पंजाब में किसानों के लिए सराहनीय काम कर रही है उनति को-ऑपरेटिव सोसाइटी, बिना किसी सरकारी मदद के 30 करोड़ पहुंचा राजस्व
उनति को-ऑपरेटिव मार्केटिंग सह प्रोसेसिंग सोसाइटी लिमिटेड आज तलवाड़ा में बड़ी तादाद में किसानों के हित को लेकर आगे बढ़ रही है। यह सोसाइटी सरकार से किसी भी तरह की मदद नहीं लेती है, बावजूद इसके सोसाइटी के मुनाफे का बड़ा हिस्सा समाजसेवा के लिए जाता है।
पंजाब के होशियारपुर जिले के तलवाड़ा स्थित उनति को-ऑपरेटिव मार्केटिंग सह प्रोसेसिंग सोसाइटी लिमिटेड नाम की यह अर्ध सरकारी कंपनी आज न सिर्फ प्रकृतिक संसाधनों का उपयोग कर बड़ी तादाद में उत्पादों का निर्माण कर रही है, बल्कि इसी के साथ क्षेत्र में बड़ी तादाद पर पिछड़े वर्ग और समूहों को स्व-रोजगार उपलब्ध कराने में भी मदद कर रही है।
उन्नति में बने सभी उत्पाद विज्ञान, संस्कृति और प्रकृति के मेल से निर्मित किए गए हैं। उन्नति आज कई तरह के उत्पादों का निर्माण कर रही है, जिसकी बाज़ार में जबरदस्त मांग है।
ऐसे हुई शुरुआत
उनति की स्थापना करने वाले मूल सदस्यों में से एक ज्योति सरूप ने योरस्टोरी से बात करते हुए इस यात्रा के बारे में बताया। ज्योति सरूप और उनके साथी साल 1999 के दौरान पालमपुर स्थित हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में रिसर्च कर रहे थे, इस दौरान ही उन्हे अपनी विषज्ञता के क्षेत्र में ही रहकर कुछ अलग करने का विचार आया।
योरस्टोरी से बात करते हुए ज्योति कहते हैं,
“विश्वविद्यालय में कई साथी थे, जिनमे कुछ पढ़ रहे थे, वहीं कुछ रिसर्च प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे। उस समय हमारे पास इस क्षेत्र में नौकरी के मौके कम थे। हमारे पास तब दो ही रास्ते होते थे, एक तो रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम करो या फिर विदेश में नौकरी करो। तभी हमने कुछ ऐसा करने का सोचा जिससे हमारे अपने लोगों का भला हो सके बजाय इसके कि हम विदेशियों के लिए काम करें।”
ज्योति के अनुसार हम सभी कृषि संबंधी अपने-अपने विषयों में विशेषज्ञ थे, ऐसे में आगे बढ़ने के लिए उनके पास बेहतरीन टीम थी।
अपने राज्य आकर शुरू किया काम
ज्योति सरूप तब हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में रिसर्च एसोसिएट के पद पर कार्यरत थे। साल 2002 में ज्योति ने विश्वविद्यालय में अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने राज्य पंजाब वापस आ गए।
शुरुआती दौर की बात करते हुए ज्योति कहते हैं,
“हमारे सामने समस्या थी कि हम शुरुआत कैसे करें? कुछ लोगों ने राय दी कि एनजीओ शुरू कर दो, लेकिन हम अपने करियर को लेकर संजीदा थे। लोगों ने हमें कंपनी खोलने की भी सलाह दी, लेकिन निम्न माध्यम वर्गीय परिवारों से होने के चलते हमारे पास इतना पैसा नहीं था कि हम एक कंपनी खोल सकें।”
ज्योति आगे कहते हैं,
“हमारे एक साथी के पिता को-ऑपरेटिव इंस्पेक्टर थे, उन्होने हमें सलाह दी कि ऐसे स्थिति में हमें को-ऑपरेटिव सोसाइटी का गठन करना चाहिए। ऐसे में हम एक कंपनी और गैर-सरकारी संगठन दोनों कि ही तरह काम कर सकते थे।”
16 मई 2003 में ज्योति और उनके साथियों ने मिलकर उनति को-ऑपरेटिव मार्केटिंग सह प्रोसेसिंग सोसाइटी लिमिटेड नाम की एक सोसाइटी का गठन किया। ज्योति कहते हैं,
“हम अपने क्षेत्र पर काफी शोध किया। हमारे पास सभी संसाधन मौजूद थे, लेकिन वे सभी यूं ही बेकार हो रहे थे।”
उनति के गठन के बाद पहला साथ उन्हे पंजाब सरकार से मिला, जिसके बाद सरकार के साथ मिलकर सोसाइटी कई तरह के काम कर रही थी। शुरुआती दौर में उनति ने लोगों को क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों के प्रति जागरूक करना शुरू किया। संसाधनों की बात करते हुए ज्योति बताते हैं कि शुरुआती दौर में क्षेत्र में 2 हज़ार टन आँवला पैदा हो रहा था, लेकिन वो बेकार जा रहा था।
साल 2005 के दौरान सोसाईटी ने अपने प्रोसिंग यूनिट की स्थापना कर ली। लेकिन उस दौर में अलग तरह की ही मुश्किलें उनके सामने थीं, सोसाइटी के लिए सबसे अधिक जरूरी था, लोगों का भरोसा जीतना। इस बारे में ज्योति कहते हैं,
“हम कुछ अलग कर रहे थे, तो लोग हमें सिरफिरे समझ रहे थे। लोगों को समझाने में काफी समय लगा कि हम किस तरह आगे बढ़ रहे हैं, हालांकि धीरे-धीरे लोग हमसे जुड़ना शुरू हो गए।”
साल 2007 में पंजाब सरकार सोसाइटी से अलग हो गई और सोसाइटी चलाने की ज़िम्मेदारी तब पूरी तरह मूल सदस्यों पर आ गयी।
2010 में मिला बड़ा ब्रेक
ज्योति के अनुसार 2007 से 2010 के दौरान उनके लिए काफी मुश्किल दौर रहा, हमारे पास उतना राजस्व नहीं था। इस दौरान हमने अपने खर्चों पर सोसाइटी को आगे चलाये रखा। साल 2010 में अपोलो फार्मेसी से सोसाइटी को बड़ा ब्रेक मिला। अपोलो फार्मेसी ने आंवला जूस लेने के लिए उनति के साथ बात की।
उसके बाद से व्यापार आगे बढ़ा, जिससे सोसाइटी के काम में स्थाईत्व भी बढ़ा। ज्योति कहते हैं,
“पैसे कम होने चलते लगातार खोजें जारी रहीं कि हम कम पैसों में कुछ नया कैसे कर सकते हैं? हमने आगे बढ़ने के लिए कभी सरकार से पैसा नहीं लिया, न ही हमने किसी बैंक से लोन लिया।”
साल 2003 में हमारा राजस्व डेढ़ लाख रुपये वार्षिक था, जबकि बीते वर्ष 2018-19 में उनति 30 करोड़ का राजस्व अर्जित किया है। सोसाइटी उन सभी चीजों से राजस्व इकट्ठा कर रही है, जो पहले जंगलों पेड़ों से गिरकर यूं ही बेकार चली जाती थीं।
आज उनति की प्रोसेसिंग यूनिट में 300 लोग प्रत्यक्ष तौर पर काम कर रहे हैं, जिसमें 80 प्रतिशत संख्या महिलाओं की है।
आज इस को-ऑपरेटिव के साथ करीब 7 सौ लोग जुड़े हुए हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। आगे बढ़ते हुए ज्योति कहते हैं,
“भारत में अधिकतर को-ऑपरेटिव राजनीति का शिकार हो जाते हैं, ऐसे में हमने इससे बचने के लिए कुछ मानक तय किए। हमने पहले से ही तय किया था कि हम सरकार से पैसा नहीं लेंगे। इसी के साथ हमने तय किया कि उनति अपनी संपत्ति नहीं अर्जित करेगी।”
उन्नति क्षेत्र में बड़े पैमाने पर समाजसेवा कर रही है। सोसाइटी ने क्षेत्र के सभी शौचालयों को गोद ले रखा है, जिनके रखरखाव की ज़िम्मेदारी उनति ने ली हुई है, वहीं सोसाइटी शिक्षा के लिए भी क्षेत्र में काम कर रही है।
उनति बारिश के मौसम में जंगलों में सीडबॉल रोपित करती है, जिससे बारिश के मौसम में बड़ी तादाद में कई तरह के नए पौधों का जन्म होता है।
लाभ का शेयर
साल 2016 तक उनति के जुड़े सदस्यों ने मुनाफे का हिस्सा नहीं लिया, हालांकि अब सदस्यों को मुनाफे से जुड़ा मामूली हिस्सा मिल रहा है। उनति के मुनाफे का बड़ा हिस्सा इसे विकसित करने में ही जाता है, मुनाफे का हिस्सा किसानों में बोनस के रूप में बाँट दिया जाता है।
ज्योति बताते हैं,
“हमने कम्युनिटी को वापस देने के लक्ष्य बनाया। लोगों ने हमारा साथ दिया, उन्होने हमसे अपनी फसलों के लिए पैसे नहीं मांगें, इस तरह से वे सभी लोग उनति के निवेशक हैं। हम किसानों को हफ्ते में दो बार किसानों को पेमेंट कर देते हैं, इसी के साथ किसानों के सम्मान का भी पूरा ख्याल रखा जाता है।”