वीकली रिकैप: पढ़ें इस हफ्ते की टॉप स्टोरीज़!
यहाँ आप इस हफ्ते प्रकाशित हुई कुछ बेहतरीन स्टोरीज़ को संक्षेप में पढ़ सकते हैं।
इस हफ्ते हमने कई प्रेरक और रोचक कहानियाँ प्रकाशित की हैं, उनमें से कुछ को हम यहाँ आपके सामने संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनके साथ दिये गए लिंक पर क्लिक कर आप उन्हें विस्तार से भी पढ़ सकते हैं।
50 की उम्र में स्मॉल बिजनेस शुरू करने वाली ‘चाची’
देहरादून की रहने वाली 56 वर्षीय हेमलता पाल Chachi Cross Stitch की फाउंडर हैं, जोकि हैंडीक्राफ्ट्स का स्मॉल बिजनेस हैं। हेमलता ने अपने स्कूल के दिनों में क्रॉस स्टीचिंग सीखी थी लेकिन बाद में 50 की उम्र में इसे नए आयाम देते हुए बिजनेस का रूप दिया।
'उम्र महज एक नंबर है' ये बात हमने अक्सर सुनी है, लेकिन उत्तराखंड की राजधानी देहरादून की रहने वाली हेमलता पाल उर्फ 'चाची' ने इसे सही साबित कर दिया है। उन्होंने 50 की उम्र पार करने के बाद हैंडीक्राफ्ट्स का स्मॉल बिजनेस शुरू किया। वे Chachi Cross Stitch की फाउंडर और क्रिएटर हैं।
क्रॉस स्टीचिंग धागे की कढ़ाई (embroidery) का एक रूप है जो सदियों से चली आ रही है, और इसे बहुत ही मेहनत और बारीकी के साथ किया जाता है। क्रॉस स्टिच में एक्स-आकार के टांके शामिल होते हैं जो कपड़े पर समान और खुली बुनाई जैसे ऐडा या लिनन के साथ किए जाते हैं। डिजाइन पारंपरिक या आधुनिक हो सकते हैं।
हेमलता पाल ने अपने बिजनेस वेंचर Chachi Cross Stitch की शुरूआत के बारे में YourStory के साथ बातचीत में बताया, "मैंने अपने स्कूल के दिनों में क्रॉस स्टीचिंग सीखी थी और मुझे इस आर्ट से बेहद लगाव था। मुझे क्रॉस स्टीचिंग को लेकर जुनून था। लेकिन फिर बड़े होने पर शादी के बाद घर की जिम्मेदारियां निभाने और बेटी के लालन-पोषण में स्टीचिंग पीछे छूट गई।"
उन्होंने आगे कहा, "इन सब के बावजूद मेरा क्रॉस स्टीचिंग के प्रति जुनून कभी कम नहीं हुआ। दो साल पहले लॉकडाउन के दिनों में जब मैं घर की सफाई कर रही थी तब मेरी भतीजी कीमी ने मेरे द्वारा क्रॉस स्टीचिंग से बनाया हुए लॉयन (शेर) देखा। फिर उन्होंने कहा कि 'चाची' आपने बहुत ही सुंदर और प्यारा लॉयन बनाया है। आप इसे (क्रॉस स्टीचिंग को) फिर से शुरू क्यों नहीं करती?"
फिर हेमलता को उनकी बेटी (वर्तमान में अमेरिका में रह रही है) और उनके पति, जोकि एक रिटायर्ड बैंकर हैं, ने उन्हें फिर से क्रॉस स्टीचिंग शुरू करने के लिए प्रेरित किया और उन्हें समर्थन दिया। उनकी भतीजी ने Instagram पर उनका अकाउंट बनाकर आर्टवर्क की तस्वीरें अपलोड की।
बहुत जल्द ही उन्हें लोगों से ऑर्डर मिलने शुरू हो गए और तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी भतीजी अपनी चाची के साथ मिलकर प्रोडक्ट्स की पैकेजिंग में भी हाथ बटाती है।
हेमलता पाल 'चाची' अपने प्रोडक्ट्स को InstaMojo के जरिए ऑनलाइन बेच रही है। उनके प्रोडक्ट्स की रेंज 150 रुपये से शुरू होकर 800 रुपये तक होती है, जोकि काफी किफायती है।
केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने भी 'चाची' द्वारा बनाए गए क्रॉस स्टीच हैंडीक्राफ्ट्स की सराहना की है।
एंटी-बुलिंग ऐप बनाकर शार्क टैंक से फंडिंग जुटाने वाली अनुष्का
कक्षा 8वीं की छात्रा अनुष्का जॉली अब शार्क टैंक इंडिया में अपने आइडिया को पेश करने वाली सबसे कम उम्र की प्रतियोगी भी बन गई हैं।
हाल ही में टीवी के चर्चित शो शार्क टैंक इंडिया में अपनी खास ऐप ले जाकर 13 साल की एक लड़की ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। कक्षा 8वीं की छात्रा अनुष्का जॉली अब शार्क टैंक इंडिया में अपने आइडिया को पेश करने वाली सबसे कम उम्र की प्रतियोगी भी बन गई हैं।
अनुष्का अपनी उम्र के बच्चों के लिए स्कूलों और कॉलेजों में बुली होने से बचने के लिए एक खास ऐप का निर्माण किया है। गुरुग्राम पाथवेज स्कूल पढ़ने वाली अनुष्का ने ‘कवच’ नाम की एक ऐप डेवलप की है।
अनुष्का को शार्क टैंक इंडिया में अपने आइडिया के लिए दो निवेशकों अनुपम मित्तल और अमन गुप्ता से निवेश हासिल हुआ है। 'कवच' ऐप की बात करें तो यह छात्रों और अभिभावकों अपनी पहचान गुप्त रखते हुए बुली किए जाने की घटनाओं की रिपोर्ट करने में मदद करती है। इसके जरिये स्कूल और काउंसलर को मामले में हस्तक्षेप करने और कार्रवाई करने में भी मदद हासिल होती है।
ऐप पर बात करते हुए अनुष्का ने बताया है कि शैक्षणिक संस्थानों, सामाजिक संगठनों और विशेषज्ञों की मदद से 'एंटी बुलिंग स्क्वॉड (एबीएस)' ने 100 से अधिक स्कूलों और विश्वविद्यालयों के 2,000 से अधिक छात्रों को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। एंटी-बुलिंग स्क्वाड एक सामाजिक पहल है, जिसका उद्देश्य जागरूकता बढ़ाकर बुलिंग की घटनाओं को कम करना है।
मीडिया से बात करते हुए अनुष्का ने बताया है कि इस प्रोसेस के दौरान उन्हें यह एहसास हुआ कि इनमें से अधिकतर घटनाएं रिपोर्ट नहीं की जाती है और इसी वजह से वे हल नहीं हो पाती हैं। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए हुए उन्हें बुलिंग रिपोर्टिंग मोबाइल ऐप 'कवच' बनाने का आइडिया आया था, ताकि बिना नाम बताए इस तरह की घटनाओं को रिपोर्ट किया जा सके।
पर्सनल केयर ब्रांड खड़ा करने वाले फार्मासिस्ट की कहानी
योरस्टोरी के साथ बातचीत में जिगर ने ब्रांड की यात्रा पर बात की है और इस अत्यधिक प्रतिस्पर्धी बाजार में आगे बढ़ने की योजना का भी जिक्र किया है।
अहमदाबाद के जिगर पटेल साल 2008 से अपने पिता के फार्मास्युटिकल व्यवसाय का नेतृत्व कर रहे थे। उनके फॉर्मूलेशन ने अन्य अवसरों की तलाश शुरू करने से पहले ही उन्हें 21 पेटेंट प्राप्त कर लिए थे। इस दौरान वे कुछ अलग करना चाहते थे।
खुद एक फार्मासिस्ट रहे जिगर व्यक्तिगत देखभाल उद्योग के बारे में तीन चीजों से प्रभावित थे, पहला जिस तेजी के साथ इनोवेशन, दूसरा उसके विकास का दायरा और तीसरा उसके फॉर्मूलेशन के लिए उनका प्यार।
इन कारकों ने जिगर को अहमदाबाद में साल 2010 में एक पर्सनल केयर ब्रांड ब्रिलारे साइंस प्राइवेट लिमिटेड शुरू करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने इसकी आर एंड डी इकाई के लिए पांच लोगों को नियुक्त किया और पूरे भारत में सैलून में मॉइस्चराइज़र, शैंपू, क्रीम और अधिक सहित 18 उत्पादों का निर्माण और बिक्री शुरू की।
आज, यह ब्रांड काफी बढ़ गया है। 10,000 ब्यूटी सैलून के साथ गठजोड़ करने के अलावा, यह अमेज़न, फ्लिपकार्ट, नायका और अपनी वेबसाइट के माध्यम से भी बिक्री कर रहा है। मार्च 2021 में, FMCG ब्रांड इमामी ने कंपनी को अपनी ऑफ़लाइन उपस्थिति बढ़ाने में मदद करने के लिए 50 लाख रुपये का निवेश किया।
वे कहते हैं, “हम एक ऐसे उद्योग में हैं जो सपने बेचता है। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी विशेष उत्पाद का उपयोग करते हैं, तो आपका रंग गोरा हो जाएगा। इसी तरह, हम एक सपने के बजाय परिणाम बेचना चाहते थे जो बहुत सतही हो।”
जिगर का कहना है कि उनकी रणनीति, शुरुआत में सैलून के साथ गठजोड़ करने और केवल बी 2 बी प्रारूप के माध्यम से बेचने की थी।
दिव्यांग बच्चों के लिए खास तरह की गुड़िया बना रहा है सोशल स्टार्टअप Ginny’s Planet
Ginny’s Planet की शुरुआत दिल्ली की रहने वाली सोशल आंत्रप्रेन्योर श्वेता वर्मा ने अपने पति जमाल सिद्दीकी के साथ मिलकर जून, 2019 में की थी। यह स्टार्टअप दिव्यांग बच्चों की मदद करने और उनमें स्किल्स डेवलप करने के लिए एक खास तरह की गुड़िया बनाता है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की रहने वाली सोशल आंत्रप्रेन्योर श्वेता वर्मा, जो खुद एक दिव्यांग बेटे की मां है, ने दिव्यांग बच्चों में बाल कल्याण के अभाव की गहराई को महसूस करते हुए इस दिशा में कुछ बेहतर करने की ठानी। उन्होंने अपने पति जमाल सिद्दीकी के साथ मिलकर जून, 2019 में सोशल एंटरप्राइज
की शुरुआत की।Ginny’s Planet दिव्यांग बच्चों की मदद करने और उनमें स्किल्स डेवलप करने के लिए एक खास तरह की गुड़िया बनाकर बेचता है। दिलचस्प बात यह है कि गिन्नी (Ginny) नाम की इस गुड़िया के नाम पर ही फाउंडर्स ने स्टार्टअप का नाम रखा।
गिन्नी, श्वेता और जमाल द्वारा बनाई गई एक खास तरह की गुड़िया है। इस गुड़िया का उद्देश्य बच्चों को उनकी कहानियों के जरिए महत्वपूर्ण बातचीत को आगे बढ़ाना है।
गिन्नी की खासियत के बारे में YourStory से बात करते हुए श्वेता बताती हैं, "गिन्नी चार साल की एक अनोखी गुड़िया है, जिसका एक हाथ रेडियल क्लब का है। इसकी नौ अंगुलियां है और वह अपनी कलाई पर एक ब्रेस पहनती है। गिन्नी अपनी विजन प्रॉब्लम्स को मैनेज करने के लिए चश्मा पहनती है।"
Ginny’s Planet अपने प्रोडक्ट्स को InstaMojo के जरिए ऑनलाइन बेच रहा है। प्रोडक्ट्स की रेंज 80 रुपये से शुरु होकर 1200 रुपये तक होती है। गिन्नी गुड़िया के अलावा बच्चों के लिए कहानियों की किताबें और इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स भी स्टार्टअप द्वारा बेचे जाते हैं।
अपने खास सॉस के जरिये रेडी-टू-कुक मार्केट में धूम मचा रही है मुंबई की यह कंपनी
देब मुखर्जी ने सेरेस हॉस्पिटैलिटी की शुरुआत की, जो क्विक सर्विस रेस्तरां (OSR) श्रृंखला थी। अगले पांच वर्षों में देब ने इसे पूरे महाराष्ट्र में 45 आउटलेट तक बढ़ा दिया।
देब मुखर्जी ने YourStory को बताया, “जब आप एक रेस्तरां चेन को बड़ा करना शुरू करते हैं, तो गुणवत्ता गिर जाती है क्योंकि हर स्थान एक अलग शेफ द्वारा चलाया जा रहा होता है। और इसलिए स्वाद जगह के हिसाब से बदल जाता है, फिर चाहे आप कितनी भी कोशिश कर लें।”
देब और उनकी टीम ने एक ऐसे समाधान पर काम करना शुरू किया जो यह सुनिश्चित करे कि "बिना किसी विशिष्ट कौशल के भोजन तैयार किया जा सके। उन्हें इसमें असली सफलता तब मिली जब निजी इक्विटी फंड ब्लूस्टोन कैपिटल ने सेरेस को श्रीलंका में क्लाउड किचन व्यवसाय स्थापित करने में मदद करने के लिए आमंत्रित किया। इस प्रोजेक्ट के लिए, सेरेस ने खाने के लिए तैयार उत्पादों की एक सिरीज़ शुरू की, जैसे कि बिरयानी, दक्षिण भारतीय चेट्टीनाड, बर्मी खाओ सुए और इसी के साथ और भी बहुत कुछ।
जब इन उत्पादों ने विदेश में अच्छी वृद्धि देखी, तो देब ने भारत में उसी कॉन्सेप्ट को लागू करने का फैसला किया। मैनुफेक्चरिंग 100 प्रतिशत महाराष्ट्र और गुजरात में स्थित चार यूनिट्स के माध्यम से किया जाता है। पिछले महीने सेरेस ने 25 लाख रुपये की कमाई की थी।
सेरेस फूड्स ने शुरुआती निवेश के रूप में 5.5 करोड़ रुपये के साथ अपनी यात्रा शुरू की थी। हालांकि, ग्राहकों को खोजने के मामले में ब्रांड को एक कठिन समय सामना करना पड़ा। देब कहते हैं, “हमने बटर चिकन और पालक पनीर की ग्रेवी के लिए उत्पाद पेश किए। लेकिन हमें जल्द ही एहसास हुआ कि हम एमडीएच या आईडीसी किचन जैसे मसाला ब्रांडों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।” यह प्रतिस्पर्धा सरेस के लिए काफी भारी पड़ी।
इसके बाद देब ने अपना ध्यान नॉन-वेज बाजार पर केंद्रित कर दिया। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार 75 प्रतिशत भारतीय मांसाहारी हैं। इसने सह-संस्थापकों को एक कदम पीछे हटने और नॉन-वेज श्रेणी में एक विशिष्ट उत्पाद लाइन का पता लगाने के लिए मजबूर किया। इसके बाद कंपनी ने लाल मास, मस्टर्ड फिश, नल्ली निहारी और अन्य जैसे व्यंजनों के लिए लिक्विड मसाला पेश किया।
ओरिएंटल श्रेणी में सेरेस ने 'मोई सोई' सॉस जैसे ब्लैक बीन सॉस, मंचूरियन स्टिर फ्राई सॉस और बहुत कुछ अन्य सॉस लॉन्च किए हैं। सेरेस सॉस के अलावा रेडी टू ईट मोमोज और चिकन कटलेट भी ऑफर करता है।