पत्नी के गहने बेचकर खरीदा था शव वाहन, बीते 6 सालों से लोगों की निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं विक्रम
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के रहने वाले विक्रम ब्राह्मणे शव वाहन चलाते हैं, लेकिन इसकी शुरुआत को लेकर उनकी कहानी प्रेरणा से भरी हुई है। 55 साल के विक्रम बीते सात सालों से बेरोजगारी झेल रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके वह लोगों की अंतिम यात्रा में बिना किसी लाभ की उम्मीद के अपना सहयोग देते हैं।
"मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के रहने वाले विक्रम ब्राह्मणे शव वाहन चलाते हैं, लेकिन इसकी शुरुआत को लेकर उनकी कहानी प्रेरणा से भरी हुई है। 55 साल के विक्रम बीते सात सालों से बेरोजगारी झेल रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके वह लोगों की अंतिम यात्रा में बिना किसी लाभ की उम्मीद के अपना सहयोग देते हैं।"
कोरोना महामारी के दौरान जब मौतों का आंकड़ा अचानक बढ़ने लगा था और मृतकों के शरीर को शमशान घाट तक ले जाने तक के लिए लोगों की कमी दिखाई देने लगी, ऐसे समय में विक्रम ब्राह्मणे अपने शव वाहन के जरिये निस्वार्थ भाव से लगातार इस सेवा में लगे रहे हैं।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के रहने वाले विक्रम ब्राह्मणे शव वाहन चलाते हैं, लेकिन इसकी शुरुआत को लेकर उनकी कहानी प्रेरणा से भरी हुई है। 55 साल के विक्रम बीते सात सालों से बेरोजगारी झेल रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके वह लोगों की अंतिम यात्रा में बिना किसी लाभ की उम्मीद के अपना सहयोग देते हैं।
इस घटना ने बदली जिंदगी
विक्रम के जीवन में सबसे बड़ा बदलाव साल 2015 में आया। इस दौरान उनके पिता के देहांत ने उनकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। विक्रम के अनुसार जब उनके पिता का देहांत हुआ तब उनकी अंतिम यात्रा के लिए उस समय उन्हे कोई शव वाहन नहीं मिल सका।
शव वाहन ना मिल पाने के चलते विक्रम ब्राह्मणे को अपने पिता के पार्थिव शरीर को कंधों पर रखते हुए पैदल ही कई किलोमीटर दूसर स्थित शमशान घाट तक का सफर तय करना पड़ा। इस घटना ने विक्रम ब्राह्मणे के मन पर गहरा असर किया और उन्होने इसके बाद ही उन्होने अपने जीवन का सबसे बड़ा फैसला भी कर लिया।
बेच दिये पत्नी और बेटी के गहने
विक्रम ब्राह्मणे की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं थी, इसके चलते उन्होने पैसों का इंतजाम करने के लिए अपनी पत्नी और बेटी के गहने बेचने पड़ गए। विक्रम ब्राह्मणे ने अपनी बची हुई कुछ जमा पूंजी भी एकत्रित की, जबकि कुछ आर्थिक मदद उनके दोस्तों ने भी उपलब्ध करा दी। इकट्ठा हुए उन पैसों से विक्रम ने फौरन एक गाड़ी खरीदी और उसे शव वाहन में तब्दील कर दिया।
विक्रम ने मीडिया से बात करते हुए बताया है कि पिता के पार्थिव शरीर के लिए शव वाहन का इंतजाम न हो पाने के बाद उन्हे यह समझ आया कि वह समस्या कितनी बड़ी और वह इसे हर हाल में हल करना चाहते थे।
नहीं लेते हैं किसी से पैसे
विक्रम को शव वाहन को खरीदने के लिए भले ही अपनी पत्नी के गहने तक बेचने पड़ गए हों लेकिन वह किसी की शव यात्रा में अपनी इस सेवा के बदल किसी भी प्रकार का पैसा नहीं लेते हैं। इतना ही नहीं, किसी का पार्थिव शरीर लेकर शमशान घाट पहुंचने के बाद विक्रम ब्राह्मणे उस परिवार के साथ उस व्यक्ति के अंतिम संस्कार में भी हिस्सा लेते हैं।
कोरोना ने दिखाया सबसे बुरा समय
कोरोना महामारी के दौरान देश भर में लाखों की संख्या में लोगों की मौतें हुईं हैं और विक्रम खुद भी इस कठिन दौर के प्रत्यक्ष गवाह बने हैं। कोरोना संक्रमण के चलते एक ओर जहां लोग मृतकों के शव के पास जाने से भी डर रहे थे, वहीं दूसरी ओर विक्रम इस दौरान लगातार ऐसे शवों का अंतिम संस्कार करने में जुटे हुए थे।
विक्रम कहते हैं कि उन्होने अपने जीवन में इससे बुरा समय नहीं देखा है। विक्रम के अनुसार लोग उन्हे पानी पिलाने से भी डरते थे, इसी के साथ कई बार उन्होने ऐसा समय भी देखा जब कोरोना संक्रमण के चलते मरे हुए व्यक्ति के अंतिम संस्कार के लिए परिवार का एक भी सदस्य मौजूद नहीं था।
विक्रम कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान भी पूरी तरह से अपने काम में जुटे रहे हैं, इसी के साथ विक्रम ब्राह्मणे ने प्रण लिया है कि वे अपने अंतिम समय तक लोगों की मदद के लिए खड़े रहेंगे।
Edited by Ranjana Tripathi