80 साल का यह नौजवान IIT-मद्रास की प्रवेश परीक्षा में बैठा है

उस परीक्षा कक्ष में उनके अलावा 120 स्‍टूडेंट और बैठे आईआईटी मद्रास की प्रवेश परीक्षा दे रहे थे. लेकिन किसी की उम्र 25 साल से ज्‍यादा नहीं थी. सब युवा थे और उनके बीच 80 बरस का एक शख्‍स बैठा था, जिसके चेहरे पर परीक्षा का तनाव तो था, लेकिन मुस्‍कुराहट अब भी सौम्‍य थी.

80 साल का यह नौजवान IIT-मद्रास की प्रवेश परीक्षा में बैठा है

Wednesday June 08, 2022,

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उम्र का क्‍या है. एक संख्‍या ही तो है. इंसान की इच्‍छाशक्ति और जिजीविषा के सामने उम्र कुछ भी नहीं. मन बूढ़ा हो जाए तो कोई 25 बरस में भी बूढ़ा महसूस करने लगे और मन जवान हो तो 80 साल की उम्र भी उत्‍साह और उम्‍मीद की उम्र हो सकती है.

80 बरस के नंदकुमार के. मेनन ऐसे ही जोश और उत्‍साह का दूसरा नाम हैं, जो 80 साल की उम्र में आईआईटी मद्रास की प्रवेश परीक्षा में बैठे हैं. अभी तीन दिन पहले रविवार को जब वो आईआईटी मद्रास की परीक्षा के कोची सेंटर पर एग्‍जाम देने पहुंचे तो गार्ड ने उन्‍हें मुख्‍य दरवाजे पर ही रोक लिया. उसे लगा कि किसी स्‍टूडेंट के पिता साथ में घुसे चले आ रहे हैं. वो तो जब उन्‍होंने अपना हॉल टिकट और रोल नंबर वाला कागज दिखाया, तब कहीं जाकर उन्‍हें भीतर जाने को मिला.

उस परीक्षा कक्ष में उनके अलावा 120 स्‍टूडेंट और बैठे आईआईटी मद्रास की प्रवेश परीक्षा दे रहे थे. लेकिन किसी की उम्र 25 साल से ज्‍यादा नहीं थी. सब युवा थे और उन सबके बीच हल्‍की हरी शर्ट, सफेद लुंगी पहने और माथे पर सफेद टीका लगाए एक 80 बरस का नौजवान परीक्षा दे रहा था, जिसके चेहरे पर परीक्षा का थोड़ा तनाव तो था, लेकिन मुस्‍कुराहट अब भी मीठी और सौम्‍य थी.

जाहिरन परीक्षा शुरू होने से पहले हॉल में मौजूद बाकी लड़कों ने उन्‍हें एक बार तो जरूर पलटकर देखा होगा. एक्‍जाम पेपर दे रहा व्‍यक्ति भी एक बार मुस्‍कुराया होगा लेकिन फिर सब परीक्षा में व्‍यस्‍त हो गए. नंदकुमार के. मेनन की कहानी द हिंदू ने सबसे पहले छापी, जिस पढ़कर हर किसी के चेहरे पर एक बार फख्र वाली मुस्‍कान तो आ ही गई है.

इस प्रवेश परीक्षा में बैठने के लिए भी नंदकुमार मेनन ने आईआईटी मद्रास की एक कठिन ऑनलाइन परीक्षा पास की, जिसके चलते वो एंट्रेंस एग्‍जाम दे पाए. आईआईटी मद्रास प्रोग्रामिंग और डेटा साइंस से जुड़ी एक ऑनलाइन परीक्षा करवाता है. नंदकुमार मेनन ने वह परीक्षा पास की.

नंदकुमार मेनन पेशे से इंजीनियर हैं. भारत के पहले इंजीनियर एम. विश्‍वेश्‍वरैया हमेशा से उनके रोल मॉडल रहे हैं. आर्थिक मुश्किलों में पले-बढ़े मेनन ने त्रिवेंद्रम कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. बाद में उन्‍हें नासा की स्‍कॉलरशिप भी मिली और वो पोस्‍ट ग्रेजुएशन करने के लिए अमेरिका चले गए.

अमेरिका में उन्‍होंने सिरेक्‍यूज यूनिवर्सिटी (Syracuse University) ये क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग (मैकेनिकल इंजीनियरिंग की ही एक शाखा) की पढ़ाई की. अमेरिका में उन्‍हें ग्रीन कार्ड भी मिल गया था. ग्रीन कार्ड का मतलब था कि वो उस देश की नागरिकता लेकर वहां आराम से रह सकते थे. लेकिन उन्‍होंने अपने देश लौटना चुना.

इस परीक्षा की तैयारी के लिए वो इतने प्रतिबद्ध थे कि रोज सुबह साढ़े पांच उठकर पढ़ाई करते थे. उन्‍होंने एक महीने तक डेटा प्रोसेसिंग, गणित, स्‍टैटिसटिक्‍स और अंग्रेजी की क्‍लास भी अटेंड की. मजे की बात ये है कि उनका बेटा सेतु नंदकुमार भी इस एंट्रेंस एग्‍जाम के लिए बैठा था, लेकिन वो पास नहीं हो पाया.

अंत में इस कहानी का सार इतना ही है कि अगर आपको लगता है कि अपने सपनों को पूरा करने की आपकी उम्र निकल चुकी तो 80 साल के उस नौजवान के बारे में सोचिए, जो आईआईटी की परीक्षा दे रहे हैं. अगर वो ये परीक्षा पास कर जाते हैं और आईआईटी में उन्‍हें एडमिशन मिल जाता है तो वो बाकायदा कोर्स भी पूरा करेंगे.

उम्र तो बस एक मन का वहम है. अपने सपनों को पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती. किसी भी वक्‍त एक नई शुरुआत की जा सकती है.

(फीचर फोटो क्रेडिट - The Hindu)


Edited by Manisha Pandey