वेटर और क्लीनर जैसे काम करके भारत को गोल्ड दिलाने वाले नारायण की कहानी
जिंदगी में कितनी भी मुश्किलें आ जाएं, इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत करने वाले हमेशा विजय हासिल कर लेते हैं। 27 वर्षीय भारतीय पैरा एथलीट नारायण ठाकुर की जिंदगी किसी मिसाल से कम नहीं है। नारायण ने बीते साल 2018 में इंडोनेशिया में हुए पैरा एथलीट खेलों में भारत के लिए पहली बार स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। जन्म से ही शरीर के एक तरफ पक्षाघात से पीड़ित नारायण ने टी-35 वर्ग में होने वाली 100 मीटर रेस में स्वर्ण पदक जीता था।
नारायण ने यह रेस रिकॉर्ड 13.50 सेकेंड्स में पूरी की और एशिया में पहला स्थान प्राप्त किया। बिहार के रहने वाले नारायण की कहानी जितनी संघर्षपूर्ण है उतनी ही दिलचस्प भी है। बेहद गरीब परिवार से आने वाले नारायण जब 8 साल के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। इसके बाद उनका जीवन एक अनाथालय में बीता। बचपन से ही शरीर की नि:शक्तता से पीड़ित नारायण का हर वक्त मजाक उड़ाया जाता था।
बीते दिनों को याद करते हुए वे कहते हैं,
'स्कूल में सुबह जब बाकी बच्चों को प्रतियोगिता में पदक जीतने पर सम्मानित किया जाता था तो मेरे मन में भी कुछ करने की इच्छा उठती।'
नारायण देश के लिए पदक जीतने का सपना देखा करते। लेकिन शरीर की अक्षमता के कारण उनका यह सपना नहीं पूरा हो पा रहा था। उधर घर की हालत भी ठीक नहीं थी, इसलिए वे पान की दुकान चलाने लगे। पान की दुकान पर उन्हें रोज सुबह 5 बजे से लेकर रात 10 बजे तक काम करना पड़ता।
घर और अपना गुजारा चलाने के लिए नारायण को कई सारे काम करने पड़े। उन्होंने डीटीसी की बसों में क्लीनर से लेकर पेट्रोल पंप और होटल में वेटर के तौर पर भी काम किया। इतनी कड़ी मेहनत के बावजूद नारायण को ठीक पैसे नहीं मिलते थे। इसी दौरान एक मित्र की सलाह पर नारायण दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम जा पहुंचे। स्टेडियम तक पहुंचने में उन्हें तीन बसें बदलनी पड़ती थीं और चार घंटे सफर करना पड़ता था, लेकिन नारायण ने कभी हिम्मत से हार नहीं मानी।
2015 से लगातार वे दौड़ने का अभ्यास करते रहे। उन्होंने राज्यस्तरीय खेलों में 100 मीटर और 200 मीटर शॉटपुट प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। उन्होंने 2015 में ही नेशनल चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। 2016 में उन्होंने T-37 वर्ग में नेशनल गेम्स में स्वर्ण पदक जीता और 2017 में चीन में होने वाली वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए भी क्वॉलिफाई किया। लेकिन चीन जाने से एक दिन पहले ही उन्हें मालूम चला कि इस सफर का सारा खर्च उन्हें खुद से उठाना पड़ेगा। उन्हें लगभग 1.5 लाख रुपयों की जरूरत थी।
नारायण ने अपने दोस्त और कोच की सहायता से किसी तरह 12 घंटे में 1.5 लाख रुपये इकट्ठा किए और चीन जा पहुंचे। लेकिन कुछ दिक्कतों की वजह से उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा। इसके बाद 2018 में उन्होंने पैरा एशियन गेम्स के लिए क्वॉलिफाई किया और स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। उन्हें सरकार की तरफ से 1 करोड़ के पुरस्कार की घोषणा हुई। लेकिन इसी दौरान उनके पास एक मुसीबत आन पड़ी।
एशियाड गेम्स के पहले नारायण गांधीनगर गए हुए थे जहां उनकी तबीयत खराब हो गई थी। उन्होंने कैंप के डॉक्टर से कुछ दवाएं लीं। उन्होंने डॉक्टर को बताया भी कि उन्हें कोई ऐसी दवाएं न दें जो नाडा या वाडा द्वारा प्रतिबंधित हों। नारायण ने कफ सिरप लिया था और अगले ही दिन उन्हें यूरिन सैंपल दिया। एशियाड गेम्स में पदक जीतने के एक ही दिन बाद नारायण को नाडा से ईमेल मिला कि उनका सैंपल डोप टेस्ट में पॉजिटिव आया है। इसके बाद उनको मिलने वाला अवॉर्ड होल्ड पर रख दिया गया।
नारायण हैरान रह गए थे क्योंकि उन्होंने डॉक्टर को पहले ही बताया था कि कोई प्रतिबंधित दवा न दें। इसके बाद नारायण से यह खिताब छिन जाने का खतरा मंडराने लगा। नारायण तुरंत गांधीनगर पहुंचे और उन्होंने डॉक्टर से लिखित में प्रूफ लिया और वापस दिल्ली आकर सारे दस्तावेजों को सबमिट किया। आखिरकार नारायण को सारे आरोपों से मुक्त किया गया। नारायण मानते हैं कि बाकी खेलों की तुलना में पैराएथलीट पर कम ध्यान दिया जाता है। वे चाहते हैं कि सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है। नारायण अब 2020 में टोक्यो में होने वाले ओलंपिक पर ध्यान दे रहे हैं।
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