Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

भारत में सस्टेनेबल निवेश अगले चार साल में 100 खरब तक पहुँच जाएगा; कम्पनियों को अपनी सोच में लाना होगा बदलाव

नवीकरणीय ऊर्जा, ई-यातायात, एग्रीटेक और कचरा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में भारी निवेश के चलते अगले चार साल में भारत में निवेश के तौर तरीके बदलेंगे और पर्यावरण संबंधी मुद्दे उसके केंद्र में होंगे.

भारत में सस्टेनेबल निवेश अगले चार साल में 100 खरब तक पहुँच जाएगा; कम्पनियों को अपनी सोच में लाना होगा बदलाव

Thursday June 09, 2022 , 3 min Read

जलवायु परिवर्तन को लेकर बढ़ रही ग्लोबल जागरूकता का असर निवेशकों की सोच और प्लानिंग पर देखने में मिल रहा है. निवेशक अब ऐसी कम्पनियों में पैसा लगा रहे हैं जो सेस्टेनबिलिटि को लेकर सजग हैं और जिन्होंने उसे सुनिश्चित करने के लिए ढाँचागत परिवर्तन किए हैं. निवेशक अपने लॉंग-टर्म मुनाफ़े की तो सोच ही रहे हैं, वे इसके सामाजिक परिणामों को लेकर भी फ़िक्रमंद हैं.

अमेरिका में सेस्टेनेबल निवेश कुल निवेश का 33% है जबकि पूरी दुनिया में यह औसतन 36% है. भारत में प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटल दोनों के निवेशों को मिलाकर यह अभी 10-15% है. लेकिन इस क्षेत्र में तीव्र वृद्धि का अनुमान है. रिसर्च और एनलिसिस करने वाली फर्म Benori Knowledge की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगले चार साल में इसमें प्रतिवर्ष औसतन 46% की वृद्धि की सम्भावना है. 2026 तक कुल सस्टेनेबल निवेश, बेनोरी के मुताबिक, लगभग 100 खरब रुपये हो जायेगा.

रिपोर्ट के मुताबिक सस्टेनेबल निवेश बढ़ने के लिए चार मुख्य कारण जिम्मेवार होंगे. उनमें सबसे बड़ा कारण यह है कि उपभोक्ता अब यह खुलकर कह रहे हैं कि ब्रांड पर्यावरण को लेकर लापरवाही न करें, उनकी उत्पादन प्रणाली जलवायु को नुक़सान पहुँचाने वाली न हो. उपभोक्ताओं की तरफ़ से आ रही यह माँग ब्रांड बिहेवियर में बदलाव ला रही है. दूसरा कारण है सरकार की नीतियाँ और उसके द्वारा शुरू किए गए अभियान एवं कार्यक्रम जैसे कि स्वच्छ भारत, नमामि गंगे आदि. तीसरा कारण है बहुत सारी कम्पनियों और संस्थाओं द्वारा शुरू किए गये ग्रीन इनिशिएटिव. और चौथा कारण है क्लीनटेक [Cleantech] का उदय.

बेनोरी की रिसर्च के मुताबिक़ जिन चार सेक्टर्स में सबसे ज़्यादा सस्टेनेबल निवेश हो रहा है, वो हैं – नवीकरणीय ऊर्जा [Renewable Energy], ई-यातायात, एग्रीटेक और कचरा प्रबंधन. इन चारों में भी सबसे ज़्यादा निवेश इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए है और अगले पाँच साल में सिर्फ़ इसी क्षेत्र में 94,000 करोड़ का निवेश अनुमानित है. लेकिन बाक़ी क्षेत्रों में भी कम्पनियाँ और निवेशक दोनों ESG [Economic, Social, Governance] मानकों पर ध्यान दे रहे हैं. निवेशकों के लिए आर्थिक मुनाफ़े के साथ सामाजिक और प्रशासनिक पहलू बराबर महत्व के हो गये हैं. दूसरी तरफ़ कम्पनियों का सामाजिक और पर्यावरण संबंधी कमिटमेंट उनकी विश्वसनीयता के ज़रूरी हो गया है.

ट्रू नॉर्थ के पार्टनर मनिंदर सिंह जुनेजा जैसे सस्टेनेबल निवेश के विशेषज्ञों का मानना है कि “ESG को व्यवहार में लाना कम्पनियों के लिये महँगा नहीं है. अगर वे इसको लेकर गम्भीरता से मेहनत करें तो कम्पनियों, कर्मचारियों और निवेशकों तीनों को इसका फ़ायदा होगा.”

लेकिन कम्पनियों और निवेशकों में इसको लोकप्रिय और स्थायी बनाने के रास्ते में कुछ बाधाएँ भी हैं. उनमें से कुछ तकनीकी हैं जैसे कि विश्वसनीय डेटा का न होना, ESG को मापने के तरीक़ों पर सहमति न होना और सस्टेनेबल फ़ंडस का सीमित रिकार्ड. लेकिन कुछ चुनौतियाँ सोच और ज्ञान की भी हैं. ESG को समझने वाले लोग कम हैं और उनकी संख्या में जितनी ज़रूरत है उतनी वृद्धि नहीं हो रही है. कम्पनियों में इसको लेकर जागरूकता उतनी नहीं है और कई कम्पनियों की सोच भी बहुत पारम्परिक है.

बेनोरी के को-फ़ाउंडर आशीष गुप्ता के अनुसार इन चुनौतियों का सामना करने के लिए एक तरफ़ सरकारों को नीतिगत कदम उठाने होंगे तो दूसरी तरफ़ कम्पनियों को दूरगामी सोच के साथ खुद को पर्यावरण और सामाजिक पहलुओं के प्रति जवाबदेह बनाना होगा.