने इस नए कॉन्सेप्ट को फैलाने के लिए लोगों से मीटिंग की, ईवेंट और कोलाब्रेशन किया। एक मजबूत नींव की स्थापना के बाद, वर्क स्टूडियो ने बिहार की राजधानी पटना में अपने पहले को-वर्किंग स्पेस के साथ बाजार में कदम रखा। इसके बाद, उन्होंने रांची में दो, गुरुग्राम में एक स्टूडियो शुरू किया, और इंदौर में एक और शुरू करने जा रहे हैं।
आलोक कहते हैं, "टियर II और टियर III शहरों में को-वर्किंग स्पेस होने से न केवल रिवर्स माइग्रेशन शुरू करने की क्षमता होगी, बल्कि उद्यमियों का एक वाइब्रेंट इकोसिस्टम बनाने की क्षमता भी होगी, और अंततः इससे राज्य की अर्थव्यवस्था में वृद्धि होगी।"
रिवेन्यू और फंडिंग
सुविधाओं और सेवाओं को प्रदान करने के अलावा, वर्क स्टूडियो का कहना है कि यह सामर्थ्य को महत्व देता है। को-वर्किंग स्पेस बिल्डिंग्स को उसके मालिकों और बिल्डरों से किराए पर लेता है, और इसे स्टार्टअप्स को दे देता है। आलोक कहते हैं, ''हमने यूनिट्स के लिए फंड जुटाकर और प्रॉपर्टी ओनर्स के साथ पार्टनरशिप मॉडल बनाकर प्रॉपर्टीज डेवलप की हैं।'' वर्तमान में यह स्टार्टअप बूटस्ट्रैप्ड है। शुरू में सभी संस्थापकों ने स्टार्टअप में अपनी-अपनी व्यक्तिगत बचत से 50,000 रुपये इनवेस्ट किए।
मौजूदा समय में यह अपने चार स्थानों में 500 सीटें ऑफर करता है। यह विभिन्न कैटेगरीज के तहत सीटें ऑफर करता है - ओपन डेस्क, डेडीकेटेड डेस्क, प्राइवेट चैंबर और वर्चुअल ऑफिस। सीटों की रेंज 3,500 रुपये (बजट को-वर्किंग के लिए) और 5000 रुपये (डेडीकेटेड सीटों के लिए) प्रति माह हैं।
स्टार्टअप्स के लिए कम लागत वाले वर्कस्पेस प्रोवाइड करने के अलावा, वर्क स्टूडियो टीमों के लिए फ्लेक्सिबिलिटी को आवश्यकतानुसार और आगे बढ़ने की अनुमति देता है। इसी तरह, उनके सभी स्पेस सेंट्रली स्थित हैं। वर्तमान में, इसके कुछ प्रमुख ग्राहकों में Zomato, Swiggy, PhonePe, Car24, Udaan, DeHaat, Cloudtail जैसे स्टार्टअप्स और कुछ MSMEs और फ्रीलांसर्स शामिल हैं।
आलोक कहते हैं, ''हमारी हाल की छह महीने पुरानी युनिट में अभी पांच सीटें बची हैं।"
बाजार अवलोकन
भारत में को-वर्किंग स्पेस मार्केट आज पारंपरिक काम के माहौल को प्रभावित कर रहा है। GCUC (ग्लोबल को-वर्किंग अनकंफ्रेंस कॉन्फ्रेंस) के अनुसार, 2017 में दुनिया भर में कुल 1.7 मिलियन को-वर्किंग मेंबर थे, जो 2022 तक पांच मिलियन के निशान को छूने की उम्मीद है। इस ट्रेंड का लाभ उठाते हुए, हाल ही में, नई-दिल्ली स्थित Awfis ने सीरीज D में 30 मिलियन डॉलर और गुरुग्राम स्थित GoWork ने 53 मिलियन डॉलर का ऋण जुटाया। इसके अतिरिक्त, यूनिकॉर्न हॉस्पिटैलिटी चैन OYO ने अपना खुद का को-वर्किंग स्पेस शुरू करने के लिए Innov8 को खरीदा था। इस स्पेस में भारत के कुछ प्रमुख नाम जैसे WeWork, CoWrks, 99Springboard, और Awfis जल्द ही सभी टियर II और टियर III शहरों में एंट्री कर सकते हैं।
हालांकि, वर्क स्टूडियो को जो चीज सबसे अलग बनाती है वो है इसकी टारगेट ऑडियंस। आलोक कहते हैं, "हम टियर II और टियर III शहरों में को-वर्किंग स्पेस डेवलप करने का लक्ष्य बना रहे हैं।" उनका मानना है कि टीयर II और III शहरों के लिए ऑफिस स्पेस की आवश्यकताएं अलग-अलग हैं। चंडीगढ़ स्थित को-वर्किंग स्पेस Next57 भी इस समस्या को हल करने के लिए काम कर रहा है।
भविष्य की योजनाएं
लॉन्च के सिर्फ एक साल में 2 करोड़ रुपये का टर्नओवर देखने के बाद, स्टार्टअप अब सक्रिय रूप से फंड जुटाने की तैयारी में है। आलोक कहते हैं,
''हम अपने टारगेट को तय करने और समय से पहले हासिल करने के लिए फंडिंग की तलाश कर रहे हैं।'' हालांकि, वे कहते हैं, उनके पास "फंडिंग की परवाह किए बिना, 2020 के अंत तक 25 को-वर्किंग स्पेस खोलने की योजना है।"