इस तरह होगी मोर्चेबंदी, तभी थमेगी आधी आबादी से बर्बरता और यौन हिंसा
बेटियों की बात : दो
कानून, पुलिस और महिला आयोगों की मदद के साथ यौन हिंसा और महिलाओं से बर्बरता रोकने की दिशा में नेशनल प्लेटफ़ॉर्म फ़ॉर द राइट्स ऑफ़ द डिसएबल्ड, एक्शन फ़ॉर इक्वालिटी, ईक्वल कम्युनिटी फ़ाउंडेशन, प्रोमुंडो, साथ ही 'मार्टियर्स ऑफ़ मैरिज' जैसी तमाम डॉक्यूमेंट्री की हैवानियत से मुकाबले की दिशा में शानदार पहल।
मासूम बच्चियों, लड़कियों, महिलाओं के साथ घर के अंदर या चौखट से बाहर हिंसा, दुराचार और उसे रोकने के लिए कानून-पुलिस-प्रशासन की बातें तो मुद्दत से होती आ रही हैं, लेकिन बर्बरता न तो थम रही है, न प्रसार माध्यमों से चौबीसो घंटे घर-घर में फैलाई जा रही बदमजगी को कोई रोकने-टोकने वाला है। जब से मोबाइल पर नेट टेक्नोलॉजी आसान और सुलभ हुई है, फैशन शो के नाम पर नंग-धड़ंग सामग्री, फिल्मी फूहड़ धत्कर्मों की गली-गली में परनालियां उफन रही हैं।
रेप की सूचना प्रकाशित करने की आड़ में नंगी तस्वीरें परोसने के चलन से भी मीडिया बदचलनी को खूब हवा दी जा रही है। ऐसे में पूरी तरह विकृत किए जा रहे माहौल में सांस्कृतिक भलमनसाहत की कोई उम्मीद भी कैसे करे। हां, अब कुछ संगठनों ने यौन हिंसा और महिलाओं से बर्बरता रोकने की दिशा में हैवानियत से मुकाबले की शानदार पहल जरूर की है।
ऐसी ही कुछ संस्थाएं हैं, 'नेशनल प्लेटफ़ॉर्म फ़ॉर द राइट्स ऑफ़ द डिसएबल्ड' (एनपीआरडी), एक्शन फ़ॉर इक्वालिटी (एएफ़ई), ईक्वल कम्युनिटी फ़ाउंडेशन (ईसीएफ़), ब्राज़ील का प्रोमुंडो आदि, साथ ही 'मार्टियर्स ऑफ़ मैरिज' जैसी तमाम डॉक्यूमेंट्री।
महिलाओं के खिलाफ हिंसा को लेकर सख्त कानून तो है लेकिन उसका पालन कितना हो पा रहा है, इसे आकंड़ों को देख कर जाना जा सकता है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आकंड़ों से पता चलता है कि देश भर में लगातार इजाफे के साथ वर्ष 2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3,59,849 मामले दर्ज किए गए।
उससे पहले 2016 में 3,38,954 और 2015 में 3,29,243 मामले दर्ज हो चुके थे।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, महिलाओं के साथ हिंसा पूरी दुनिया का एक भयंकर मर्ज़ बन चुका है। सत्तर फ़ीसद महिलाएं अपने क़रीबी के हिंसक बर्ताव झेल रही हैं। औसतन हर रोज़ 137 महिलाएं अपने क़रीबियों के हाथों मारी जा रही हैं। भारत में महिलाओं के प्रति हिंसा की सबसे बड़ी मिसाल दिसंबर 2012 में दिल्ली में देखी गई, अब हैदराबाद की बर्बरता। ऐसी न जाने कितनी वारदातें तो मीडियां की सुर्खियां बनने से रह जा रही हैं।
एक्शन फ़ॉर इक्वालिटी (एएफ़ई) और ईक्वल कम्युनिटी फ़ाउंडेशन (ईसीएफ़) का मक़सद लड़कियों, महिलाओं के साथ किशोर उम्र लड़कों की हिंसा को रोकना है। पुणे में ऐसे 5000 से ज्यादा लड़कों को ऐसी बर्बरता रोकने में लगाया गया है। एएफ़ई के तहत 13 से 17 साल की उम्र तक के लड़के 43 हफ़्ते के एक कोर्स में शामिल होते हैं, जिसमें उन्हें महिलाओं से हिंसा न करने, लैंगिक भेदभाव से बचना सिखाया जाता है।
एएफ़ई का मिशन चला रहे ऐसे लोग हैं, जो किशोरों के लिए आदर्श हैं। उनके ही नक़्शे-क़दम पर ये किशोर चलते हैं। ईसीएफ़ के इस कार्यक्रम में शामिल होने की शर्त है, ऐसे हर युवक को 60 प्रतिशत कक्षाओं में शामिल होना होगा।
स्थानीय स्तर पर लैंगिक समानता के लिए काम कर रहे ईसीएफ़ से जुड़े लड़कों को बताया जाता है कि वे तभी मदद करें, जब लड़कियां उनसे मदद मांगें या फिर वो वाक़ई बेहद मुश्किल हालात में हों।
साथ ही वे हर काम ख़ुद करने के बजाय अधिकारियों को घटना के संबंध में ख़बर किया करें।
इसी तरह भारत, यूरोप, अमेरिका समेत 25 देशों में सक्रिय ब्राज़ील का 'प्रोमुंडो' संगठन पूरी दुनिया में ऐसे कार्यक्रम चला रहा है।
इसकी स्थापना 1997 ब्राज़ील में हुई थी। अब इसका मुख्यालय वॉशिंगटन में है। इसका मक़सद शहरी बस्तियों में महिलाओं के प्रति होने वाले दुर्व्यवहार को रोकना है।
इससे जुड़े 10 से 24 साल तक के लड़कों को लगातार चार महीने तक लैंगिक समानता और लड़कियों, महिलाओं से अच्छे बर्ताव का पाठ पढ़ाया जाता है। ये 12-12 लोगों के छोटे-छोटे समूह में सक्रिय होते हैं।
लैंगिक अंतर जानने के लिए प्रोमुंडो ने जेम नाम का एक पैमाना ईजाद कर रखा है। जेम यानी जेंडर इक्विटेबल मेन के तहत सुरक्षित यौन संबंध, घरेलू हिंसा, परिवार नियोजन और महिलाओं के प्रति बदली हुई सोच को मापा जाता है।
एक अध्ययन के मुताबिक, प्रोमुंडो की सख्त पहल से महिलाओं के साथ हिंसा के मामलों में 20 फ़ीसद तक गिरावट आई है।
(क्रमशः)