श्रमिकों को दुर्दशा की दुश्वारियों से बचाने का ‘योगी मॉडल’
कोविड-19 की दुर्धर विभीषिका के दौरान असहाय भीड़ की शक्ल में अंतहीन सड़क पर 'दुर्भाग्य' को अपने थके-हारे कदमों में बांधे, विभिन्न प्रांतों से अपने गृह जनपदों की तरफ पलायन करते प्रवासी श्रमिकों और कामगारों की दुर्दशा को हम सभी ने समाचार चैनलों पर अत्यंत भावपूर्ण वायस ओवरों के साथ देखा है।
थकान से निढाल बच्चों को गोद में लिए मां की कातर तस्वीरों को देख कर जनमानस की आखों की कोरें कई बार नम हुई हैं। ऐसे त्रासदीपूर्ण समय में प्रवासी श्रमिकों की पीड़ा का परिहास उड़ाते प्रियंका गांधी वाड्रा के सियासी ड्रामा ‘बस नाट्य मंचन’ द्वारा लोकतंत्र को लज्जित करते हुए भी हमने देखा है। लेकिन गुजरते समय के साथ यह सभी मंजर एक दिन वक्त के तहखाने में दफ्न हो जायेंगे लेकिन याद रह जाएगा तो एक "कर्मयोगी" के व्यथित और द्रवित मन द्वारा श्रमिक उत्थान हेतु किया गया वह सुविचारित एवं संवेदनशील कार्य, जो ‘उत्तर प्रदेश कामगार और श्रमिक (सेवायोजन एवं रोजगार) आयोग’ की शक्ल में वजूद में आया।
निश्चित रूप से अपने ही देश में बलात् निर्वासन के ‘पीड़ा-पथ’ पर प्रवासी श्रमिकों के लहूलुहान कदमों से रिसते रक्त और छिन्न-भिन्न सामाजिक सुरक्षा तथा आहत स्वाभिमान के निर्झर आंसुओं ने भावुक ‘योगी’ को ‘उत्तर प्रदेश कामगार और श्रमिक (सेवायोजन एवं रोजगार) आयोग’ के गठन की पटकथा को लिखने के लिए प्रेरित किया होगा।
विदित हो कि कोविड-19 जैसे आपदाकाल और सामान्य दिनों में श्रमिकों और कामगारों के हितों के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए, आकार ले चुका यह आयोग, “श्रम के सम्मान’’ की मुनादी है।
यह आयोग, श्रमिकों एवं कामगारों के सेवायोजन, रोजगार, स्किल मैपिंग और कौशल विकास के क्षेत्र में आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखेगा। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई उत्तर प्रदेश कामगार और श्रमिक (सेवायोजन एवं रोजगार) आयोग की प्रथम बैठक में प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में एक समिति गठित किए जाने का निर्णय लिया गया है, जो शीघ्र ही कामगारों/श्रमिकों की सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा के सम्बन्ध में सुझाव प्रस्तुत करेगी।
गौरतलब है कि लगभग 35 लाख से अधिक प्रवासी श्रमिक एवं कामगार यूपी वापस लौट चुके हैं और यह क्रम अनवरत जारी है। मतलब कि अभी अन्य प्रांतों में उत्तर प्रदेश के बहुत सारे श्रमिक निवासरत हैं। सवाल उठता है कि आखिर दूसरे सूबे में उ.प्र. के इतने नागरिक क्यों रह रहे हैं। इसका जबाव देते हुए समाजशास्त्री राजेश भदौरिया कहते हैं कि आजीविका की तलाश के लिए ही अपने शहर, अपने गांव को छोड़ कर इन लाखों लोगों को परदेस जाने के लिए विवश होना पड़ा है। यहीं से प्रवासी शब्द उनकी पहचान के साथ जुड़ गया। यदि प्रदेश में ही रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित हो जाती तो अधिकांश लोग प्रवासी नहीं बनते।
‘परदेस’ में सब कुछ पराया होता है। खासकर संकटकाल में ‘परदेसी’ शब्द अपने भयावह अर्थों में मुखरित होता है। कोविड-19 के संकट ने प्रवासी श्रमिकों एवं कामगारों को 'परदेस' के परायेपन की कभी न भूलने वाली अनुभूतियों से दो-चार कराया है। असुरक्षा बोध की सिहरन, सकुशल उत्तर प्रदेश वापस पहुंचे श्रमिकों के बयानों में महसूस की जा सकती है। ‘उत्तर प्रदेश कामगार और श्रमिक (सेवायोजन एवं रोजगार) आयोग’ के गठन का मंतव्य, आजीविका की तलाश में भटकते हुए, प्रदेश के बाहर पहुंचे थके-हारे कदमों को, “असुरक्षा” के कांटों की चुभन से बचाने की कोशिश है। उनकी आजीविका की तलाश की ‘भटकन’ को समाप्त करने का संकल्प है। श्रमिकों एवं कामगारों के असुरक्षा बोध के मर्दन का दस्तावेज है।
उ.प्र. की सरहद में सुरक्षित वापस लौटे श्रमिकों-कामगारों में लगभग 34 लाख कामगारों/श्रमिकों की स्किल मैपिंग का कार्य बताता है कि योगी किसी भी कीमत पर 'भूख के अर्थशास्त्र' को यूपी के भूगोल में समेट देना चाहते हैं। इसी के क्रम में श्रम कानूनों को शिथिल कर उन्होने स्पष्ट संदेश दिया है कि उत्तर प्रदेश व्यापार के लिए खुला है। यही नहीं, नए कृषि सुधारों के माध्यम से उ.प्र. सरकार ने ‘कृषक उत्थान’ की बहुआयामी संभावनाओं की भी रूपरेखा तैयार कर दी है।
इन सारे प्रयासों के मूल में योगी द्वारा अपने सभी प्रवासी श्रमिकों को ‘परदेस’ में किसी भी प्रकार की दुर्गति से बचाने की कोशिश है। तभी आयोग के गठन के निर्णय के समय उन्होंने कहा कि, 'लॉकाडाउन के दौरान यूपी के प्रवासी श्रमिकों और कामगारों की जैसी दुर्गति हुई है, उनके साथ जिस प्रकार का दुर्व्यवहार हुआ है, यह चिंता का विषय है। लौटते मजदूर यूपी की संपदा हैं और प्रदेश सरकार ऐसी कार्ययोजना पर काम कर रही है कि उन्हें फिर प्रदेश छोड़कर न जाना पड़े।' मुख्यमंत्री के इस ऐलान में ‘एक अभिभावक का अधिकार और एक प्रशासक का आत्मविश्वास’ परिलक्षित होता है।
यहां एक बात और काबिल-ए-गौर है कि विगत सात दशकों में मुल्क के कई सूबों और केंद्रीय सरकारों में भी सहयोग करने वाली श्रमिक हितों के संरक्षण का दम भरती पार्टियों की हुकूमते रहीं। सरकारे बदलती रहीं, उनके चेहरे बदलते रहे लेकिन नहीं बदले तो श्रमिकों और कामगारों के हालात। विस्मय होता है कि किसी सरकार ने श्रमिकों/कामगारों की सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु संस्थागत स्वरूप में विचार ही नहीं किया। और सन् 2020 में एक तापस वेषधारी योगी, श्रमिक हितों के बहुआयामी संरक्षण के लिए बाकायदा एक आयोग गठित कर देता है। शायद यही राजनीतिक संस्कारों का अंतर है।
श्रमिकों की जीवन-स्थिति के गुणात्मक सुधार में ‘उत्तर प्रदेश कामगार और श्रमिक (सेवायोजन एवं रोजगार) आयोग’ की निर्णायक भूमिका मानी जाएगी। विभिन्न औद्योगिक इकाइयों, सेवा क्षेत्र, निर्माण प्रतिष्ठानों एवं अन्य राज्यों, जहां पर श्रमिकों का योजन हो रहा है, वहां श्रमिकों के पक्ष में न्यूनतम एवं आधारभूत सुविधाएं जैसे-आवास, सामाजिक सुरक्षा, बीमा सम्बन्धी उपादानों आदि की व्यवस्था भी आयोग द्वारा सुनिश्चित की जाएगी।
सामाजिक, आर्थिक व विधिक आयामों के दृष्टिगत, श्रमिकों का जो डेटा बेस तैयार किया जा रहा है, वह उ.प्र. सरकार की निवासी और प्रवासी श्रमिकों व कामगारों की अपने तथा अन्य प्रांतों में सोशल सिक्योरिटी को सुनिश्चित करने की राह में एक पड़ाव है। ज्ञातव्य है कि आयोग के तहत एकीकृत पोर्टल का गठन किया गया है, जिसमें प्रदेश के प्रवासी व निवासी कामगारों/श्रमिकों की क्षमता और कौशल के सम्पूर्ण डाटा की एंट्री की जाएगी और जनपदों में स्थित सेवायोजन कार्यालयों के माध्यम से इसे अपडेट करने का कार्य सुनिश्चित किया जायेगा।
उल्लेखनीय है कि श्रमिक हितों के लिए प्रयत्नशील योगी सरकार के प्रयासों का ही सुफल है कि प्रदेश सरकार का औद्योगिक संगठनों के साथ समझौता पत्र हस्ताक्षरित हुआ है जिसके द्वारा साढ़े ग्यारह लाख से अधिक प्रवासी मजदूरों को रोजगार मिलेगा और साथ ही उनका पुनर्वास हो सकेगा।
दीगर है कि उ.प्र. के श्रमिकों की कर्मठता एवं समर्पण के कारण अन्य प्रांतों की औद्योगिक इकाइयों की निर्भरता, यहां के श्रमिकों व कामगारों पर काफी हद तक है। लिहाजा बहुत संभावना है कि हालात के सामान्य होने पर श्रमिकों को पुनः वापस बुलाने का प्रयास किया जाए। और वापस जाने में कोई दोष भी नहीं है। किंतु अब, उनके प्रवास के साथ ‘उत्तर प्रदेश कामगार और श्रमिक (सेवायोजन एवं रोजगार) आयोग’ का संबल भी होगा। जिससे किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में ‘परदेस’ में भी कोई श्रमिक स्वयं को असहाय न महसूस करे।
दीगर है कि विकास के जिस गौरवशाली पथ पर सरपट कुलांचे भरते हुए महाराष्ट्र, पंजाब और दक्षिण के राज्य, वैभव की नई मीनारें खड़ी कर रहे हैं, जब उन पथों के शिल्पकारों को ही दर-बदर भटकने की असहनीय पीड़ा से गुजरना पड़े, तब उनकी रहनुमाई करना मानवता और लोकतंत्र की जिम्मेदारी बन जाती है।
सच्चे अर्थों में, योगी आदित्यनाथ ने देश के पहले ‘उत्तर प्रदेश कामगार और श्रमिक (सेवायोजन एवं रोजगार) आयोग’ का गठन कर, लोकतंत्र के इकबाल को बुलंदी अता की है। असहाय के ‘सहाय’ बनने की कोशिश की है। यह कोशिश ‘श्रमेव जयते’ उद्घोष को सही अर्थों में चरितार्थ करने का सुफल है।