सस्टेनेबल मैनेजमेंट में 'वाटर क्रेडिट' की भूमिका
मिशन लाइफ की प्रमुख कैटेगरी में से एक जल संरक्षण भी है. वाटर क्रेडिट का उपयोग एक खास एप्रोच के रूप किया जा सकता है. यह वाटर क्रेडिट पानी बचाने से जुड़े प्रयासों को बढ़ावा देने और उन्हें रिवॉर्ड देने के लिए एक मैकेनिज्म के रूप में काम कर सकता है.
दुनिया की आबादी में से 18% आबादी भारत में रहती है, लेकिन दुनिया के मीठे पानी के संसाधनों का सिर्फ़ 4% ही भारत में उपलब्ध है. दुनिया में सबसे अधिक धरती के भीतर के पानी का दोहन भारत में किया जाता है. भारत में हर साल 253 बिलियन क्यूबिक मीटर से ज़्यादा पानी धरती के भीतर से निकाला जाता है. जिसके कारण भारत में जल संसाधन तेज़ी से घटता जा रहा है. CWC का अनुमान है कि पिछले 70 सालों में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता में 1/4 की कमी आई है. लगभग 54% असेसमेंट यूनिट्स पानी की कमी का सामना कर रही हैं. 2021 की CAG रिपोर्ट के अनुसार पानी बाहर निकालने की दर पानी के भीतर जाने की दर से ज़्यादा है. जमीन से ज़रूरत से ज़्यादा पानी निकालने से अगले 2 दशकों में लगभग 80% पीने के पानी पर ख़तरा मंडराएगा.
इस परिस्थिति में हमारे लिए भूजल के स्रोतों का संरक्षण/कुशलता से प्रबंधन करना बेहद जरूरी है. हमारे देश में प्रचुर मात्रा में बारिश होती है, ऐसे में जरूरी है कि हम रेन वाटर हार्वेस्टिंग और बहते हुए बारिश के पानी को बचाकर जमीन के भीतर पानी के स्तर को फिर से उठाने का प्रयास करें.
भारत में मीठे पानी की खपत का 85% हिस्सा खेती में, 8% उद्योग में तथा 7% घरेलू उपयोग में होता है.
पर्यावरण को सुरक्षित रखने की दिशा में जरूरी प्रयास करने के लिए भारत के नेतृत्व में एक वैश्विक जन आंदोलन के रूप में भारत सरकार ने 2023 में मिशन लाइफ (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) को लॉन्च किया था. इन प्रयासों के लिए रिवॉर्ड को कार्बन क्रेडिट की तरह ट्रेड किया जाना हैं. इसी के साथ ही इसके लिए एक फ्रेमवर्क और ट्रेड प्लेटफॉर्म विकसित किए जा रहे हैं. इसने मांग, आपूर्ति और नीति में बदलाव लाने के लिए सर्कुलर इकोनॉमी को अपनाने की पेशकश की है. यहां सभी 7 श्रेणियों में 75 इंडिविजुअल लाइफ एक्शन की सूची को तैयार किया गया है.
मिशन लाइफ की प्रमुख कैटेगरी में से एक जल संरक्षण भी है. वाटर क्रेडिट का उपयोग एक खास एप्रोच के रूप किया जा सकता है. यह वाटर क्रेडिट पानी बचाने से जुड़े प्रयासों को बढ़ावा देने और उन्हें रिवॉर्ड देने के लिए एक मैकेनिज्म के रूप में काम कर सकता है.
कार्बन क्रेडिट vs वाटर क्रेडिट
ये दोनों ही मैकेनिज्म पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने के लिए मार्केट बेस्ड एप्रोच के साथ डिज़ाइन किए गए हैं. इसका उद्देश्य पर्यावरण को सुरक्षित बनाने से जुड़े प्रयासों के लिए प्रोत्साहित करना है. हालाँकि, वे अलग-अलग प्रकार की समस्याओं पर ध्यान देते हैं और अलग-अलग फ्रेमवर्क के तहत काम करते हैं. कार्बन क्रेडिट ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, वहीं दूसरी ओर वाटर क्रेडिट पानी की कमी और गुणवत्ता की समस्या पर ध्यान देते हैं.
जो संस्थाएं अपने उत्सर्जन को एक निश्चित सीमा से नीचे ले जाती हैं, वे कार्बन क्रेडिट अर्जित कर सकती हैं. इसके बाद ये क्रेडिट फिर उन संस्थाओं को बेचे जा सकते हैं जो उत्सर्जन में कमी के अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए मुश्किल का सामना कर रही हैं. यह मॉडल समय के साथ परिपक्व हो गया है और अब अच्छी तरह से स्थापित हो चुका है.
ठीक इसी तरह, वाटर क्रेडिट का उद्देश्य पानी की कमी को दूर करना है, साथ ही उसके लंबे समय तक उपयोग को प्रोत्साहित करना है. इसमें पानी को सुरक्षित रखने और पानी की क्वालिटी में सुधार जैसे दोनों लक्ष्य शामिल हैं. जो संस्थाएं पानी बचाने से जुड़े उपायों को अपनाती हैं या पानी की क्वालिटी में सुधार करने वाले प्रोजेक्ट चलाती हैं, उन्हें वाटर क्रेडिट मिलता है. ये इन्हें उन लोगों को बेच सकती हैं जिन्हें अपने पानी के उपयोग को संतुलित करने या पानी के प्रबंधन से जुड़े प्रयासों में सुधार लाने की जरूरत है.
वाटर क्रेडिट के लाभ
पानी के सही उपयोग को प्रोत्साहित करने और प्रदूषण में कमी लाने के अलावा, यह कानूनी दायित्वों को निभाने के लिए एक लचीला मैकेनिज्म भी प्रदान करता है. यह पानी बचाने से जुड़ी तकनीकों को अपनाने और इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में निवेश के लिए प्रोत्साहित करेगा. यह सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल 6 (साथ पानी और स्वच्छता) को प्राप्त करने का प्रयास करेगा. इसका उद्देश्य सभी को सुरक्षित और किफायती पेयजल उपलब्ध कराना, पानी की क्वालिटी को बेहतर बनाना और टिकाउ जल उपयोग के लिए प्रोत्साहन देना है.
वाटर क्रेडिट - आधार रेखा को तय करने से जुड़ी चुनौतियां
कार्बन क्रेडिट में जहाँ उत्सर्जन की प्रकृति सभी जगह एक जैसी है. वहीं पानी के मामले में यह स्थानीय स्तर पर वाटरशेड पर निर्भर करता है. वाटरशेड जमीन का एक ऐसा हिस्सा होता है जहाँ गिरने वाला सारा पानी बह जाता है या एक बिंदु पर इकट्ठा हो जाता है, जैसे कि कोई धारा, नदी या झील. वाटरशेड की बाहरी सीमा जमीन की टोपोग्राफी, जैसे कि पहाड़ियों और घाटियों से तय होती है. यही टोपोग्राफी पानी के प्रवाह को दिशा देता है.
बेसलाइन पर पहुंचने के लिए मौजूदा खपत के स्तर के साथ-साथ बारिश और जमीन के नीचे पानी की उपलब्धता को भी ध्यान में रखना होगा. वाटर क्रेडिट के लिए बेसलाइन को तय करने के लिए किसी उत्पाद के आभासी जल का आकलन करना बहुत जरूरी है, यानि कि 'उत्पादन के स्थान के मुकाबले खपत किया गया कुल पानी'.
वाटर फुटप्रिंट को तय करना
इस मूल्यांकन में 3 पहलुओं का उपयोग किया जाता है:
1. वाटर ऑडिट: वाटर ऑडिट किसी इकाई द्वारा कितने जल का उपयोग किया जा रहा है, इसका मूल्यांकन है. जिसमें पानी की कमी वाले क्षेत्रों और पानी के संरक्षण की गुंजाइश का पता लगाया जाता है. यह पानी की बर्बादी और परिचालन लागत को भी कम करता है, इसके साथ ही पानी की कमी का सामना करने की क्षमता भी पैदा करता है. वाटर ऑडिट पर्यावरण को सुरक्षित बनाने और कानून के पालन में भी मदद करता है.
2. वर्चुअल वाटर: वर्चुअल वाटर कच्चे माल से लेकर अंतिम उत्पाद तक उत्पादों और सेवाओं में उपयोग आए पानी की मात्रा है. यह निम्न चीजों के लिए जिम्मेदार होगा.
- ग्रीन वाटर - पौधों की जड़ों में जमा बारिश के पानी का उपयोग फसलों की पैदावार में किया जाता है.
- ब्लू वाटर - वस्तुओं या सेवाओं की प्रोसेसिंग के लिए उपयोग में आया जमीन के ऊपर और जमीन के नीचे के पानी का उपयोग
- ग्रे वाटर– इस प्रक्रिया में अपशिष्टों या डिस्चार्ज के कारण ताजा पानी प्रदूषित हो जाता है.
तीनों एक साथ उत्पादों में छिपे हुए पानी के उपयोग को सामने लाते हैं और पानी का अत्यधित उपयोग करने वाले उत्पादों और उनके व्यापार पर जानकारी के साथ फैसला लेने में मदद करते हैं.
3. वाटर फुटप्रिंट: यह वर्चुअल वाटर को कैप्चर करता है, साथ ही वाटर फुटप्रिंट और इसके उपयोग के चरणों का पता लगाता है. इसका उपयोग कृषि, उद्योगों और घरेलू कार्यों में पानी के उपयोग के टिकाउपन का आकलन करने के लिए किया जा सकता है. यह पानी के उपयोग और पर्यावरण पर पड़ने वाले उसके प्रभाव को लेकर एक विस्तृत एप्रोच प्रदान करेगा, साथ ही पानी का उपयोग घटाने के लिए रणनीति विकसित करने में मदद करेगा.
यह तरीका एक सिरे से दूसरे सिरे तक पानी की कुल खपत को मापती है. साथ ही इसे केवल यूनिक की जल दक्षता तक सीमित नहीं रखती है, बल्कि यूनिट के वाटर ओवरहेड के साथ-साथ कच्चे माल और पैकेजिंग सामग्री की भी जांच करती है.
इस तरीके का उपयोग करके आधार रेखा को तय करना बेहद जरूरी होता है - क्योंकि 2 अलग-अलग मैन्युफेक्चरिंग यूनिट एक ही उत्पाद तैयार करती हों, लेकिन यदि एक यूनिट पानी की पर्याप्त उपलब्धता वाले इलाके में हो और दूसरी पानी की कमी वाले इलाके में हो, तो अलग-अलग वाटर फुटप्रिंट बेसलाइन वैल्यु प्रदर्शित करेंगे. ऐसे में वाटरशेड के संबंध में या असेसमेंट यूनिट के आधार पर विभिन्न उद्योगों के लिए आधार रेखाएं तय करना बहुत जी जरूरी है. जैसा कि रेगुलेटरी अथॉरिटी ने देश को इस तरह से प्रदर्शित किया है.
वाटर क्रेडिट सिस्टम को लागू करना
एक बेहतर वाटर क्रेडिट सिस्टम को डिजाइन करने के लिए, साथ ही पानी की विशेषतौर पर कमी और गुणवत्ता से जुड़ी चुनौतियों को हल करने के लिए मजबूत कानूनी ढांचे और क्षेत्रीय स्तर पर इसे अपनाए जाने की जरूरत होती है. वेरिफिकेशन प्रोसेस के समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बताई गई बचत वास्तविक है और बढ़ा-चढ़ाकर नहीं पेश की गई है. जल अधिकार और विनियामक प्रशासन हर राज्य में अलग अलग है. ऐसे में एक स्टैंडर्ड वाटर क्रेडिट मार्केट को शुरू करने से पहले इन्हें सही करना बहुत ही जरूरी है. वाटर क्रेडिट मार्केट कार्बन क्रेडिट प्लेटफ़ॉर्म के सिद्धांतों को अपना सकता है, लेकिन स्टेबिलिटी प्राप्त करने से पहले उसे मैच्योरिटी के चरण से गुज़रना पड़ सकता है. यहां इसकी आर्थिक कीमत को तय करना बहुत ही मुश्किल काम होगा और इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में आधार रेखाएं स्थापित करने के लिए खास अध्यय कराए जाने की जरूरत होगी. बेवरेजेस सेक्टर के लिए आधार रेखाएं तय करने के लिए TERI स्कूल ऑफ एडवांस्ड स्टडीज़ - बिसलेरी स्टडी 2024 जैसे पहले से ही किए जा चुके अध्ययनों से टूलकिट तैयार की जा सकती है.
छोटे किसानों से लेकर बड़े कॉमर्शियल उद्यमों जैसे सभी हितधारकों तक सही तरीके से वाटर क्रेडिट उपलब्ध करा पाना भी बड़ी चुनौती होगी. ऐसा न हो कि वाटर क्रेडिट मार्केट पर सिर्फ धनी संस्थाओं का दबदबा हो. सिस्टम को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वाटर क्रेडिट से सभी क्षेत्रों में पानी को बचाने की दिशा में ठोस सुधार किया जाए.
सारांश
पानी के स्थायी प्रबंधन के लिए वाटर क्रेडिट एक इनोवेटिव सॉल्यूशन प्रदान करते हैं. पानी की बचत करने के उपायों को आर्थिक मूल्य से जोड़ने से पानी की सुरक्षा और इसके सही उपयोग को प्रोत्साहन मिलेगा. एक ओर जहां पूरी दुनिया पानी से जुड़ी समस्याओं से जूझ रही है, ऐसे में वाटर क्रेडिट को सफलता पूर्वक लागू करने से भविष्य के लिए जल संसाधनों के स्थायी प्रबंधन में मदद मिल सकती है.
(feature image: freepik)
(लेखक ‘Bisleri International Pvt. Ltd.’ के CEO हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. YourStory का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है.)
Edited by रविकांत पारीक