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जब ऑपरेशन ब्‍लू स्‍टार के विरोध में खुशवंत सिंह ने लौटा दिया था पद्म भूषण

खुशवंत सिंह के जन्‍मदिन पर विशेष.

जब ऑपरेशन ब्‍लू स्‍टार के विरोध में खुशवंत सिंह ने लौटा दिया था पद्म भूषण

Thursday February 02, 2023 , 4 min Read

तारीख 20 मार्च, साल 2014. एक महीने पहले ही उन्‍होंने अपना 99वां जन्‍मदिन मनाया था. सेंचुरी पूरी करने में बस 11 महीने बाकी थे. पूरी उम्र जिंदादिली, ईमानदारी और जवानी के जोश के संग जीने वाले उस शख्‍स से ज्‍यादा उनके चाहने वालों को उम्‍मीद थी कि जीवन के 100 वसंत तो वो देखेंगे ही.

लेकिन 99वां जन्‍मदिन मनाने के अगले ही महीने 20 मार्च को उनका निधन हो गया. जाने का इरादा तो नहीं था, लेकिन जाने से पहले ही एक इंटरव्‍यू में उन्‍होंने कहा था, “अब वक्‍त आ गया है कि अपने बूटों को टांगकर एक बार पीछे मुड़कर देखें और अंतिम सफर के लिए तैयार हो जाएं.” शायद उन्‍हें इलहाम हो गया था.

हम बात कर रहे हैं मशहूर पत्रकार, संपादक, लेखक, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित खुशवंत सिंह की. आज उनका जन्‍मदिन है.  

पढ़ाई में फिसड्डी और जीवन में अव्‍वल

2 फरवरी, 1915 को पंजाब के हदाली में एक सिख परिवार में खुशवंत सिंह का जन्‍म हुआ. वो जगह अब पाकिस्‍तान में है. पिता सर सोभा सिंह अपने समय के नामी कंस्‍ट्रक्‍टर और ठेकेदार थे. आजाद भारत में लुटियन्‍स दिल्‍ली के निर्माण का श्रेय उन्‍हें ही जाता है. कहा जाता है कि एक समय आधी दिल्‍ली पर सर सोभा सिंह का नाम था.

1920 में पिता ने उनका एडमिशन दिल्ली मॉडर्न स्कूल में करा दिया, जहां वे 1930 तक पढ़े. यहीं उनकी मुलाकात कंवल मलिक से हुई थी, जो कि उनके साथ स्‍कूल में पढ़ती थीं और एक क्‍लास जूनियर थीं. बड़े होकर उन्‍होंने अपनी बचपन की दोस्‍त कंवल से शादी की.

खुशवंत सिंह ने कॉलेज की पढ़ाई लाहौर के गवर्नमेण्ट कॉलेज से पूरी की और उसके बाद आगे पढ़ने के लिए लंदन चले गए. वहां लंदन के किंग्स कॉलेज से कानून की डिग्री ली. खुशवंत सिंह ने दुनिया के बड़े-बड़े कॉलेजों से डिग्रियां तो ले लीं, लेकिन सच तो ये है कि उनका पढ़ाई से ज्‍यादा मन बाकी दूसरे कामों में लगता था. ये बात उन्‍होंने खुद लिखी है कि वो इंतहा की हद तक आवारगी में ही रमे रहते और नतीजा ये होता कि उनकी हमेशा थर्ड डिवीजन ही आती.

लंदन से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे वतन लौटे और लाहौर में वकालत की प्रैक्टिस शुरू कर दी. उन्‍होंने 8 साल तक लाहौर कोर्ट में प्रैक्टिस की. 1947 में आजादी मिलने के साथ-साथ मुल्‍क का बंटवारा भी हो गया.

खुशवंत सिंह दिल्‍ली आ गए और यहां उन्‍होंने भारतीय विदेश सेवा में प्रवेश किया. विदेश सेवा में उनकी पहली नियुक्ति टोरंटो, कनाडा में भारत सरकार के सूचना अधिकारी के रूप में हुई थी. उसके बाद उन्‍होंने लंदन और ओटावा में भारतीय उच्चायोग में प्रेस अटैची और पब्लिक ऑफिसर रहे.

1951 में वे बतौर पत्रकार ऑल इंडिया रेडियो के साथ जुड़ गए. 1954 और 1956 के बीच उन्होंने पेरिस में यूनेस्को के जनसंचार विभाग में काम किया. इसके बाद वे योजना, द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया और द नेशनल हेराल्ड के संपादक बने. बाद में वे हिंदुस्तान टाइम्स के भी संपादक बने. खुशवंत सिंह के एडीटर रहने के दौरान ‘द इलस्ट्रेटेड वीकली’ का सर्कुलेशन 65 हजार से बढ़कर 4 लाख हो गया था.

खुशवंत सिंह का लेखकीय सफर

पत्रकार होने और लंबे समय तक अखबारों में लोकप्रिय कॉलम लिखने के साथ-साथ खुशवंत सिंह नामचीन लेखक भी थे, जिन्‍होंने कई उपन्‍यास, कहानियां, इतिहास और संस्‍मरण लिखे. उनके लिखे उपन्‍यासों में ‘ट्रेन टू पाकिस्‍तान’, औरतें, सनसेट क्लब और बोलेगी न बुलबुल अब प्रमुख है. इसके अलावा उनके दो संस्‍मरण ‘सच, प्यार और थोड़ी सी शरारत’ और ‘मेरे मित्र : कुछ महिलाएँ, कुछ पुरुष’ नाम से प्रकाशित है. इसके अलावा उन्‍होंने दो खंडों में सिखों का इतिहास लिखा है. उनके उपन्‍यास ‘ट्रेन टू पाकिस्‍तान’ पर फिल्‍म भी बन चुकी है.

वर्ष 1980 से 1986 तक खुशवंत सिंह सांसद भी रहे. 1974 में भारत सरकार ने उन्‍हें पद्म भूषण सम्‍मान से नवाजा था. लेकिन 1984 में अमृतसर के गोल्‍डन टेंपल में हुए ऑपरेशन ब्‍लू स्‍टार के बाद उन्‍होंने विरोध स्‍वरूप वह सम्‍मान वापस कर दिया था. वर्ष 2007 में उन्हें दोबारा पद्म विभूषण पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया.

20 मार्च, 2014 को 99 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया. उनकी मृत्‍यु पर रामचंद्र गुहा और अमिताव घोष से लेकर अभिनेता शाहरुख खान तक ने उन्‍हें श्रद्धांजलि दी थी. उनके निधन पर रामचंद्र गुहा ने लिखा, “ख़ुशवंत सिंह को व्हिस्की से अपने प्यार के लिए जाना जाता था, लेकिन वे प्रकृति से उससे भी ज़्यादा प्यार करते थे.” उनकी मृत्‍यु पर शाहरुख खान ने लिखा था, "अफसोस कि खुशवंत सिंह नहीं रहे. अपने साहित्यिक योगदान से उन्‍होंने हमारा जीवन समृद्ध किया."


Edited by Manisha Pandey