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सीखने की कोई उम्र नहीं होती, पंजाब के इस व्यक्ति ने 83 साल की उम्र में प्राप्त की स्नातकोत्तर की डिग्री

होशियारपुर के दाता गाँव के निवासी, गिल ने 1957 में खालसा कॉलेज, माहिलपुर से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और अगले वर्ष अमृतसर के खालसा कॉलेज से अध्यापन का कोर्स करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी।

सीखने की कोई उम्र नहीं होती, पंजाब के इस व्यक्ति ने 83 साल की उम्र में प्राप्त की स्नातकोत्तर की डिग्री

Friday January 10, 2020 , 2 min Read

83 साल की उम्र में मास्टर्स की डिग्री हासिल करके, सोहन सिंह गिल ने साबित कर दिया है कि सीखने में कभी देर नहीं होती। वार्षिक दीक्षांत समारोह में जालंधर के एक विश्वविद्यालय द्वारा डिग्री प्रदान किए जाने पर उन्हें बहुत सराहना मिली।


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होशियारपुर के दाता गाँव के निवासी, गिल ने 1957 में खालसा कॉलेज, माहिलपुर से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और अगले वर्ष अमृतसर के खालसा कॉलेज से अध्यापन का कोर्स करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी। 


सोहन सिंह गिल बताते हैं,

“मेरे कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल वरियाम सिंह ने सुझाव दिया कि मैं मास्टर्स कर लूँ और लेक्चरर बन जाउँ। उनका ये सुझाव मुझे भी पसंद आया था, लेकिन जैसा कि किस्मत में था, मैं केन्या (अफ्रीका) में स्थानांतरित हो गया और वहां शिक्षण कार्य प्राप्त किया। मैं साल 1991 में भारत लौट आया और साल 2017 तक विभिन्न स्कूलों में पढ़ाया, लेकिन पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री पाने की इच्छा हमेशा मेरे दिल में थी।”



दो साल पहले, उन्होंने अंग्रेजी में एमए के लिए साइन-अप किया और एक दूरस्थ शिक्षा केंद्र में शामिल हो गए।


गिल कहते हैं,

“अपनी इच्छा शक्ति और ईश्वर की कृपा से, मैंने अंततः वही हासिल किया है जो मैं हमेशा से चाहता था। अंग्रेजी बचपन से ही मेरी पसंदीदा भाषा रही है। केन्या में रहने के दौरान मुझे इसमें महारत हासिल करने का मौका मिला।”


वे आगे कहते हैं,

मैं जानता था कि मैं इसे हासिल करूंगा, इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं था। मैं आईईएलईटीएस (IELETS) के छात्रों को भी प्रशिक्षित कर रहा हूं और सभी ने अच्छे अंक अर्जित किए हैं।


15 अगस्त 1937 को जन्मे सोहन सिंह गिल ने ग्रामीण स्कूलों में पढ़ाई की और खालसा हाई स्कूल, माहिलपुर से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। वह फुटबॉल और हॉकी में भी अच्छे थे और हॉकी के दिग्गज जरनैल सिंह के साथ खेलने का अवसर मिला।


वह बताते हैं,

“मैंने केन्या में भी हॉकी में अपनी रुचि को बनाए रखा और 'ए ग्रेड' अंपायर बना रहा।”


वह कहते हैं कि एक स्वस्थ जीवन शैली और सकारात्मक सोच ने उन्हें आगे बढ़ाया।


उन्होंने कहा,

अब जब मैंने अपने सपने को पूरा कर लिया है, तो मैं बच्चों के लिए किताबें लिखना चाहता हूं।



(Edited by रविकांत पारीक )