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40 से अधिक उम्र के लोगों को ASCVD होने का खतरा ज्यादा: टारगेट एलडीएल कोलेस्ट्रॉल स्तर जानने से मिल सकती है मदद

दिल के सेहत के मामले में हम अक्‍सर ‘’कोलेस्‍ट्रॉल’’ शब्‍द सुनते हैं, लेकिन इसका ज्‍यादातर प्रयोग नकारात्‍मक रूप में होता है. पर कोलेस्‍ट्रॉल आखिरकार है क्‍या, और युवाओं को उस पर बराबरी से ध्‍यान देते हुए अपने दिल की सेहत को अच्‍छा क्‍यों रखना चाहिये?

40 से अधिक उम्र के लोगों को ASCVD होने का खतरा ज्यादा: टारगेट एलडीएल कोलेस्ट्रॉल स्तर जानने से मिल सकती है मदद

Monday April 29, 2024 , 4 min Read

कार्डियोवैस्‍कुलर समस्‍याएं अक्‍सर बढ़ती उम्र से जोड़कर देखी जाती हैं, लेकिन ऐसी समस्‍याएं युवाओं में बढ़ना चिंताजनक है. कुछ हालिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि कार्डियोवैस्‍कुलर या दिल की बीमारियाँ पश्चिमी देशों की तुलना में भारतीयों को एक दशक पहले से प्रभावित करने लगती हैं. यह ध्‍यान देने योग्‍य है कि कार्डियोवैस्‍कुलर समस्‍याओं के कारण मरने वाले लगभग दो-तिहाई (62%) भारतीय युवा हैं. 

दिल के सेहत के मामले में हम अक्‍सर ‘’कोलेस्‍ट्रॉल’’ शब्‍द सुनते हैं, लेकिन इसका ज्‍यादातर प्रयोग नकारात्‍मक रूप में होता है. पर कोलेस्‍ट्रॉल आखिरकार है क्‍या, और युवाओं को उस पर बराबरी से ध्‍यान देते हुए अपने दिल की सेहत को अच्‍छा क्‍यों रखना चाहिये?

युवाओं में एलडीएल कोलेस्‍ट्रॉल के प्रबंधन की आवश्‍यकता

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ. प्रीति गुप्ता ने कहा, “मैं हमेशा से इस बात पर जोर देती आई हूं कि युवाओं को शुरुआती उम्र में ही अपने कोलेस्ट्रॉल लेवल की जांच करा लेनी चाहिए, खासतौर से जब वे अपने 20वें साल के आसपास हों. मैंने कम से कम 50 रोगियों में एलडीएल-सी का स्तर बढ़ा हुआ देखा, जो हृदय रोगों की वृद्धि में प्रमुख योगदानकर्ता है. उनमें से 50% से अधिक में एलडीएल-सी का स्तर बढ़ा हुआ होता है जिस कारण आने वाले अधिकांश मरीज़ों का निदान नहीं हो पाता है. पारिवारिक पूर्वावस्था वाले लोग भी कभी-कभी बिना निदान के रह जाते हैं और 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में ASCVD विकसित होने का खतरा अधिक होता है. आनुवंशिक कारकों के साथ संयुक्त जीवनशैली विकल्प कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाने में मददगार साबित होते हैं, जिस पर ध्यान न देने से, कम उम्र में ASCVD जैसे हृदय रोगों के खतरे में वृद्धि होती है. 20 वर्ष की आयु तक, कोलेस्ट्रॉल स्क्रीनिंग से गुजरना और लिपिड प्रोफाइल की जांच कराना महत्वपूर्ण है ताकि जोखिम कारकों को ठीक करके ,जल्द से जल्द उपचार आरम्भ किया जा सकें. प्रत्येक रोगी को अपने अनूठे एलडीएल-सी टारगेट के आधार पर व्यक्तिपरक रोकथाम योजनाओं की आवश्यकता होती है. जीवनशैली में अच्छी आदतों को शामिल करने, जानकारी रखने और सक्रिय रहने से भविष्य में तंदुरुस्त हृदय की नींव बनती है.“

कोलेस्‍ट्रॉल और उसके प्रकार क्‍या हैं?

कोलेस्‍ट्रॉल एक जरूरी फैटी पदार्थ होता है, जो कोशिकाओं के काम करने और हार्मोन बनाने के लिये महत्‍वपूर्ण होता है. यह विभिन्‍न प्रकारों का होता है, जैसे कि हाई-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल) कोलेस्‍ट्रॉल, जिसे ‘’अच्‍छा कोलेस्‍ट्रॉल’’ कहा जाता है. जबकि लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल) कोलेस्‍ट्रॉल को ‘’बुरा कोलेस्‍ट्रॉल’’ कहा जाता है. यह ज्‍यादा मात्रा में होने पर आर्टरी में प्‍लाक जमने लगता है और दिल की बीमारी तथा स्‍ट्रोक का जोखिम बढ़ जाता है. ए‍क अध्‍ययन के अनुसार, 10 में से 6 भारतीयों में एलडीएल कोलेस्‍ट्रॉल की मात्रा ज्‍यादा है.

क्‍या एलडीएल कोलेस्‍ट्रॉल की ज्‍यादा मात्रा और दिल की बीमारियों के बीच कोई सम्‍बंध है?

कोलेस्‍ट्रॉल की मात्रा ज्‍यादा होने से दिल की बीमारियों और दूसरी कार्डियोवैस्‍कुलर समस्‍याओं का जोखिम काफी बढ़ जाता है.

एथेरोस्‍क्‍लेरोटिक कार्डियोवैस्‍कुलर‍ डिसीज (ASCVD) में हार्ट अटैक, स्‍ट्रोक जैसी स्थितियाँ शामिल हैं और यह भारत तथा (यदि उपयुक्‍त हो, तो शहर का नाम लिखें) में मौत का बड़ा कारण बनी हुई है. एलडीएल-सी के चिंताजनक रूप से उच्‍च स्‍तर इस महामारी में बड़ा योगदान देते हैं. एलडीएल-सी की ज्‍यादा मात्रा से प्‍लाक बन सकता है और आर्टरीज सिकुड़ सकती हैं या बंद हो सकती हैं. ऐसे में, दिल में रक्‍त का प्रवाह कम हो जाता है और ASCVD होने की संभावना रहती है. इसलिये एलडीएल-सी के स्‍तरों को जानना अपने दिल की सेहत को समझने के लिये बहुत महत्‍वपूर्ण है.

एलडीएल कोलेस्‍ट्रॉल लेवल्‍स को मैनेज करने के बारे में युवाओं को शिक्षित करने से स्‍वस्‍थ भविष्‍य का आधार बनता है. कोलेस्‍ट्रॉल और दिल पर उसके असर की समझ को प्रोत्‍साहन देने से नई पीढि़याँ अपनी जीवनशैली के सम्‍बंध में सूचित फैसलें कर सकती हैं.

एलडीएल कोलेस्‍ट्रॉल को आसानी से मैनेज करने के तरीके!

एलडीएल कोलेस्‍ट्रॉल लेवल्‍स के प्रभावी प्रबंधन में खून की नियमित जाँचें और स्‍वस्‍थ आदतें अपनाना शामिल है- नियमित रूप से शारीरिक गतिविधि करें, संतुलित आहार लें और अपने कार्डियोलॉजिस्‍ट के साथ नियमित रूप से बातचीत करें.

एलडीएल कोलेस्‍ट्रॉल को मैनेज करने का सफर शुरू करते हुए, ऐसे लक्ष्‍य तय करना जरूरी है, जो साकार किये जा सकें. यह याद रखना भी महत्‍वपूर्ण है कि हर व्‍यक्ति के लिये लक्षित एलडीएल-सी लेवल अलग होंगे और इसमें आयु, पारिवारिक इतिहास तथा समग्र स्‍वास्‍थ्‍य की भूमिका रहेगी.

इसके अलावा, दिल की बीमारियों के इतिहास वाले लोगों को अपने कार्डियोलॉजिस्‍ट से नियमित सलाह लेनी चाहिये, ताकि एलडीएल कोलेस्‍ट्रॉल के लक्षित स्‍तरों पर निजीकृत मार्गदर्शन मिल सके.

कार्डियोलॉजिस्‍ट के साथ अपने लक्षित एलडीएल कोलेस्‍ट्रॉल लेवल्‍स पर चर्चा करके और उन्‍हें समझकर आप अपने दिल की सेहत को बचाने के लिये पूर्वसक्रिय रूप से कदम उठा सकते हैं. इस तरह आप ज्‍यादा लंबे और स्‍वस्‍थ जीवन की दिशा में बढ़ सकेंगे.

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Edited by रविकांत पारीक