Budget 2023: कल्याणकारी योजनाओं के बजट में कटौती क्या सही कदम है?
केंद्र सरकार ने अधिकतर जनकल्याणकारी योजनाओं के बजट और सब्सिडी के लिए दी जाने वाली राशि में भारी कटौती कर दी है. मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून) का बजट एक बार फिर से कोविड-19 महामारी के पूर्व स्तर पर पहुंच गया है. इसमें लगातार दूसरे साल कटौती की गई है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट पेश किया. वित्त मंत्री ने किसानों, महिलाओं, गरीबों के लिए कुछ नई घोषणाएं कीं और सैलरी क्लास के लिए टैक्स स्लैब (Tax Slab) में छूट का ऐलान किया.
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि कुल मिलाकर सरकार ने 2023-24 में पूंजीगत व्यय परिव्यय (कैपिटल खर्च) को 33 फीसदी बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव किया, जो कि सकल घरेलू उत्पाद का 3.3 फीसदी होगा. वहीं, यह राशि साल 2020-21 की तुलना में दोगुनी है.
इसके बावजूद, केंद्र सरकार ने अधिकतर जनकल्याणकारी योजनाओं के बजट और सब्सिडी के लिए दी जाने वाली राशि में भारी कटौती कर दी है. मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून) का बजट एक बार फिर से कोविड-19 महामारी के पूर्व स्तर पर पहुंच गया है. इसमें लगातार दूसरे साल कटौती की गई है.
मनरेगा:
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) के लिए आवंटन में लगभग एक-तिहाई यानि 29,400 करोड़ रुपये की कटौती की गई है. मनरेगा को 2023-24 के लिए 60,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो पिछले वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान से लगभग 32 प्रतिशत कम है.
वित्त वर्ष 2022-23 में सरकार ने बजट में मनरेगा के लिए 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, जबकि संशोधित अनुमान के मुताबिक खर्च 89,400 करोड़ रुपये था.
खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम सब्सिडी में कटौती
अगले वित्त वर्ष के लिए खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम पर कुल सब्सिडी 2022-23 में 5,21,584.71 करोड़ रुपये से 28 प्रतिशत घटकर 3,74,707.01 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है.
वित्त वर्ष 2020-21 से 2022-23 तक लगातार तीन साल बढ़ोतरी करने के बाद राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को खाद्य सब्सिडी और एनएफएसए के तहत खाद्यान्नों की विकेन्द्रीकृत खरीद के लिए सब्सिडी में अगले वित्तीय वर्ष के लिए फंड आवंटन में 30 फीसदी से अधिक की कटौती की गई है.
खाद्य सब्सिडी, वित्त वर्ष 2022-23 के 2,87,194.05 करोड़ रुपये से घटकर अगले वित्तवर्ष में 1,97,350 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, क्योंकि सरकार ने महामारी के दौरान शुरू की गई मुफ्त खाद्यान्न योजना को बंद कर दिया है.
इसमें से उर्वरक सब्सिडी चालू वित्त वर्ष के 2,25,220.16 करोड़ रुपये से घटकर 2023-24 में 1,75,099.92 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है. पेट्रोलियम सब्सिडी चालू वित्त वर्ष के 9,170.50 करोड़ रुपये से घटकर 2,257.09 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है.
राष्ट्रीय आजीविका मिशन (NLM) का बजट भी पिछले वित्त वर्ष के आवंटन 14,236 करोड़ रुपये की तुलना में घटाकर 14,219 करोड़ रुपये कर दिया गया. इस तरह पिछले साल के आवंटन की तुलना में बजट में 0.75 फीसदी की गिरावट आई है.
हर साल छोटे और सीमांत किसानों को 6,000 रुपये नकद प्रदान करने वाले पीएम किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) की राशि लगभग 12 फीसदी कम होकर 60,000 करोड़ रुपये रह गई है. पिछले साल यह आवंटन 68,000 करोड़ रुपये थे.
सिंचाई के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण योजना, जिसे पीएम कृषि सिंचाई योजना कहा जाता है, को 10,787 करोड़ रुपये मिले हैं. जबकि पिछले साल इसे 12,954 करोड़ रुपये मिले थे. यह लगभग 17 फीसदी की कटौती है.
सामाजिक क्षेत्र में खर्च जारी रखने की थी उम्मीद
हालांकि, ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि बजट में सामाजिक क्षेत्र में खर्च जारी रहने की उम्मीद की जा रही थी. इसका कारण है कि आर्थिक पुनरुद्धार अभी तक व्यापक और सतत नहीं हुआ है क्योंकि केवल सम्पन्न वर्ग को ही इसका लाभ मिला है.
भारी महंगाई और बीते कुछ सालों में वेतन में वास्तविक बढ़ोतरी नहीं होने से निम्न और मध्यम आयवर्ग के लोगों की खर्च करने की क्षमता काफी कम हो गई है.
विश्व बैंक की ‘पॉवर्टी एंड शेयर्ड प्रॉस्पैरिटी 2022’ रिपोर्ट के अनुसार, साल 2020 में भारत में गरीबों की संख्या 2.3 करोड़ से 5.6 करोड़ के बीच बढ़ी है. भारत में यह वृद्धि 2011 के बाद पहली बार हुई है. इस तरह, दुनियाभर में गरीबों की संख्या 7.1 करोड़ बढ़ी है, जिनमें 33 से 80 फीसदी भारत में थे.
वहीं, अधिकार समूह ऑक्सफैम इंटरनेशनल अपनी हालिया वार्षिक असमानता रिपोर्ट में बताया था देश के सबसे अमीर 21 अरबपतियों की कुल संपत्ति 70 करोड़ भारतीयों की कुल संपत्ति से भी अधिक है.
इसका मतलब है कि भारत में 1 प्रतिशत सबसे अमीर लोगों के पास अब देश की कुल संपत्ति का 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है. दूसरी ओर नीचे से 50 प्रतिशत आबादी के पास कुल संपत्ति का सिर्फ तीन प्रतिशत हिस्सा ही है. ऑक्सफैम ने गरीबों और मिडल क्लास के बजाय अमीरों पर अतिरिक्त कर लगाने की मांग की थी.
इस तरह अगर देखें तो कोविड-19 के बाद पैदा हुई स्थिति के कारण केंद्र सरकार को अभी भी इन कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च को कम करने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी. वहीं, मनरेगा, जिस तरह से ग्रामीण रोजगार की रीढ़ साबित हुआ है, उसे सशक्त कर उसका दायरा बढ़ाना चाहिए था.