सॉफ़्टवेयर इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ ओडिशा की कला को पूरी दुनिया तक पहुंचा रहा यह शख़्स
स्टार्टअप भारत सीरीज़ में आज हम आपको ओडिशा के एक इंजीनियर की कहानी बताने जा रहे हैं, जो अपनी नौकरी छोड़कर अपने घर (भुवनेश्वर) लौटे और वहां के ग्रामीण कलाकारों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। कोणार्क के सूर्य मंदिर के पत्थरों पर हुई नक्काशी हो या फिर पुरी के समुद्र तटों पर दिखने वाली सैंड आर्ट, ओडिशा के पास कला और साहित्य की पर्याप्त सम्पदा है।
आज हम जिस शख़्स का ज़िक्र कर रहे हैं, उनका नाम है राकेश परीदा, जिन्होंने 'ठूमरी' नाम से एक ग्लोबल ऑनलाइन मार्केटप्लेस की शुरुआत की, जो भारतीय हैंडलूम और हैंडीक्राफ़्ट्स को पूरी दुनिया तक पहुंचा रहा है। ठूमरी की शुरुआत ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से जून, 2015 में हुई थी। यह प्लेटफ़ॉर्म कलाकारों को सीधे ग्राहकों से जोड़ने का काम करता है। इस तरह से कलाकारों को उनकी कला की सही क़ीमत मिलती है और वे बिचौलियों के कमीशन से बच जाते हैं।
राकेश कहते हैं, "ठूमरी में कलाकारों के साथ किसी तरह का धोख़ा नहीं होता। उन्हें पूरी जानकारी रहती है कि उनका उत्पाद किस क़ीमत पर बेचा जा रहा है।" राकेश ने 30-40 लाख रुपए के शुरुआती निवेश के साथ ठूमरी की शुरुआत की थी। अभी तक इस प्लेटफ़ॉर्म के साथ पूरे ओडिशा से 2,000 कलाकार जुड़ चुके हैं, जो स्टोन क्राफ़्ट और हैंडलूम फ़ैब्रिक से लेकर पाल्म-लीफ़ पेंटिंग और पटचित्र आदि कलाओं के विभिन्न प्रकार के उत्पाद उपलब्ध करा रहे हैं।
राकेश कहते हैं कि ठूमरी के माध्यम से परोक्ष रूप से 10 हज़ार से भी अधिक कलाकार प्रभावित हो रहे हैं और उनका सपना है कि वह ठूमरी के माध्यम से पूरे भारत में फैले हुए 70 लाख से भी ज़्यादा कलाकारों को अपने साथ जोड़ सकें।
अपने ऑपरेशन्स के पहले महीने में ही, ठूमरी ने 16 हज़ार रुपए के उत्पाद बेचे थे। आज की तारीख़ में, कंपनी का मासिक रेवेन्यू करीबन 7 लाख रुपए है और कंपनी का लक्ष्य है कि इस साल मार्च तक सालाना टर्नओर 1 करोड़ रुपए तक पहुंच सके।
वैसे तो कंपनी की शुरुआत बूटस्ट्रैप्ड फ़ंडिंग के माध्यम से हुई थी, लेकिन अभी तक ठूमरी कुछ निवेशकों के माध्यम से 20 लाख रुपए की फ़ंडिंग जुटा चुका है। इन निवेशकों में सोशल एंटरप्राइज़ इनक्यूबेटर विलग्रो, केआईआईटी टीबीआई, डीएफ़आईडी यूके और टीडीबी (भारत सरकार) शामिल हैं।
ओडिशा के रघुराजपुर के कलाकार संतोष बेहरा ने योर स्टोरी से हुई बातचीत में जानकारी दी कि वह हर महीने ठूमरी प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से अपनी पटचित्र और वुड आर्ट के उत्पादों बेचकर 18 हज़ार रुपए तक की मासिक आय पैदा कर लेते हैं।
वह कहते हैं, "ठूमरी के माध्यम से एक ही बार में पैसे मिल जाते हैं और यह बात बहुत अच्छी लगती है। बाहर बेचते हैं तो तीन से चार बार में पूरा पैसा मिल पाता है।" राकेश एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बचपन के दिन याद करते हुए वह बताते हैं कि उनके घर लोगों का जमावड़ा लगा रहता था, जो तरह-तरह की गुज़ारिश लेकर आते थे और जिनमें मुख्य रूप से आर्थिक स्थिति सुधारने की गुहार शामिल होती थीं।
32 वर्षीय राकेश हमेशा से ही ज़रूरतमंदों की मदद करना चाहते थे और इसलिए उन्होंने फिलिप्स कंपनी में सॉफ़्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़कर वापस लौटने का फ़ैसला लिया। राकेश बताते हैं कि भुवनेश्वर से स्टार्टअप शुरू करना मेट्रो शहरों के मुक़ाबले काफ़ी किफ़ायती होता है और साथ ही, वह उड़ीसा की परंपरागत कला को भुनाना चाहते थे।
राकेश ने जानकारी दी कि निवेश के लिए उन्होंने 15 से अधिक वित्तीय संगठनों से संपर्क किया, लेकिन कोई भी उन्हें लोन देने के लिए तैयार नहीं था। राकेश बताते हैं कि काम शुरू करने के लिए उन्होंने अपनी बचत के साथ-साथ परिवार वालों और दोस्तों की मदद ली। यहां तक कि उन्होंने ठूमरी की शुरुआत करने के लिए अपनी कार तक बेच दी।
इसके बाद उन्होंने पूरे ओडिशा में घूमकर वहां पर फैली कला और कलाकारों पर शोध शुरू किया। कलाकारों का चुनाव करने के बाद उन्होंने 15 लोगों की टीम के साथ ठूमरी की शुरुआत की। राकेश टीम में आईआईएम से पढ़े महेश नाथ, नैशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ़ फै़शन टेक्नॉलजी और भुवनेश्वर के स्कूल ऑफ़ फ़ैशन टेक्नॉलजी के डिज़ाइनर्स शामिल हैं, जो कलाकारों के साथ मिलकर काम करते हैं और मार्केट के हिसाब से उपयुक्त उत्पाद तैयार करने में उनकी मदद करते हैं।
हाल में, पुणे और मुंबई में भी ठूमरी के वेयरहाउस हैं और कंपनी की तैयारी है कि जल्द ही दिल्ली, बेंगलुरु और पश्चिम बंगाल में ऑपरेशन्स की शुरुआत की जाए। राकेश ने बताया कि उनकी टीम महाराष्ट्र और राजस्थान के कलाकारों को साथ जोड़ने के लिए भी सर्वे कर रही है।
ठूमरी के उत्पाद चीन और सिंगापुर में भी बिक रहे हैं और साथ ही, यूएस और यूके तक भी उत्पाद निर्यात किए जा रहे हैं। यहां तक कि यूरोप में जर्मनी तक भी कंपनी के उत्पाद पहुंच रहे हैं। राकेश बताते हैं कि उनके पास आने वाले एक्सपोर्ट ऑर्डर्स में से 35 प्रतिशत तक जर्मनी से आते हैं, जिनमें मुख्य रूप से डोकरा हैंडीक्राफ़्ट्स शामिल रहते हैं।
भारत में उपलब्ध रोज़गार में एक बड़ी हिस्सेदारी देश के हैंडीक्राफ़्ट सेक्टर की भी है। एक आईबीईएफ़ रिपोर्ट के मुताबिक़, 2018 में अप्रैल से नवंबर के बीच भारत ने 2.42 बिलियन डॉलर के हैंडीक्राफ़्ट्स निर्यात किए हैं।
कंपनी अपने इन्वेंटरी मॉडल के अंतर्गत, हैंडलूम और हैंडीक्राफ़्ट उत्पादों को वेयरहाउस में इकट्ठा करती है और बिक्री के लिए उन्हें वेबसाइट पर लिस्ट करती है। ठूमरी शिपिंग चार्ज के साथ-साथ 6-10 प्रतिशत कमीशन चार्ज करता है। इसके अतिरिक्त, ऐग्रीगेटर मॉडल के तहत कंपनी के डिज़ाइनर्स कलाकारों के साथ मिलकर काम करते हैं और उनके उत्पादों के फ़ोटो इत्यादि लेने में उनकी मदद करते हैं। साथ ही, वेबसाइट पर उत्पाद लिस्ट करने के लिए भी कोई फ़ीस चार्ज नहीं करी जाती। जब वेबसाइट के माध्यम से कोई ऑर्डर मिलता है, तब ठूमरी की टीम पैकेजिंग में भी कलाकारों की मदद करती है और इसके बाद ग्राहकों को प्रोडक्ट भेज दिया जाता है। राकेश ने जानकारी दी कि उनको मिलने वाले ऑर्डर्स का ऐवरेज साइज़ 3,500 रुपए है। वेबसाइट के अलावा, ठूमरी की ऐप प्ले स्टोर और ऐप स्टोर पर भी उपलब्ध है।
ठूमरी, बीटूसी और बीटूबी दोनों ही मॉडल्स के तहत काम करता है। कंपनी ने भुवनेश्वर में एक्सपीरिएंस स्टोर भी खोला है, जहां पर ओडिशा के विभिन्न प्रकार के हैंडीक्राफ़्ट्स उपलब्ध हैं। ठूमरी के बीटूबी ऑर्डर्स, इंटीरियर डिज़ाइनरों और कॉर्पोरेट ऑफ़िसों के माध्यम से आते हैं। बीटूबी के तहत कई हॉस्पिट्लस भी ठूमरी के ग्राहकों की सूची में शामिल हैं। राकेश, भारत के सभी बड़े शहरों में एक्सपीरिएंस स्टोर्स खोलना चाहते हैं। साथ ही, वह चाहते हैं कि हर एक्सपीरिएंस स्टोर पर पूरे देश के हैंडलूम प्रोडक्ट्स उपलब्ध हों।
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