स्कूलों में गिरा पढ़ाई का स्तर, बढ़ रहा ट्यूशन कल्चर, रिपोर्ट में सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े
रिपोर्ट में स्कूली बच्चों के लिए महामारी के बाद सीखने के परिणामों को मापने के लिए 616 जिलों के 19,060 स्कूलों के 3 से 16 वर्ष की आयु के लगभग 6,99,597 उम्मीदवारों का सर्वेक्षण किया गया. प्रथम फाउंडेशन ने सर्वेक्षण का नेतृत्व किया.
स्कूलों में पढ़ाई का स्तर बहुत तेजी से नीचे गिर रहा है और ट्यूशन कल्चर बहुत तेजी से बढ़ रहा है. हालांकि, कोविड-19 महामारी के कारण दो साल के सीखने के नुकसान के बावजूद, ग्रामीण भारत में स्कूली शिक्षा ने 2022 में एक स्वस्थ सुधार दिखाया है.
बुधवार को जारी एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (एएसईआर) की रिपोर्ट से यह जानकारी सामने आई है. बता दें कि, एएसईआर राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण है जो ग्रामीण भारत में बच्चों के स्कूल जाने व शिक्षा से संबंधित तस्वीर मुहैया कराता है.
रिपोर्ट में स्कूली बच्चों के लिए महामारी के बाद सीखने के परिणामों को मापने के लिए 616 जिलों के 19,060 स्कूलों के 3 से 16 वर्ष की आयु के लगभग 6,99,597 उम्मीदवारों का सर्वेक्षण किया गया. प्रथम फाउंडेशन ने सर्वेक्षण का नेतृत्व किया.
2022 में स्कूलों में नामांकन नहीं कराने वाले बच्चों का अनुपात 1.6 फीसदी
रिपोर्ट के अनुसार महामारी के दौरान लंबे समय तक बंद रहने के बावजूद स्कूलों में दाखिले के आंकड़े 98 प्रतिशत से अधिक के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गए. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अवधि के दौरान बड़ा बदलाव सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों की बढ़ती संख्या है.
साल 2022 में पहली बार, ग्रामीण भारत में स्कूलों में नामांकन नहीं कराने वाले बच्चों का अनुपात 2022 में 2 प्रतिशत से नीचे गिर गया और 1.6 प्रतिशत आ गया. इसमें कहा गया है, ‘‘छह से 14 आयु वर्ग के लिए दाखिला दर पिछले 15 वर्षों से 95 प्रतिशत से ऊपर रही है. महामारी के दौरान स्कूल बंद होने के बावजूद, ये आंकड़े 2018 में 97.2 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 98.4 प्रतिशत हो गए हैं.’’
स्कूल नहीं जाने वाली लड़कियों का अनुपात 2 फीसदी पर आया
भारत में स्कूल नहीं जाने वाली लड़कियों का अनुपात 2022 में अब तक की सबसे कम दर दो प्रतिशत पर आ गया है. बुधवार को जारी शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) 2022 में यह जानकारी दी गई है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि समग्र गिरावट के बावजूद, तीन राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 10 प्रतिशत से अधिक लड़कियां स्कूल नहीं जा रही हैं जो चिंता का विषय है. स्कूल नहीं जाने वाली लड़कियों का कुल अनुपात 2018 में 4.1 प्रतिशत और 2006 में 10.3 प्रतिशत था.
स्कूली छात्रों की पढ़ाई क्षमता गिरी
रिपोर्ट के अनुसार सभी कक्षाओं के स्कूली छात्रों की पढ़ाई संबंधी क्षमता 2012 से पहले के स्तर तक गिर गई है, जबकि बुनियादी गणित कौशल 2018 के स्तर तक गिर गया है. इससे पता चलता है कि ज्यादातर राज्यों में सरकारी और निजी स्कूलों में लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए गिरावट देखी जा सकती है.
रिपोर्ट के अनुसार पढ़ाई करने संबंधी क्षमता में सबसे ज्यादा गिरावट केरल, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में देखी गई है, वहीं गणित कौशल में गिरावट तमिलनाडु, मिजोरम और हरियाणा में देखी गई है.
ट्यूशन जाने वाले छात्रों की संख्या में 4 फीसदी की बढ़ोतरी
कोविड महामारी से पहले की तुलना में देशभर में स्कूल के बाद ट्यूशन जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या में चार फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है.
रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड समेत कुछ राज्यों में ट्यूशन जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या आठ प्रतिशत बढ़ी है.
अहम रिपोर्ट यह भी बताती है कि ग्रामीण भारत में पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों का बीते दशक में ट्यशून लेने के अनुपात में लगातार बढ़ोतरी हुई है.
रिपोर्ट में कहा गया है, “ 2018-2022 के बीच यह अनुपात सरकारी व निजी दोनों प्रकार के स्कूलों के विद्यार्थियों में बढ़ा है. राष्ट्रीय तौर पर पहली से आठवीं कक्षा के बच्चों का ट्यूशन लेने का अनुपात 2018 में 26.4 प्रतिशत था जो 2022 में बढ़कर 30.5 फीसदी हो गया है.”
रिपोर्ट के मुताबिक, “ उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में सशुल्क ट्यूशन लेने वाले विद्यार्थियों का अनुपात 2018 के स्तर से आठ प्रतिशत से अधिक बढ़ा है.”
रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल, बिहार जैसे कई राज्यों में बच्चों को ट्यूशन भेजना परंपरा लगती है जहां निजी स्कूल जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या कम है लेकिन तकरीबन 70 फीसदी बच्चे ट्यूशन के लिए जाते हैं.
इसमें कहा गया है कि इन राज्यों के गांवों में बड़ी संख्या में शिक्षित युवक-युवतियां बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर आजीविका कमा रहे हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि महामारी के बाद के दौर में अन्य राज्यों में ट्यूशन का दायरा बढ़ सकता है, क्योंकि पढ़े-लिखे युवक- युवतियां नौकरियों के इंतजार में इसके लिए तैयार हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार और झारखंड ऐसे राज्य हैं जहां बच्चों को ट्यूशन भेजने का ज्यादा चलन है. इसमें कहा गया है कि 2022 में बिहार में 70 फीसदी जबकि झारखंड में 45 प्रतिशत बच्चों ने ट्यूशन ली जबकि हिमाचल प्रदेश में यह स्तर 10 फीसदी और महाराष्ट्र में 15 प्रतिशत है.
Edited by Vishal Jaiswal