ग्रामीण कर्नाटक में 100 से अधिक बच्चों के लिए पूरक स्कूल चला रहे हैं ये दो लोग, वंचित बच्चों पर है फोकस
दूर तक फैले हुए वनस्पति वाले खेतों के बीच, एक तरफ पहाड़ियों से घिरा हुआ और दूसरी तरफ लाल मिट्टी की तरह दिख रहा बेलाकू एजुकेशन ट्रस्ट बच्चों के लिए एक supplemental शिक्षा केंद्र है। ये खूबसूरत जगह पर बसा हुआ ट्रस्ट कहीं और नहीं बल्कि कर्नाटक में स्थित है।
यदि आप कभी कर्नाटक के मंड्या जिले के हैंगरापुरा गाँव में घूमने जाते हैं, तो संभावना है कि आप इस स्थान के बारे में जरूर सुनेंगे। जो चीज बेलाकू एजुकेशन ट्रस्ट (Belakoo Education Trust) को खास बनाती है वो है इसकी टारगेट ऑडियंस: ग्रामीण इलाकों में वंचित (underprivileged) बच्चे।
बेलाकू एजुकेशन ट्रस्ट के संस्थापक शिवानंद कोटेश्वर ने योरस्टोररी को बताया,
“जब हम मांड्या के गाँवों में गए, तो हमने महसूस किया कि ज्यादातर बच्चे गरीब पृष्ठभूमि के थे और हाई स्कूल में पढ़ने के बावजूद बुनियादी अंग्रेजी नहीं जानते थे। कई तो क्लास 10 या 12 के बाद स्कूल ही ड्रॉप कर देते थे। इसके पीछे प्रमुख वजह एक्सपोजर की कमी थी। इसलिए, स्मिता हेमिगई और मैंने इसमें कुछ करने और क्षेत्र में एक पूरक शिक्षा प्रणाली शुरू करने का फैसला किया।"
बेलाकू बिहेवियर मैनेजमेंट के लिए सॉफ्ट स्किल्स, पब्लिक स्पीकिंग, हाइजीन और ग्रूमिंग से लेकर विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित प्रोग्राम चलाता है। केवल इतन ही नहीं। बच्चों को एनालिटिकल थिंकिंग और गाइडेड इनक्वैरी की भावना पैदा करने के लिए फाउंडेशनल सब्जेक्ट्स में ट्रेन भी किया जाता है जैसे- साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, आर्ट और मैथमैटिक्स (STEAM)। अपनी स्थापना के दो साल से अधिक समय हो गया है और बेलाकू आज 105 से अधिक बच्चों के जीवन में सकारात्मक प्रभाव पैदा कर रहा है।
2017 में शिवानंद कोटेश्वर (जिन्हें लोग आमतौर पर शिवू कहकर बुलाते हैं) और स्मिता हेमिगई द्वारा स्थापित, बेलाकू मालवल्ली शहर और उसके आसपास के ग्रामीण स्कूलों के वंचित बच्चों पर ध्यान केंद्रित करता है। हालांकि शिवू का खुद का करियर डिजाइन इंजीनियरिंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), और मोबाइल एंड वायरलेस कम्युनिकेशन फील्ड के आसपास घूमता है, लेकिन वह शैक्षिक सेवाओं के साथ निकटता से जुड़े रहे हैं।
न केवल उन्होंने बेंगलुरु के विभिन्न संस्थानों में पढ़ाया है, बल्कि PES विश्वविद्यालय से संबद्ध CBSE स्कूल अमात्रा अकादमी के निदेशक के रूप में भी कार्य किया है। दूसरी ओर, स्मिता, एक ग्लोबल सॉफ्टवेयर कंसल्टेंसी फर्म थॉटवर्क्स में मार्केटिंग टीम की प्रमुख हैं।
इसकी शुरुआत कैसे हुई
यह सब तब शुरू हुआ जब 2015 में शिवू और स्मिता आईआईएम-बेंगलुरु के एलुमिनाई लीडरशिप कॉन्क्लेव में मिले। शिवू याद करते हुए बताते हैं, "इस कॉन्क्लेव में तकनीकी जानकार अजीम प्रेमजी और किरण मजूमदार शॉ के साथ पैनल चर्चा हुई थी। उन्होंने भारत में परोपकार की संस्कृति और व्यक्तिगत योगदान के महत्व के बारे में बात की, मुझे ईवेंट के बाद अपने सहयोगी श्रीकांत के माध्यम से स्मिता से परिचय हुआ और हमने कुछ कॉमन व्यूज साझा किए। हम दोनों की राय थी कि बहुत सारे लोग जो अपने समुदायों को कुछ वापस देने का काम करते हैं अक्सर उन्हें वह पहचान नहीं मिलती जिसके वे हकदार होते हैं। इसलिए, हमने ऐसे ही सामाजिक व्यक्तित्वों के बारे में लिखने के लिए एक प्लेटफॉर्म शुरू करने का फैसला किया और उनके सामाजिक कार्यों पर प्रकाश डाला।"
बहुत जल्द, दोनों ने परोपकारी नायकों यानी फिलैनथ्रॉपिक हीरोज को सेलीब्रेट करने के लिए एक वेबसाइट 'योर फिलैनथ्रॉपी स्टोरी’ शुरू की। कुछ महीने बाद, दोनों का यह कोलैबोरेशन बेलाकू एजुकेशनल ट्रस्ट के गठन में बदल गया, जब शिवू ने अपने गांव हैंगरापुरा का दौरा किया और पाया कि गाँव के बच्चों के पास बुनियादी शैक्षिक अवसरों तक पहुँच नहीं थी।
शिवू और स्मिता ने तब इस मुद्दे को हल करने के लिए एक पूरक शिक्षा केंद्र के निर्माण की कल्पना की। चूँकि शिवू का खेत सबसे सुविधाजनक स्थान लगता था, इसलिए उन्होंने केंद्र के निर्माण के लिए अपने व्यक्तिगत फंड से 80 लाख रुपये जमा किए।
शिवू कहते हैं,
“शुरुआती चरण हमारे लिए काफी कठिन था। बच्चों को हमारे सेशन्स में शामिल होने के लिए, हमें उनके माता-पिता का विश्वास हासिल करना था। एक और चुनौती थी ऐसे वॉलंटियर्स को ढूंढ़ना जो गांव में जाकर वीकेंड पर बच्चों को पढ़ा सकें। लेकिन, हम इन अड़चनों को दूर करने में कामयाब रहे। हमने 20 छात्रों के साथ शुरुआत की और अब हमारे पास 105 हैं।”
अतुलनीय रचनात्मकता
कन्नड़ में बेलाकू का अर्थ है 'प्रकाश' (Light) होता है। शिवू कहते हैं कि बेलाकू एजुकेशन ट्रस्ट का उद्देश्य बच्चों को आत्म-जागरूक और कुशल बनने के लिए प्रकाश के समान उद्देश्य प्रदान करना है। ट्रस्ट के कार्यक्रम को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह सभी कक्षाओं में बच्चों को खुद के अनुभवात्मक तरीके से सीखने को शामिल करता है।
आसपास के स्कूलों से दाखिला लेने वाले सभी ग्रामीण बच्चों को उनकी उम्र और सीखने के स्तर के आधार पर समूहों में विभाजित किया जाता है। इसके बाद, वॉलंटियर्स बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रत्येक रविवार को सुबह 8.30 से दोपहर 1.30 बजे के बीच उनके गांव जाते हैं।
शिवू बताते हैं,
“हमारे पास प्रत्येक विषय के लिए अच्छी तरह से परिभाषित सीखने के उद्देश्य हैं; अधिकांश पाठ्यक्रम को खेल, गतिविधियों और कहानियों से जोड़कर पढ़ाया जाता है। यह बच्चों को प्रेरित करता है, और एक बेहतर समझ भी बनाता है और उन्हें रचनात्मक सोचने के लिए प्रेरित करता है।”
रविवार सेशन्स को मुफ्त में रखने के अलावा, बेलाकू बच्चों के लिए आवश्यक भोजन, किताबें और अन्य स्टेशनरी भी प्रायोजित करता है। ट्रस्ट का प्रमुख फंड लोगों द्वारा दिए गए व्यक्तिगत दान से आता है।
युवा मन को बदलना
पिछले एक साल से लगभग हर रविवार को बेलाकू में अंग्रेजी पढ़ाने वाले दिनेश पाटिल कहते हैं कि उन्होंने बच्चों के सीखने की अवस्था में सकारात्मक बदलाव देखा है। वे कहते हैं,
“जब मैंने पहली बार कदम रखा, तो कक्षा 5 से नीचे के बच्चों को अक्षर भी नहीं पता थे। हालाँकि, आज, सभी जानते हैं कि कैसे ग्रामेटिकली सही सेंटेंस बनाए जाते हैं और कम्युनिकेट किए जाते हैं। नॉलेज के अलावा, उन्होंने अच्छे गुणों और आदतों को ग्रहण किया है, चाहे वह अनुशासन, ईमानदारी या स्वच्छता के साथ करना हो।”
शिवू के पास भविष्य के लिए विस्तार की योजना है। वे कहते हैं,
“हम सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को पूरा करने के लिए उत्तरी बेंगलुरु में उसी मॉडल को दोहराने के लिए देख रहे हैं। हम अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं और इसलिए, उनके कैंपस के भीतर शिक्षा सत्र आयोजित करने के लिए अपने केंद्र के पास के स्कूलों के साथ टाई करने के लिए नजर रख रहे हैं।”