टाटा ने भारत सरकार को कोर्ट में घसीटा, 1500 करोड़ के जीएसटी विवाद को लेकर किया मुकदमा
जीएसटी का यह दावा डायरेक्टरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलिजेंस (DGGI) ने किया है जो कि जापानी टेलीकम्यूनिकेशन कंपनी को 1 खरब रुपये के विवाद निपटारे से संबंधित है.
नमक से लेकर सॉफ्टवेयर बनाने वाले टाटा ग्रुप ने 1500 करोड़ रुपये के जीएसटी के दावे के खिलाफ जीएसटी का कामकाज देखने वाली संस्था के साथ-साथ वित्त मंत्रालय और भारत सरकार पर बॉम्बे हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया है. यह मामला साल 2017 में NTT डोकोमो के विवाद निपटान से संबंधित है.
इकॉनमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, जीएसटी का यह दावा डायरेक्टरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलिजेंस (DGGI) ने किया है जो कि जापानी टेलीकम्यूनिकेशन कंपनी को 1 खरब रुपये के विवाद निपटारे से संबंधित है. समूह के लिए होल्डिंग इकाई टाटा संस ने किए गए भुगतानों पर जीएसटी देनदारियों के दावे को चुनौती दी है. इससे पहले टाटा संस ने इस मामले में सरकार के हस्तक्षेप की मांग की थी.
हालांकि, मामले की जानकारी रखने वाले अधिकारियों ने कहा है कि इस बीच DGGI मामले को आगे बढ़ाने को लेकर तैयार है.
सूत्रों ने कहा कि अक्टूबर में, DGGI ने टैक्स की सूचना जारी की थी, जिसे डीआरसी-01ए फॉर्म के माध्यम से देय के रूप में निर्धारित किया गया था. यह कारण बताओ नोटिस देने से पहले विभाग द्वारा जारी किया जाता है.
मामले की जानकारी रखने वाले एक सोर्स ने कहा कि इस फॉर्म को नोटिस भेजने से पहले जारी किया जाता है. हालांकि, कंपनी ने एक रिट पेटीशन दाखिल की है और अब अदालत द्वारा मामले का फैसला किए जाने के बाद कारण बताओ नोटिस पर कोई फैसला किया जाएगा.
नवंबर में अनुच्छेद 226 के तहत बॉम्बे हाईकोर्ट में रिट दायर की गई थी और 9 जनवरी को सुनवाई होनी है. कंपनी ने वित्त मंत्रालय के माध्यम से भारत संघ और डीजीजीआई के सचिव और अतिरिक्त निदेशक के माध्यम से केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) को मामले में प्रतिवादी बनाया है.
टाटा समूह की दलील
टाटा समूह ने विभाग से कहा था कि पेमेंट लंदन की एक अदालत के आदेश मध्यस्थता की कार्यवाही के माध्यम से किया गया था और इसलिए जीएसटी लागू नहीं था.
मामले की जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह राशि टाटा संस द्वारा टाटा टेलीसर्विसेज की ओर से चुकाई गई बकाया राशि थी, न कि डोकोमो द्वारा प्रदान की गई किसी भी सेवा के लिए थी. यह एक मध्यस्थता का मामला है, जिसका भुगतान किया गया और बंद कर दिया गया.
डीजीजीआई, सीबीआईसी के तहत कार्य करता है. यह विभाग जीएसटी की चोरी से संबंधित खुफिया जानकारी से संबंधिक कार्रवाइयों की देखरेख करता है. यह पहले केंद्रीय उत्पाद शुल्क खुफिया महानिदेशालय (DGCEI) हुआ करता था.
सरकार नहीं बनाना चाहती इसे उदाहरण
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सीजीएसटी अधिनियम की अनुसूची-2 के तहत जीएसटी लगाया गया है, जो कर्ज के भुगतान को प्रदान की गई सेवा के रूप में मानता है. चूंकि टाटा संस होल्डिंग कंपनी है, तो यह टाटा टेलीसर्विसेज की ओर से 18 फीसदी जीएसटी का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है.
डीजीजीआई का मानना है कि अगर टाटा ग्रुप को इस मामले में छूट दी गई तो अन्य कंपनियों भी प्रदान की गई सेवाओं पर लगाए गए जीएसटी का भुगतान करने से बचने के लिए ऐसा ही रास्ता अपना सकती हैं. इसलिए, एक उदाहरण स्थापित करना जरूरी है.
यह है मामला
बता दें कि, NTT डोकोमो ने साल 2009 में टाटा ग्रुप की कंपनी टाटा टेलीसर्विसेज में 26.5 फीसदी की हिस्सेदारी हासिल की थी. उस समय दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए थे कि जापानी कंपनी एक पूर्व निर्धारित न्यूनतम कीमत पर वेंचर से निकल सकती है. यह न्यूनतम कीमत हिस्सेदारी हासिल करते समय किए गए पेमेंट की कम से कम आधी होगी. टाटा टेलीसर्विसेज की आर्थिक स्थिति को देखते हुए जापानी को वेंचर से निकलना पड़ा था.
हालांकि, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का विचार था कि इस तरह का निकास केवल 2013 में संशोधित नियम के अनुरूप उचित बाजार मूल्य पर हो सकता है.
तब स्वर्गीय साइरस मिस्त्री के नेतृत्व में टाटा संस ने कहा था कि वह सहमत राशि का भुगतान नहीं कर सकता. इसके बाद डोकोमो ने अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए दायर किया और 2017 में, यह कहा कि टाटा टेलीसर्विसेज में अपनी हिस्सेदारी के लिए अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत द्वारा दिए गए टाटा संस से 1 खरब रुपये प्राप्त हुए.
Edited by Vishal Jaiswal