ताशकंद समझौते को 66 साल पूरे, आखिर किन बातों पर बनी थी भारत-पाक में सहमति
1965 में भारत-पाक दोनों देशों के बीच दूसरी बार का बड़ा युद्ध लड़ा गया था. 3 हफ़्तों तक चली भीषण लड़ाई के बाद दोनों देश संयुक्त राष्ट्र प्रायोजित युद्धविराम पर सहमत हो गए. 10 जनवरी, 1966 को भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ जिसे ताशकंद समझौता कहा जाता है.
भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में कड़वाहट का इतिहास 1947 से चला आ रहा हैं. सबसे पहले 1948 में दोनों देशों के बीच एक छोटा युद्ध लड़ा गया. उसके बाद 1965 में भारत-पाक दोनों देशों के बीच दूसरी बार का बड़ा युद्ध लड़ा गया था.
तीन हफ़्तों तक चली भीषण लड़ाई के बाद दोनों देश संयुक्त राष्ट्र प्रायोजित युद्धविराम पर सहमत हो गए. इसके बाद 10 जनवरी, 1966 को भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ जिसे ताशकंद समझौता कहा जाता है. यह समझौता रूस के ताशकंद जो अब उज्बेकिस्तान है, में हुआ था इसलिए इसका नाम ताशकंद पड़ा.
आज इस समझौते को 66 साल पूरे हो गए हैं. आइए जानते हैं आखिर इस समझौते में किन बातों पर दोनों देशों ने सहमति जताई थी. इस समझौते में यह तय हुआ कि भारत और पाकिस्तान अपनी-अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे और अपने झगड़ों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाएंगे.
25 फरवरी 1966 तक दोनों देश अपनी सेनाएं सीमा रेखा से पीछे हटा लेंगे. दोनों देशों की सेनाएं उस जगह को चली जाएंगी जहां वे 5 अगस्त, 1965 के पहले थीं. दोनों देशों के बीच आपसी हितों के मामलों में शिखर वार्ताएं और अन्य स्तरों पर वार्ताएं जारी रहेंगी.
भारत-पाक इस बात पर राजी हुए कि दोनों देश एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे. दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध फिर से स्थापित किए जाएंगे.
भारत और पाकिस्तान अपने-अपने देश से आए शरणार्थियों पर विचार विमर्श जारी रखेंगे और एक दूसरे की संपत्ति लौटाने पर भी विचार करेंगे.
यह समझौता 4 जनवरी, 1966 को शुरू हुआ और 10 जनवरी, 1966 को इस पर पाकिस्तानी राष्ट्रपति अय्यूब खां और भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दस्तखत किए थे.
हालांकि युद्ध तो भारत जीत गया लेकिन इस युद्ध के साए में भारत ने अपना प्रधानमंत्री खो दिया. लाल बहादुर शास्त्री जब इस समझौते पर दस्तखत करके ताशकंद से भारत लौट रहे थे तभी उनकी मौत हो गई.
11 जनवरी, 1996 को लाल बहादुर शास्त्री ने आंखें ही नहीं. ताशकंद में ही उनका पोस्टमार्टम किया गया जिसमें सामने आया कि उनकी मृत्यु दिल की गति रुक जाने की वजह से हुई है.
ऐसा भी माना जाता है कि शास्त्री जी को संपत्ति लौटाने की शर्त के तहत हमें पीर पंजाल का इलाका भी लौटा पड़ा जिसे हमारी सेना ने जीता था. ये बात उन्हें हजम नहीं हुई और उसी सदमे में उनकी जान गई. उनकी मौत पर अब भी सवाल उठते रहते हैं.
शास्त्रीजी की पत्नी ललिता शास्त्री और उनके बेटों ने इस बात को मानने से इनकार कर दिया था कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है. उनके मुताबिक उन्हें शास्त्रीजी के पार्थिव शरीर पर नील पड़े दिखे थे. बहरहाल परिवार की मांग पर शास्त्रीजी की मौत के कारणों की जांच भी हुई मगर किसी नए अंजाम तक नहीं पहुंच सकी.
Edited by Upasana