पैरों से दिव्यांग साहू में अभी दुनिया की सात और ऊंची चोटियां फतह करने का जज्बा
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के युवा इंजीनियर चित्रसेन साहू ट्रेन हादसे में दोनो पैर गंवाने के बावजूद अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा फहरा चुके हैं। अभी दुनिया की बाकी सात सबसे ऊंची चोटियां फतह करना चाहते हैं। छह लाख से अधिक विकलांगों के प्रेरणा स्रोत साहू उनके रोजी-रोजगार के लिए भी संघर्षरत हैं।
विकलांगता को मात देकर अफ्रीकी महाद्वीप के पहाड़ किलिमंजारो की 5685 मीटर ऊंची चोटी गिलमंस पर तिरंगा फहरा चुके छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के 28 वर्षीय चित्रसेन साहू एक ट्रेन हादसे में अपने दोनो पैर गंवा चुके हैं। बिलासपुर जाते समय 4 जून, 2014 को भाटापारा रेलवे स्टेशन पर पैर फिसलने से चित्रसेन ट्रेन के बीच फंस गए।
घटना के अगले दिन एक पैर और 24 दिन बाद दूसरा पैर काटना पड़ा। वो जिंदगी का सबसे दुखद दौर था। उसके बाद पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा की दास्तान पढ़कर उन्हे ऐसा हौसला मिला कि जिंदगी की राह ही बदल गई।
रायपुर हाउसिंग बोर्ड के सिविल इंजीनियर साहू कहते हैं कि विकलांगता, शरीर के किसी अंग का नहीं होना, कोई शर्म की बात नहीं है, न ही यह हमारी सफलता में आड़े आती है। हम किसी से कम नहीं, न ही अलग हैं, तो बर्ताव में फर्क क्यों करना? हमें दया नहीं, सब के साथ समान जिंदगी जीने का हक होना चाहिए। साहू छत्तीसगढ़ शासन और मोर रायपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड के ब्रांड एम्बेसडर भी हैं।
तुलसी बाबा कह गए हैं - 'मूक होइ बाचाल, पंगु चढ़इ गिरिबर गहन।' साहू ने अपने मिशन को नाम दिया - 'पैरों पर खड़े हैं'। साहू कहते हैं, जो व्यक्ति जन्म से या किसी हादसे में शरीर का कोई अंग गंवा देता है, उसके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। चित्रसेन साहू डबल लेग एंप्युटी यानी दोनों पैर के बिना किलिमंजारो की चोटी से छत्तीसगढ़ को प्लास्टिक मुक्त राज्य बनाने का संदेश भी दे चुके हैं। प्रोस्थेटिक लेग के दम पर 23 सितंबर 2019 को चोटी फतह करने वाले चित्रसेन देश के ऐसे पहले दिव्यांग माउंटेनियर हैं।
अफ्रीका महाद्वीप के सबसे ऊंचे पहाड़ किलिमंजारो पर तिरंगा लहराना कोई आसान बात नहीं थी लेकिन बुलंद हौसलों के साथ 144 घंटे लगातार चढ़ाई के बाद उन्होंने 5685 मीटर ऊंची चोटी गिलमंस को फतह कर लिया। उन्होंने माउंट एवरेस्ट फतह करने वाले छत्तीसगढ़ के ही इकलौते माउंटेनियर राहुल गुप्ता के मार्गदर्शन में वह सफर पूरा किया। तापमान माइनस 5 डिग्री, दोनों पैर प्रोस्थेटिक, दोनों हाथों में छड़ी, पीठ पर पांच किलो का बैग, लेफ्ट लेग में एंजरी के कारण असहनीय दर्द और चढ़ाई के आखिरी बारह घंटे धूलभरे ठंडे तूफान से गुजरते हुए उस दिन थोड़ी सी दूरी तय करते ही उनको समझ में आ गया था कि सफर आसान नहीं। कुछ घंटे की पस्तहिम्मती भी, मगर काबू पाते हुए वह लक्ष्य की तरफ बढ़ चले। चोटी फतह हुई तो थोड़ा इमोशनल भी हो गए थे। 'छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया' का नारा लगाया, भारत माता की जय बोले और तिरंगा फहरा दिया।
तो ये है साहू की बेमिसाल कामयाबी की दास्तान। साहू हिमाचल प्रदेश की 14 हजार फीट ऊंची चोटी पर भी पार पा चुके हैं। वह कहते हैं कि कोई व्यक्ति अगर मन से न हारे तो पूरी दुनिया जीत सकता है। मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। बड़ी बात है। जिंदगी की बड़ी से बड़ी मुश्किल आसान करने का पहला गुरुमंत्र। मुश्किलें आने पर अपने आसपास के लोगों की दया पात्र बनने के बजाए आत्मविश्वास को जीत लीजिए, सारी कठिनाई छूमंतर।
उन्होंने उस ट्रेन हादसे के बाद असहनीय दर्द के बावजूद राजनांदगांव ट्रेनिंग कैंप से व्हील चेयर बास्केटबॉल खेलना शुरू किया। वक़्त बीतता गया। बाद में अपनी टीम के नेतृत्व के साथ लड़कियों की टीम को ट्रेंड किया, साथ ही पांच किलो मीटर मैराथन में भी शामिल हुए। ड्राइविंग लाइसेंस के लिए अदालत की लंबी लड़ाई लड़ी और जीते। वह जीत खुद उनकी नहीं रही, बल्कि उसके बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ के छह लाख ऐसे दिव्यांगों के अधिकार बहाल करा दिए।
वह आज जिंदगी से हारे-थके दिव्यांगों के रोजी-रोजगार के लिए भी संघर्षरत हैं। अब वह विश्व के सात सबसे ऊंचे पहाड़ों पर तिरंगा लहराना चाहते हैं। इस टारगेट को उन्होंने नाम दिया है - 'सेवन सम्मिट'।