चपरासी की नौकरी से लेकर 8340 करोड़ रेवेन्यु वाली कंपनी तक, भारत के Fevicol Man की कहानी
बात चाहे बुक्स के कवर चिपकाने की हो या घर की दीवारों पर रंग रोगन की, चाहे जूते का सोल चिपकाना हो या फर्नीचर बनाना हो...Pidilite के Fevicol ब्रांड का सच में जवाब नहीं..
'फेविकोल का मजबूत जोड़ है, टूटेगा नहीं...' यह टैगलाइन तो आपने सुनी ही होगी. अपनी टैगलाइन के ही अनुरूप फेविकोल (Fevicol) ने भारतीयों के साथ कुछ ऐसा मजबूत जोड़ चिपकाया कि देश के हर घर में उसका इस्तेमाल होने लगा. बात चाहे बुक्स के कवर चिपकाने की हो या घर की दीवारों पर रंग रोगन की, चाहे जूते का सोल चिपकाना हो या फर्नीचर बनाना हो...पिडिलाइट (Pidilite) के Fevicol ब्रांड का सच में जवाब नहीं..
Fevicol ब्रांड की ही बदौलत
फेमस हुई और Fevicol लोकप्रिय हुआ, इसके दिलचस्प और क्रिएटिव विज्ञापनों की वजह से. Fevicol ब्रांड ने मार्केटिंग और 'स्टेड एडहेसिव' के कॉन्सेप्ट को एक नई परिभाषा दी. एडहेसिव यानी गोंद. एक वक्त ऐसा भी था, जब ग्लू का दूसरा नाम ही Fevicol पड़ गया. आज Fevicol की मार्केटिंग 54 देशों में होती है और इसका इस्तेमाल कारपेंटर, इंजीनियर, शिल्पकार, इंडस्ट्री से लेकर आम लोग भी करते हैं. Fevicol भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाला गोंद है.भारत के फेविकोल मैन बलवंत राय कल्याणजी पारेख
1925 में गुजरात के भावनगर जिले के महुआ कस्बे में जन्मे बलवंत राय कल्याणजी पारेख (Balvantray Kalyanji Parekh ), Fevicol बनाने वाली कंपनी पिडिलाइट इंडस्ट्रीज के फाउंडर थे. उन्होंने वकालत में डिग्री हासिल तो की लेकिन कभी प्रैक्टिस नहीं की. उल्टा वह मुंबई में एक डाइंग व प्रिंटिंग प्रेस में काम करने लगे. इसके बाद वह लकड़े के एक व्यापारी के कार्यालय में चपरासी बने, जहां वह वेयरहाउस में अपनी पत्नी के साथ रहते थे. लेकिन बलवंतराय को अपना बिजनेस करना था तो उन्होंने मोहन नाम के एक निवेशक की मदद से साइकिल, एरेका नट, पेपर डाइज को पश्चिमी देशों से भारत में इंपोर्ट करने का बिजनेस शुरू किया.
कब शुरू हुई Pidilite इंडस्ट्रीज
बलवंत ने जर्मनी की कंपनी Hoechst को भारत में रिप्रेजेंट करने वाली फेडको के साथ 50 प्रतिशत की एक पार्टनरशिप की थी. 1954 में Hoechst के एमडी के बुलावे पर बलवंत एक महीने के लिए जर्मनी गए. Hoechst के एमडी की मृत्यु के बाद बलवंत ने अपने भाई सुशील के साथ मिलकर मुंबई के जैकब सर्किल में डाई, इंडस्ट्रियल केमिकल्स, पिगमेंट एमल्शंस यूनिट की मैन्युफैक्चरिंग और ट्रेडिंग शुरू की. कंपनी का नाम था Parekh Dyechem Industries. इसके बाद पारेख ने फेडको में और ज्यादा हिस्सेदारी की खरीद शुरू की और एक ग्लू बनाया, जिसे नाम दिया गया 'Fevicol'. Fevicol नाम जर्मन शब्द कोल से प्रेरित था, जिसका अर्थ है ऐसी चीज जो दो चीजों को जोड़ती है. जर्मनी कंपनी भी ऐसा ही एक प्रॉडक्ट मोविकोल बनाती थी. Fevicol की लॉन्चिंग 1959 में हुई. इसके बाद कंपनी में बलवंत के एक और भाई नरेन्द्र पारेख भी जुड़े. 1959 में ही कंपनी का नाम बदलकर पिडिलाइट इंडस्ट्रीज हो गया.
शुरुआत में पिडिलाइट एक इंडस्ट्रियल केमिकल कंपनी थी क्योंकि उस वक्त गोंद बिना किसी ब्रांड के बेचे जाते थे. कंपनी का कंज्यूमर फेसिंग परसोना 1970 के दशक में विकसत होना शुरू हुआ. यह वह वक्त था, जब पिडिलाइट ने Fevicol ब्रांड के तहत अपने एडहेसिव्स के विज्ञापन की दिशा में एक टेंटेटिव कदम उठाया. Ogilvy and Mather (O&M) एडवर्टाइजिंग एजेंसी के मार्गदर्शन में Fevicol का हाथी वाला सिंबल क्रिएट हुआ. पिडिलाइट के जिन कैंपेन्स को आज भी याद किया जाता है, वे 1980 के दशक के आखिर में अस्तित्व में आए. O&M में पीयूष पांडे, कंपनी को उसकी पहचान बनाने में मदद करने का माध्यम बने.
लीक से हटकर मार्केटिंग स्ट्रैटेजी
Fevicol ब्रांड के लिए पिडिलाइट ने लीक से हटकर मार्केटिंग की. Fevicol को कारपेंटर्स यानी बढ़ई के लिए एक ईजी टू यूज ग्लू के तौर पर कोलेजन और जानवरों की चर्बी पर बेस्ड गोंद को रिप्लेस करने के लिए लॉन्च किया गया था. कोलेजन और फैट बेस्ड गोंद, आम भाषा में सरेश के रूप में जाना जाता है. इसे अप्लाई करने से पहले पिघलाने की जरूरत होती है. Fevicol को पॉपुलर बनाने के लिए पारेख ब्रदर्स ने इसे रिटेल स्टोर्स को न बेचकर सीधा कारपेंटर्स को देना शुरू किया. यह उस वक्त बिल्कुल नया कदम था.
1993 में शेयर बाजार पर लिस्टिंग
जब Fevicol की एंट्री हुई, उस वक्त पिडिलाइट केवल एक फैक्ट्री के साथ केवल एक प्रॉडक्ट बनाती थी, जो था Fevicol. इसके बाद 1963 में कंपनी ने मुंबई के कोंडिविटा गांव में पहला आधुनिक मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाया. वर्तमान में इसी इमारत में कंपनी का कॉरपोरेट हेड ऑफिस चल रहा है. 1990 में पिडिलाइट इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड इनकॉरपोरेट हुई और 1993 में यह शेयर बाजार पर लिस्ट हुई. तेजी से ग्रोथ दर्ज करते हुए कंपनी ने देश के साथ-साथ विदेशों भी अपने पांव फैलाए. 1997 में कंपनी को एफई ब्रांडवैगन ईयर बुक 1997 द्वारा टॉप 15 इंडियन ब्रांड्स में जगह दी गई. साल 2000 में कंपनी ने एमसील को खरीद लिया और एक नई डिवीजन सेटअप हुई. साल 2001 में डॉ. फिक्सइट- द वाटरप्रूफिंग एक्सपर्ट को लॉन्च् किया गया. इतना ही नहीं Fevicol को साल 2002 में कान्स लॉइन्स इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ क्रिएटिविटी में सिल्वर लॉइन अवॉर्ड मिला. Fevicol का 'बस एड' काफी पॉपुलर हुआ था. साल 2004 में पिडिलाइट 1000 करोड़ रुपये के टर्नओवर पर जा पहुंची. 2004 में ही फेविकोल मरीन लॉन्च हुआ.
आज कितनी बड़ी है Pidilite
पिडिलाइट इंडस्ट्रीज अमेरिका, ब्राजील, थाइलैंड, इजिप्ट, बांग्लादेश, दुबई आदि में भी बिक्री करती है. बीएसई के मुताबिक, इस वक्त पिडिलाइट इंडस्ट्रीज का टर्नओवर 5.34 करोड़ रुपये है. कंपनी का मार्केट कैप 1,09,729.04 करोड़ रुपये और बीएसई पर शेयर की कीमत 2158.75 रुपये है. वित्त वर्ष 2021-22 में पिडिलाइट का रेवेन्यु 8,340.17 करोड़ रुपये रहा था. जनवरी-मार्च 2022 तिमाही में पिडिलाइट का रेवेन्यु 2,084.40 करोड़ रुपये रहा. पिडिलाइट के प्रॉडक्ट्स की बात करें तो Fevicol के अलावा फेविक्विक, डॉ. फिक्सइट, एमसील, फेविकोल मरीन, फेविकोल एसएच, फेविकोल स्पीड एक्स, फेविकोल स्प्रे, फेविकोल फ्लोरिक्स, फेविकोल फोमिक्स आदि लिस्ट में शामिल हैं. पिडिलाइट की 2013 तक 14 सब्सिडियरी थीं.
धीरूभाई अंबानी के दोस्त थे बलवंत राय
बलवंत राय, रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries Limited) के फाउंडर धीरूभाई अंबानी (Dhiru Bhai Ambani) के अच्छे दोस्त भी थे. बलवंत राय को साल 2011 में जे टैलबॉट विन्शेल अवॉर्ड मिला था और 2012 में बिजनेस मैगजीन फोर्ब्स ने उन्हें अपनी रिच लिस्ट में 45वां स्थान दिया था. बलवंत राय विनायल केमिकल्स के चेयरमैन भी रहे. 25 जनवरी 2013 को वह इस दुनिया को अलविदा कह गए.