जिस गंभीर बीमारी से हैं पीड़ित, व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे उसी के बारे में लोगों को जागरूक करती हैं धान्या रवि
29 साल की धान्या रवि अस्थिजनन अपूर्णता यानी भंगुर हड्डी रोग से ग्रसित हैं। यह एक आनुवांशिक बीमारी है जिसमें ग्रसित की हड्डियां बहुत कमजोर होती हैं। धान्या जन्म से इससे पीड़ित हैं। साल 1989 में पैदा हुईं धान्या हमेशा रोती रहती थीं। इसे लेकर उनके पैरंट्स हमेशा परेशान रहते और इसके पीछे का कारण खोजने में लगे रहते। धान्या का जन्म एक नॉर्मल डिलिवरी से हुआ था। धान्या के जन्म को लेकर पूरे परिवार में खुशी का माहौल था। जैसा कि मलयाली परिवारों में होता है। धान्या के पैदा होने के 56वें दिन उसका नामकरण होना था। उस दिन वह लगातार रोती रहीं। घरवालों से कई डॉक्टरों को बुलाया लेकिन डॉक्टर भी इसके पीछे के कारण का पता नहीं लगा सके। बाद में एक डॉक्टर ने बताया कि लड़की ऑस्टियोजेनेसिस इम्पर्फेक्टा (ओआई) यानी भंगुर हड्डी रोग से पीड़ित है। इसका मतलब था कि धान्या कभी भी एक आम जीवन नहीं जी पाएंगी।
इस आनुवांशिक बीमारी के इलाज के दौरान धान्या के को कई फ्रैक्चर झेलने पड़े। यहां तक कि अगर वह एक बार छींक भी देतीं तो उनकी किसी हड्डी के फ्रैक्चर होने का खतरा रहता था। वह बताती हैं, 'ऑस्टियोजेनेसिस इम्पर्फेक्टा (ओआई) के कारण कई फ्रैक्चर हो जाते हैं। इसके कारण बचपन में मैंने अधिकतर समय अस्पताल आने-जाने में बिताया है। एक बार फ्रैक्चर का इलाज कराके घर वापस आते समय मुझे दूसरा फ्रैक्चर हो गया।' धान्या का इलाज रोडिंग प्रक्रिया (फ्रैक्चर हुई हड्डी को मेटल की रोड के सहारे रखना) से भी नहीं हो पाया क्योंकि जागरूकता की कमी के कारण उनके पैरंट्स और डॉक्टर्स में काफी अस्पष्टता थी। इस बीमारी के इलाज के लिए उनके माता-पिता धान्या को देश भर के कई अस्पतालों में ले गए। आखिर में वेल्लोर स्थित क्रिस्चियन मेडिकल कॉलेज में काउंसलिंग से उन्हें स्थिति के बारे में समझ आया कि अब ध्यान रखना ही इसका इलाज है।
धान्या ने बताया, 'जोखिम भरे स्वास्थ्य के कारण मेरे पास मेनस्ट्रीम स्कूल का विकल्प मौजूद नहीं था। सौभाग्य से मेरे पड़ोस की विक्टोरिया आंटी ने जिम्मेदारी ली और रोज मुझे 1 घंटे के लिए होम स्कूल (ट्यूशन) देने लगीं। उन्होंने यह अपनी इच्छा से किया। यह उनका मेरे लिए प्यार था। उन्होंने हाई स्कूल तक मुझे पढ़ाया और बाद में मैंने इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी से प्रिपरेटरी कोर्स पूरा किया। इसके साथ-साथ मैंने क्लांबर नॉलेज एंड करियर्स प्राइवेट लिमिटेड से नोवल राइटिंग का भी सर्टिफिकेट लिया।'
युवावस्था में भी उनका अस्पतालों के चक्कर लगाना जारी रहा लेकिन धान्या ने कभी इसे खुद पर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने बताया, 'मुझे तीन साल के बच्चे की तरह रखा जाता और मेरी मां मेरा पूरा ध्यान रखती थीं। इसके बाद भी मैं अपनी लाइफ को लेकर सकारात्मक थी। मेरे जीवन में टर्निंग पॉइंट तब आया जब मुझे इंटरनेट के बारे में जानकारी दी गई। इससे मेरी लाइफ एकदम से बदल गई।' धान्या ने संगीत से जुड़े कई चैट फोरम और ग्रुप जॉइन कर लिए और इसके कारण उनके कई दोस्त भी बन गए। उन्हें बीनू नाम के एक लड़के के बारे में पता चला जो कि इसी बीमारी से ग्रसित था। बीनू को अपनी सर्जरी के लिए पैसों की जरूरत थी। इस खबर से धान्या को लगा कि उन्हें कुछ ऐसा करने की जरूरत है जिससे उन्हें जीवन जीने का उद्देश्य मिले।
वह याद करते हुए कहती हैं, 'मैं मदद करने के लिए बीनू की केयरटेकर लता नैयर के पास गई जो कि एक समाजसेविका थीं। मैंने बीनू की सर्जरी के लिए अपने दोस्तों से ऑनलाइन मदद के लिए अनुरोध किया। कुछ ही समय में हमारी मदद करने के लिए कई लोग आगे आए।' सर्जरी से पहले बीनू केवल रेंगकर चलता था लेकिन अब वह वॉकर की मदद से आराम से चल सकता है। आज वह कोच्चि के एक हेल्थ सेंटर में सहायक के तौर पर काम करता है। किसी की मदद करने के लिए लोगों को एकजुट करने के अपने इस अनुभव से धान्या से महसूस किया कि वह आगे कुछ करना चाहती हैं। जब लता नैयर ने ऑस्टियोजेनेसिस इम्पर्फेक्टा से पीड़ित लोगों की मदद के लिए भारत का पहला एनजीओ (अमृतावर्शिनी चैरिटेबल सोसायटी) खोला तो इसमें धान्या ने अहम रोल निभाया। वह टीवी इंटरव्यू, डिबेट और भाषणों के जरिए लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरूक करती थीं।
उन्होंने निंगलक्कुम अकम कोड्डीससवरन, आइडिया स्टार सिंगर-6 और अश्वमेधम जैसे कई प्रसिद्ध मलयालम टेलिविजन प्रोग्राम में भाग लिया। साथ ही ओआरडीआई और वन स्टेप एट ए टाइम जैसे संगठनों की मदद से वह बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने और ऐसे लोगों के अधिकारों के बारे में बताने लगीं। उन्होंने बताया, 'मैं सभी प्रेग्नेंट महिलाओं से अनिवार्य आनुवांशिक टेस्टिंग की वकालत करती हूं। इसके साथ पुनर्वास को आगे बढ़ाने के लिए शीघ्र निदान की सलाह देती हूं। दवाइयों और थैरपी के अलावा फैमिली काउंसलिंग भी बहुत जरूरी है। अगर अस्पतालों में इसके लिए अलग से सेल है तो यह पैरंट्स की अधिक जानकारी के साथ ऐसी बीमारियों का सामना करने में मदद करेगा।'
इस तरह की बीमारी से पीड़ितों की मदद करने में उनके प्रयासों के लिए उन्होंने कई अवॉर्ड भी जीते हैं। इनमें डिपार्टमेंट ऑफ पीडब्लयूडी इंडिया की ओर से साल 2018 का रोल मॉडल कैटिगरी में नेशनल अवॉर्ड, ब्रेव बैंगल अवॉर्ड 2012 और एनुअल इंस्पायर्ड इंडियन फाउंडेशन (आईआईएफ) अवॉर्ड 2014 शामिल हैं। हमेशा व्हीलचेअर पर बैठे रहने और ऐसी बीमारी में जकड़े रहने के बावजूद भी वह आराम से यात्रा करती हैं। फिलहाल वह अमेरिका में अपने भाई और परिवार के पास हैं। वह भारत के कई एनजीओ का भी सहयोग कर रही हैं। साथ ही वह ऑफलाइन और ऑनलाइन मीडिया के लिए फ्रीलांस कॉन्टेंट राइटर, डिजिटल मार्केटर और कॉलमिस्ट के तौर पर काम कर रही हैं।
धान्या ने कहा, 'फिलहाल मैं एक ऐसी जगह पर हूं जहां से मैं चाहती हूं कि लोगों को समझ आए कि जीवन कितना महत्वपूर्ण है और वे किस तरह अपने संघर्षों का भरपूर लाभ ले सकते हैं। मैं आगे ऐसी बीमारियों से मुक्त पीढ़ी देखना चाहती हूं और ऐसी बीमारियों के लिए शीघ्र टेस्टिंग और इलाज की वकालत करती हूं।'
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