इस महिला उद्यमी ने धान के कचरे से बनाया वीगन लेदर, अब कर रही हैं खूबसूरत पर्स और बैग का निर्माण
चमड़े के बैग और एक्सेसरीज़ के अग्रणी निर्माता ला बैगियो के साथ काम करते हुए भावना बेलानी के जीवन बड़ा बदलाव तब आया जब 13 साल की उनकी बेटी ने पशु के ऊपर होनी वाली क्रूरता का हवाला देते हुए चमड़े के किसी भी उत्पाद का उपयोग करने से साफ इनकार कर दिया था। इस घटना ने भावना को पर्यावरण के अनुकूल सामान तैयार करने और अन्य इससे जुड़े उपायों पर ध्यान देने पर मजबूर कर दिया।
वकील रह चुकीं भावना लगभग 20 साल पहले अपने भाई द्वारा शुरू किए गए व्यवसाय में शामिल हो गईं थीं। हालांकि उनके भाई ने उस व्यवसाय को छोड़ दिया और तब भावना ने यह ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर लेकर आगे बढ़ते हुए जबरदस्त सफलता के साथ इसे चलाना जारी रखा।
उनकी बेटी के रुख ने उन्हे चमड़े के विभिन्न स्थायी विकल्पों की ओर जाने के लिए प्रेरित किया। भावना ने आगे बढ़ते हुए अब धान के कचरे (पराली) से बने वीगन चमड़े के तैयार हुए सामान के ब्रांड Bagatella की शुरुआत की है।
भावना इसपर बात करते हुए कहती हैं, "इस विषय पर रिसर्च करते हुए मैंने मेक्सिको में लोगों के बारे में पढ़ा जो कैक्टस जैसे पौधों से चमड़ा बनाते हैं, यह मेरे लिए जैसे आंखेँ खोलने वाला था।"
इसी बीच भावना का ध्यान विशेष रूप से धान के कचरे पर गया क्योंकि वह पश्चिम बंगाल में रहती है, जहां हर साल 5.8 मिलियन हेक्टेयर में चावल की खेती होती है, जिसकी औसत उत्पादकता 2.6 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक है। मालूम हो कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने और इसके परिणामस्वरूप प्रदूषण का बढ़ता स्तर अभी भी एक बड़ा मुद्दा है।
ब्लू स्काई एनालिटिक्स के एक अध्ययन के अनुसार, भारत फसल जलने से संबंधित उत्सर्जन में टॉप पर है, जो 2015 से 2020 के दौरान कुल वैश्विक उत्सर्जन का 13 प्रतिशत रहा है। भावना की यह पहल फसल के कचरे का फिर से उपयोग करने और इस समस्या से निपटने का सबसे अच्छा और सबसे टिकाऊ तरीका बनाती है।
पर्यावरण के अनुकूल विकल्प
Bagatella लाइन फिलहाल प्रोटोटाइप अवस्था में है और भावना ने इस प्रोसेस को लेकर एक पेटेंट के लिए भी अप्लाई किया है। निर्माण प्रक्रिया के बारे में अधिक बात ना करते हुए भी भावना ने बताया है कि दो प्रोटोटाइप- पोर्टफोलियो और वॉलेट पहले ही तैयार हो चुके हैं, जबकि वैज्ञानिक अब तीसरे प्रोटोटाइप पर काम कर रहे हैं।
वह बताती हैं, "हम अभी प्रयोगशाला चरण में हैं और अगले साल उत्पादों की श्रंखला लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं।"
इससे पहले, वह कोलकाता में एक इकाई स्थापित करने की योजना बना रही है। उनका अनुमान है कि शुरुआती सेटअप और मशीनरी पर करीब 20 लाख रुपये का खर्च आएगा।
वे कहती हैं, “मैं एक महिला उद्यमी के साथ पार्टनरशिप भी कर रही हूं जो लंबे समय से चावल का निर्यात कर रही हैं। मैं उनके खेत से कचरा खरीदूँगी। छोटे स्तर पर उत्पादन शुरू करने के लिए हमें हर महीने लगभग 15 हज़ार किलोग्राम कचरे की आवश्यकता होगी।”
अधिक विवरण में नहीं जाते हुए भावना इस बात पर जोर देती है कि धान के कचरे को चमड़े जैसी सामग्री में बदलने की प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल और पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है।
भावना कहती हैं, "जबकि वीगन चमड़े की तुलना जानवरों के चमड़े से नहीं की जा सकती है, फिर भी हमने इसे सौंदर्यपूर्ण बनाने के लिए निरंतर सुधार और उसकी फिनिशिंग पर काम किया है।"
भावना छोटी शुरुआत करते हुये व्यवसाय को बढ़ाने में विश्वास रखती हैं। उनके द्वारा एक वॉलेट के लिए लगभग 12 सौ रुपये और एक बैग के लिए लगभग 2,500 से 5,000 रुपये कीमत बताई गई है। वह धीरे-धीरे वीगन चमड़े से बनी स्टेशनरी पेश करने की योजना बना रही है। वे बताती हैं कि एक बार जब पेटेंट स्वीकृत हो जाता है और उत्पादन की मात्रा बढ़ जाती है, तो इस वीगन लेदर अन्य निर्माताओं को बेचा जा सकता है।
वे कहती हैं, “अभी हम पश्चिम बंगाल में किसानों को लक्षित करना चाहते हैं और उन्हें धान के कचरे को जलाने के बजाय हमें बेचने के लिए राजी करना चाहते हैं। आगे बढ़ते हुए हम मैनुफेक्चुरिंग इकाइयां स्थापित करना चाहते हैं और उत्तर भारत में किसानों के साथ काम करना चाहते हैं।”
इस नए कॉन्सेप्ट के काफी अधिक लाभ हैं। सबसे अव्वल तो धान के कचरे को जलाया नहीं जाता बल्कि पर्यावरण के अनुकूल सामान बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसी के साथ किसान धान के कचरे को जलाने के लिए पैसे खर्च करने के बजाय उससे आय अर्जित करते हैं और साथ ही मैनुफेक्चुरिंग यूनिटों की स्थापना से इन राज्यों में रोजगार भी पैदा होगा।
भावना कहती हैं, “एक किसान लगभग 1,000 किलो धान का कचरा जला देता है। वीगन लेदर 2025 तक 89.6 बिलियन डॉलर का उद्योग बनने की ओर आगे बढ़ रहा है। हमारा उद्देश्य केवल भारत को लक्षित करना नहीं है बल्कि अपने उत्पादों को देश के बाहर निर्यात करना
है।”
Edited by Ranjana Tripathi