अधर में अटकी बिजली परियोजनाओं ने बदला झारखंड के चंदवा का भविष्य
झारखंड में लातेहार जिले का चंदवा 2010 के दशक में तेजी से औद्योगिक नगरी के रूप में विकसित हो रहा था. यहां एस्सार और अभिजीत समूह के दो बड़े बिजली कारखानों का निर्माण हो रहा था. लेकिन, निर्माणाधीन इकाइयों के बंद होने से इस क्षेत्र में आजीविका की समस्या गहरा गई.
झारखंड की राजधानी रांची से करीब 70 किलोमीटर दूर चंदवा कस्बे में प्रवेश करने से पहले एक गेट है. इस पर लिखा है – औद्योगिक नगरी चंदवा में आपका स्वागत है. लेकिन कस्बे के अंदर घुसते ही चारों तरफ हताशा और निराशा दिखाई देती है. एक वक्त था जब यहां दो पावर प्लांट (ताप विद्युत घर) का निर्माण तेजी से हो रहा था. तब ऐसा लगता था कि यह बोकारो के बाद झारखंड का एक और प्रमुख औद्योगिक नगर बन जाएगा. लेकिन समय ने ऐसी पलटी मारी कि लोगों के सारे सपने टूट गए.
लातेहार जिले में आने वाला चंदवा छोटी-सी जगह है. यहां की आबादी एक लाख छह हजार से कुछ अधिक है. पुरुष और महिलाओं की आबादी में करीब दो हजार का फर्क है. यहां की ब्लॉक कॉलोनी में रहने वाली आशा देवी के पति सुनील पाठक ने एक-दो महीने पॉवर प्लांट में काम किया था. लेकिन 2012 में उनका निधन हो गया. उनके बच्चे अब बड़े हो चुके हैं, जिनके पास कोई पुख्ता रोजगार नहीं है. वो कहती हैं कि अगर पॉवर प्लांट चालू रहता तो हो सकता है कि उनको वहां रोजगार मिल गया होता.
वहीं ब्लॉक मुख्यालय में किशोर प्रसाद साहू होटल चलाते हैं. दस साल पहले के समय को याद करते हुए साहू कहते हैं, “जब यहां बिजली संयंत्र बन रहा था तो बाजार गुलजार रहता था. रात आठ बजे के बाद भीड़ और बढ जाती थी. साहब लोग आते थे और मिठाई खरीदते थे. तब वहां करीब दो हजार लोग काम करते थे. अब बाजार बेजार हो गया है.”
दुकानदार कमलेश साव उस समय जमीन की आसमान छूती कीमतों की बात करते हैं, “हमारे यहां जब एक साथ दो-दो बिजली प्लांट लग रहे थे, तो रोड से हट कर भी जमीन पांच लाख रुपये डिसमिल बिक रही थी. किराना, सब्जी दुकानों पर भी भीड़ होती थी. अब ऐसा नहीं है.”
चंदवा के लोगों के लिए यहां बन रहे दो ताप बिजली कारखानों का निर्माण अचानक से रुक जाना किसी आपदा से कम नहीं है. इससे यहां के निवासियों के लिए रोजगार और कारोबार के विकल्प नहीं के बराबर हो गए.
चंदवा झारखंड के पलामू भौगोलिक क्षेत्र का प्रवेश द्वार है. जब आप यहां पहुंचते हैं तो झारखंड के दक्षिणी छोटा नागपुर से पलामू क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं. एस्सार पॉवर प्लांट के लिए 10 सालों तक काम करने वाले चंदवा निवासी सुभाष दुबे ने मोंगाबे हिंदी से कहा, “मेरा काम लाइजनिंग का था, कंपनी के लिए स्थानीय लोगों से बात करना, ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर व अन्य अधिकारियों से मीटिंग करना, जिला प्रशासन तक कंपनी से जुड़ी बातें पहुंचाना, वन भूमि से जुड़े मामले देखना. लेकिन 2014 में इस समूह को मिला चकला कोल ब्लॉक रद्द हो गया, जिसके बाद दिक्कतें शुरू हुईं.”
सुभाष दुबे ने बताया कि प्लांट का निर्माण बंद होने के बाद भी वे वर्षों तक कंपनी से जुड़े रहे, लेकिन 2021 में उसे छोड़ दिया. उन्होंने कहा, “मेरे काम छोड़ने के समय तक वहां करीब 200 लोग थे, लेकिन शायद इस वक्त 25-30 लोग ही बचे हैं.”
एस्सार समूह के साथ ऐसे शुरू हुई समस्या
वर्ष 2011-12 में चंदवा के टोरी में एस्सार के पॉवर प्लांट का निर्माण काफी तेजी से हो रहा था. उस समय कंपनी ने वर्ष 2012 के आखिर तक पहली इकाई से बिजली उत्पादन की उम्मीद जताई थी. इसे चकला और अशोक करकाटा कैपटिव कोल ब्लॉक आवंटित किया गया था. इसकी इकाइयों के निर्माण में तेजी ने चंदवा में रौनक ला दी थी और लोगों की आवाजाही बहुत बढ़ गई थी.
इस निर्माणाधीन इकाई को लेकर केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने सितंबर 2012 में अपनी स्टेटस रिपोर्ट में कहा था कि 600 मेगावाट की पहली यूनिट जून 2014 और दूसरी यूनिट सितंबर 2014 में शुरू हो जाएगी. पर, ऐसा हो नहीं सका.
फिर अक्टूबर 2016 में केंद्रीय विद्युत आयोग की तिमाही रिपोर्ट में भी एस्सार के इस पॉवर प्लांट को निर्माणाधीन की सूची में शामिल किया गया था. आधिकारिक रूप से इसे टोरी पॉवर प्लांट कहा जाता है जो टोरी गांव में स्थित है. यह जगह चंदवा बाजार से तीन से चार किमी दूर है. अक्टूबर 2016 की केंद्रीय विद्युत आयोग की तिमाही रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि जून 2015 तक की स्थिति के अनुसार, इसके निर्माण पर 3883.53 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके है. वहीं, दूसरे फेज में बनने वाली 600 मेगावाट की तीसरी यूनिट के लिए 246.65 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं.
एक रिपोर्ट के अनुसार, पहले फेज में इस पॉवर प्लांट के निर्माण पर 5,700 करोड़ रुपये खर्च होना था. जबकि 1800 मेगावाट की पूरी क्षमता हासिल करने में 10,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाने थे.
मुश्किल वक्त की शुरुआत
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) द्वारा कोयला खदानों की आवंटन प्रक्रिया की जांच शुरू होने के बाद कंपनी के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई. सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2014 के एक फैसले से टोरी पॉवर प्लांट के लिए मिले दोनों कोयला खदान का आवंटन रद्द हो गया. हालांकि, एस्सार को तोकीसुद माइन बाद में मिली, जिसको लेकर एस्सार पॉवर लिमिटेड के तात्कालिक सीइओ सुशील मारू के हवाले से यह खबर मीडिया में आई कि तोकीसुद कोल ब्लॉक समूह को टोरी परियोजना को फिर से जीवित करने का अवसर देता है. अब हम कर्जदाताओं से परियोजना को फिर से पटरी पर लाने के लिए चर्चा कर रहे हैं. उन्होंने तब कहा था कि तोकीसुद ब्लॉक का कोयला महान पॉवर प्लांट के साथ टोरी पॉवर प्लांट के लिए भी उपयोग किया जाएगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.
एस्सार के लिए काम कर चुके सुभाष दुबे कहते हैं, “ढांचा खड़ा हो रहा था, बॉयलर लग गया था, हमलोग माइनिंग के लिए बातचीत कर रहे थे, तभी पट्टा रद्द हो गया.”
इस पॉवर प्लांट को शुरू करने के लिए कई और प्रयास किए गए लेकिन मामला सिरे नहीं चढा. झारखंड सरकार से भी इसको लेकर सहयोग मांगा गया. बाद में यह मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के पास गया. एनसीएलटी के दिल्ली स्थित प्रिंसिपल बेंच के पांच अप्रैल 2018 के एक आदेश द्वारा सीआइआरपी – कॉरपोरेट दिवालिया समाधान प्रक्रिया शुरू की गई. इसके तहत कॉरपोरेट देनदार के लिए अंतरिम समाधान पेेशेवर को नियुक्त किया गया और दावेदारों से इस संबंध में जरूरी प्रक्रिया पूरा करने को कहा गया. वर्तमान में एस्सार की निर्माणाधीन ताप विद्युत इकाई एनसीएलटी के नियंत्रण में है और नीलामी प्रक्रिया जारी है.
एस्सार के निर्माणाधीन प्लांट में वर्ष 2011 से 2013 के दरम्यान डेढ साल तक नौकरी कर चुके एक इंजीनियर राज ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “शुरू से ही हम लोगों को वहां काम करने में दिक्कत हो रही थी. स्थानीय लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा था. वे नौकरी आदि की मांग को लेकर आए दिन काम बंद करवाने आते थे. उस समय वहां नक्सल समस्या भी बहुत थी और हम जब चंदवा से टोरी जाते थे तो हमें पुलिस सुरक्षा मिलती. हालांकि बाद में हम टोरी में रहने लगे थे.”
उन्होंने कहा, “हमारी जरूरतें बढ़ रही थीं. हम रोज रांची जा नहीं सकते थे. इसलिए वहां नई दुकानें खुलने लगी और पहले वाली दुकानों की बिक्री बढ़ने लगी. उन्होंने कहा, पॉवर प्लांट के लिए चलने वाली 80% से 90% गाड़ियां स्थानीय लोगों की थीं. कई को तो कहा गया कि खरीद कर रेंट पर लगा दो, लेकिन काम बंद होने के बाद उन लोगों को दिक्कतें हुई होंगी.”
पॉवर प्लांट के लिए जमीन अधिग्रहण से जुड़े सवालों पर चंदवा के बीडीओ व प्रभारी सीओ विजय कुमार ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “हमारे पास इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. आप इस बारे में एडिशनल कलेक्टर से पूछिए.” लातेहार के एडिशनल कलेक्टर, भू अर्जन आलोक शिकारी कच्छप ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “एस्सार और अभिजीत दोनों पॉवर प्लांट निर्माणाधीन थे और उन्होंने अपने स्तर पर जमीन का अधिग्रहण किया था. अगर भू अर्जन हुआ होता तो हमारे ऊपर जिम्मेदारी होती. ऐसा कुछ नहीं हुआ.” उन्होंने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि कंपनी की परिसंपत्तियां बेचने में जिला प्रशासन की कोई भूमिका नहीं है.
लातेहार जिला व्यवसायी संघ के अध्यक्ष गजेंद्र प्रसाद ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “दोनों पॉवर प्लांट के अधूरे रह जाने से पूरा जिला बर्बाद हो गया. रोजगार का संकट उत्पन्न हो गया. जो लोग प्लांट शुरू होने पर नौकरी की उम्मीद में थे, वे भी निराश हो गए.” गजेंद्र प्रसाद कहते हैं कि पॉवर प्लांट बनने के दौरान वहां कई होटल खुलने लगे थे, लोगों ने किराये पर घर देने के लिए कंस्ट्रक्शन करवाया, सबका निवेश बर्बाद हो गया, अब उनकी उम्मीद टूट चुकी है. वे कहते हैं कि अगर बनहरदी और तुबैद कोयला खदानें शुरू हो जाएं तो जिले में कुछ रौनक आ सकती है. हालांकि इन दोनों कोयला परियोजनाओं का स्थानीय ग्रामीण विरोध कर रहे हैं.
अधर में अभिजीत पॉवर प्लांट
अभिजीत समूह के चंदवा के बाना गांव में प्रस्तावित पॉवर प्लांट में 270 मेगावाट क्षमता की चार इकाइयां लगनी थीं. इस समूह का काम भी तेजी से चल रहा था. इस समूह ने 270 मेगावाट की पहली इकाई के सितंबर 2012 में शुरू करने और चौथी यूनिट अप्रैल 2014 में शुरू करने का लक्ष्य रखा था. पहले चरण के 1980 मेगावाट क्षमता के बाद दूसरे और तीसरे चरण में इस पॉवर प्लांट की क्षमता का 675 और 660 मेगावाट क्षमता का और विस्तार करना था.
केंद्रीय विद्युत आयोग ने वर्ष 2012 में इस समूह के 2013 में शुरू होने की उम्मीद जताई थी. समूह के अधिकारियों के कोयला घोटाला मामले में फंसने व इसे आवंटित चितरपुर कोल ब्लॉक रद्द होने के बाद मामला खटाई में पड़ गया. हालांकि इसके बावजूद इसे शुरू करने की काफी कोशिश की गई. साल 2015 में झारखंड के मुख्यमंत्री से भी हस्तक्षेप की मांग की गई. अभिजीत ग्रुप के एमडी मनोज जायसवाल ने कुछ साल पहले चंदवा आने पर यह उम्मीद जताई थी कि इकाई शुरू हो सकती है. रिपोर्ट के अनुसार, इस इकाई पर 6,500 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी उत्पादन शुरू नहीं हो पाया. जुलाई 2016 में एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (इंडिया) लिमिटेड (ARCIL) द्वारा मूल्यांकन के लिए परियोजना का अधिग्रहण किया गया था.
क्या यह भी ट्रांजिशन की चुनौती है?
आइफॉरेस्ट की इंडिया जस्ट ट्रांजिशन सेंटर की डॉयरेक्टर श्रेष्ठा बनर्जी ने चंदवा के संकट पर मोंगाबे-हिंदी से कहा, “चंदवा के निर्माणाधीन पॉवर प्लांट भले ही तकनीकी वजहों से बंद हुए हों, लेकिन यह बिना किसी योजना के बंद किए जाने का एक उदाहरण है. यह बताता है कि जब भी आप अनप्लांड क्लोजर करेंगे तो आपको ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. अनप्लांड क्लोजिंग किसी वजह से हो, उसका असर स्थानीय समुदाय पर पड़ता है.”
पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था लाइफ के ट्रस्टी राकेश सिंह ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “अगर कोई चीज गलत की बुनियाद पर खड़ी है, तो उसे आप न्यायोचित नहीं कर सकते हैं. हमें और कोल-थर्मल पॉवर प्लांट की जरूरत नहीं है. इनका सेहत पर बुरा असर पड़ता है.”
लातेहार जिले में नई व प्रस्तावित कोयला परियोजनाओं का तीखा विरोध हो रहा है. ग्रामीण इसके लिए पांचवी अनुसूची के प्रावधानों को भी ढाल बना रहे हैं. लातेहार ब्लॉक के तुबेद में प्रस्तावित कोयला खदान को रोकने के लिए ग्रामीणों ने गांव के बाहर पांचवी अनुसूची के तहत प्रदत्त अधिकारों का बोर्ड लगा दिया है. सितंबर में इसके खिलाफ लातेहार जिला मुख्यालय में भी प्रदर्शन किया गया.
नेवाड़ी पंचायत में पड़ने वाले इस गाँव के मुखिया अमरेश उरांव ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “यहां डीवीसी खनन करना चाह रही है. हम लोग जमीन नहीं देना चाहते. आदिवासी समुदाय से 90% लोग इसके खिलाफ हैं और दूसरे समुदाय से कम से कम आधे लोग.”
अमरेश का कहना है कि परियोजना के लिए छह गांव की करीब 1,100 एकड़ जमीन ली जानी है. “हमने 7 अगस्त, 2022 को ग्रामसभा में इस पर विचार किया कि पांचवीं अनुसूची के क्षेत्र में कंपनी कैसे प्रवेश करेगी. इसके लिए हमने गांव में बोर्ड लगा दिया. हमारी मांग पर जिला प्रशासन व कंपनी सहमत नहीं है. इसलिए हमारा विरोध जारी है,” उन्होंने कहा.
वहीं, चंदवा ब्लॉक के बनहरदी में प्रस्तावित कोयला खदान का भी विरोध हो रहा है. बनहरदी पंचायत के मुखिया रामेश्वर उरांव ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “यहां की खदान पतरातू पॉवर प्लांट (पतरातू विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड) को मिली है, लोग इसका विरोध कर रहे हैं. हम संवैधानिक तरीके से संघर्ष के साथ हैं.”
इस रिपोर्ट के लिए उपलब्ध ईमेल पते पर एस्सार समूह से प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया गया, हालांकि उसकी डिलिवरी फेल्ड बताई गई. एस्सार समूह के मुंबई कार्यालय में भी फोन कॉल के जरिए संपर्क किया गया, लेकिन पीआरओ या किसी अन्य अधिकारी से प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी. चतरा के सांसद सुनील सिंह से भी फोन कॉल के जरिए संपर्क का प्रयास किया गया, लेकिन खबर लिखे जाने तक उनकी प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई.
(यह लेख मूलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: विद्युत योजनाओं के फेल होने से चंदवा के निवासियों के लिए रोजगार और कारोबार के विकल्प नहीं के बराबर हो गए. तस्वीर - राहुल सिंह
उत्तर भारत में बढ़ता वायु प्रदूषण और तकनीकी विशेषज्ञों की कमी से जूझते प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड: रिपोर्ट