सुप्रीम कोर्ट ने पुरुषों और महिलाओं के लिए शादी की एक समान न्यूनतम उम्र की मांग वाली याचिका खारिज की

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि मामला संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है और वह इस मुद्दे से नहीं निपटेगा.

हाइलाइट्स

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह उम्र तय करने के लिए संसद को कानून बनाने का निर्देश देने जैसा होगा
  • पीठ ने कहा कि मामला संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है और वह इस मुद्दे से नहीं निपटेगा
  • मौजूदा व्यवस्था में शादी की न्यूनतम आयु पुरुषों के लिए 21 वर्ष तथा महिलाओं के लिए 18 वर्ष रखी गई है

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए शादी के लिए एक समान न्यूनतम उम्र 21 साल करने की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह उम्र तय करने के लिए संसद को कानून बनाने का निर्देश देने जैसा होगा. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि मामला संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है और वह इस मुद्दे से नहीं निपटेगा.

शीर्ष अदालत ने अपने 20 फरवरी के आदेश का हवाला दिया जिसमें उसने अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक अन्य जनहित याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें पुरुषों और महिलाओं के लिए विवाह की कानूनी उम्र में समानता की मांग की गई थी.

पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "यह कानून बनाने जैसा होगा... यह संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है. प्रावधान को खत्म करने से ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां महिलाओं की शादी के लिए कोई न्यूनतम आयु नहीं होगी."

यदि अदालत इस याचिका पर विचार करेगी तो "यह संसद को न्यूनतम आयु तय करने का निर्देश देगी", सीजेआई ने कहा.

"इन कार्यवाही में चुनौती पुरुषों और महिलाओं की शादी की उम्र पर व्यक्तिगत कानूनों के लिए है. हमने 20 फरवरी, 2023 को अश्विनी उपाध्याय बनाम भारत संघ के एक समान मामले का फैसला किया है... पारित आदेश के मद्देनजर, याचिका खारिज की जाती है,” पीठ ने कहा.

याचिका में कहा गया है कि मौजूदा व्यवस्था में शादी की न्यूनतम आयु पुरुषों के लिए 21 वर्ष तथा महिलाओं के लिए 18 वर्ष रखी गई है. ऐसा इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, पारसी मैरिज एंड डिवोर्स एक्ट, स्पेशल मैरिज एक्ट, हिंदू मैरिज एक्ट, बाल विवाह रोकथाम अधिनियम के विभिन्न कानूनी प्रावधानों के कारण हो रहा है. यह महिलाओं के साथ भेदभाव है. इसलिए उनके लिए शादी की आयु 18 साल को अवैध घोषित किया जाए. याचिका में यह भी दावा किया गया है कि शादी की उम्र में अंतर लैंगिक समानता, लैंगिक न्याय और महिलाओं की गरिमा के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है.

शाहिदा कुरैशी द्वारा दायर याचिका में पुरुषों के बराबर महिलाओं के लिए शादी की कानूनी उम्र बढ़ाकर 21 करने की मांग की गई थी.

बाल विवाह को अनिवार्य रूप से गैरकानूनी घोषित करने और नाबालिगों के साथ दुर्व्यवहार को रोकने के लिए कानून विवाह की न्यूनतम आयु निर्धारित करता है. भारत में 1978 से लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है. मौजूदा कानून के मुताबिक, देश में पुरुषों की विवाह की न्यूनतम उम्र 21 और महिलाओं की 18 साल है.

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