दिव्यांगों के रोजगार का ठिकाना बना 'टपरी' कैफे
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के तेलीबांधा इलाके में डीफ एंड डंब (मूक-बधिर) युवाओं के रोजी-रोजगार के लिए इरफान ने खोला है एक लोकप्रिय 'टपरी' कैफे, जिसमें लोग सिर्फ नाश्ता-भोजन ही नहीं करते, गाते-बजाते, मनोरंजन भी करते हैं।
रायपुर (छत्तीसगढ़) के इरफान ने ग्रेजुएट करने के बाद उनका भविष्य संवारने को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया है, जो अपंगता के कारण रोजी-रोटी कमाने में असमर्थ होते हैं। उन्होंने सरकार की स्टार्ट अप इंडिया योजना के तहत उन डीफ एंड डंब युवाओं को स्वावलंबी बनाने का बीड़ा उठाया है, जिनके पास खुद का कोई रोजगार नहीं था। कुछ साल पहले इरफान ने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के तेलीबांधा क्षेत्र में 'टपरी' नाम से एक कैफे स्थापित कर अपने इस अनोखे मिशन की शुरुआत की। इसमें उन्होंने अपनी सारी अपनी जमा-पूंजी झोक दी।
उनके कैफे में इस समय एक दर्जन से अधिक डीफ एंड डंब (मूक-बधिर) युवा काम कर रहे हैं। उनके कैफे की कई रोचक खासियतें हैं। उसमें समय-समय पर दिव्यांग बच्चों की मदद के लिए प्रोग्राम भी आयोजित होते रहते हैं। इसी क्रम में एक बार 'डोनेट फॉर ड्रीम' प्रोग्राम रखा गया, जिसमें कोपलवाणी के डीफ एंड डंब बच्चों ने डांस और फन गेम जमकर एंजॉय किया। श्रवण बाधित बच्चों ने साइन लैंग्वेज में गाने के बोल समझकर डांस किए, साथ ही 'मुंबई से आया मेरा दोस्त' मूवी के एक सीन की परफॉर्मेंस दी। इस दौरान बच्चों ने लूडो, सांप-सीढ़ी, पासिंद द पास जैसे कई गेम खेले। विनर बच्चों को डेली नीड्स के सामान गिफ्ट किए गए। इस मौके पर बच्चों ने नेचुरल, ट्राइबल आर्ट जैसी थीम पर खूबसूरत पेंटिंग भी बनाई।
'टपरी' कैफे के ग्राहक कहते हैं कि डीफ एंड डंब युवा जब उनसे साइन लैंग्वेंज (सांकेतिक भाषा) में बातें करते हैं तो वे आसानी से समझ जाते हैं। अगर कुछ समझने में परेशानी होती है तो उसे पेपर में लिखकर वे अपना पसंदीता ऑर्डर करते हैं। वे कर्मचारी युवा डीफ एंड डंब होने के बावजूद बहुत अच्छे तरीके से सर्विंस देते हैं, जिससे उन्हें सामाजिक आत्मबल का एहसास होता है। इरफान बताते हैं कि उन्होंने डीफ एंड डंब युवाओं को स्किल्ड करने के लिए पहले खुद यूट्यूब से साइन लैंग्वेज सीखी और दिव्यांग युवाओं को प्रशिक्षण दिया।
डीफ एंड डंब लोगों में टैलेंट की कमी नहीं होती है लेकिन उनसे लोग दूरियां बनाकर रखते हैं। दिव्यांग हमारी तरह ही काम कर सकते हैं। राजधानी में नए विचार के साथ शुरू किए गए उनके कैफे में सिर्फ डीफ एंड डंब युवा काम करते हैं।
इरफान बताते हैं कि जब उनको भारत सरकार के 'स्टार्टअप इंडिया' मिशन का पता चला, उसके बारे में उन्होंने विस्तार से जानकारी जुटाई। तभी उन्हे पता चला कि स्टार्टअप से जुड़कर वह खुद नौकरी करने की बजाए कोई अपना रोजगार शुरू कर सकते हैं। इसके बाद उन्हे सामाजिक सराकारों से दिव्यांगों को हमराह बनाने का खयाल आया। फिर क्या था, 'टपरी' की नींव पड़ गई।
आज उनके इस अनूठे स्टार्टअप की चारों ओर चर्चा रहती है। इस ठिकाने को लोग सहानुभूति से लेते हैं। ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है। इरफान कहते हैं कि ऐसे लोगों के साथ काम करके उन्हें जीवन के नए-नए अनुभव सीखने को मिलते हैं। टपरी में सभी लोग जूते-चप्पल उतारकर खाना खाते हैं। खाना कुर्सी पर बैठकर नहीं, आराम से बैठकर खाते हैं। दुनिया की नजर में स्पेशल लोग भले ही डिसएबल हों, लेकिन ये बहुत सक्षम होते हैं। समाज का दस्तूर है कि ऐसे लोगों की शादी भी उन्हीं की तरह स्पेशल एबिलिटी वाले लोगों से ही होती है। इनका अपना परिवार होता है, लेकिन इनके लिए रोजगार के संसाधन कम होने के कारण इन्हें परिवार चलाने में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसीलिए उन्होंने ऐसे लोगों को रोजगार देने की राह चुनी। 'टपरी' में लोग सपरिवार आते हैं, खाने के साथ पूरा मनोरंजन भी करते हैं। शतरंज, कैरम, लूडो खेलते हैं, गाते-बजाते हैं।
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