बेटियों को सेल्फ डिफेंस का पाठ पढ़ा रही है उषा विश्वकर्मा की रेड ब्रिगेड
दिल्ली के निर्भया कांड के बाद से लखनऊ की उषा विश्वकर्मा की रेड ब्रिगेड देश-दुनिया की लड़कियों को लगातार सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दे रही है। अमिताभ बच्चन और प्रियंका चोपड़ा भी उनके साहस के कायल हैं। वह यूपी के मुख्यमंत्री से सम्मानित होने के साथ ही तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की सम्मानित अतिथि रह चुकी हैं।
लखनऊ (उ.प्र.) में रेड ब्रिगेड की संस्थापिका उषा विश्वकर्मा पिछले कई वर्षों से पूरे देश में महिला सुरक्षा की मुहिम चला रही हैं। वह मूल रूप से बस्ती जिले की रहने वाली हैं। उनके पिता कारपेंटर और मां गृहिणी हैं। वह अपने पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। जब वह पांच साल की थीं, तब उनके पिता रोजगार की तलाश में लखनऊ चले गए और वहां की एक झुग्गी में परिवार के साथ गुजर-बसर करने लगे। इस तरह उषा का बचपन अभावों में बीता।
सरकारी स्कूल में पढ़ाई के वक़्त उनके पास पूरी किताबें तक नहीं होती थीं। किसी तरह उन्होंने बारहवीं तक की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद वह झुग्गियों के बच्चों को पढ़ाने लगीं। बाद में एक अन्य स्कूल में शिक्षण की कमाई से माता-पिता की आर्थिक मदद के साथ ही अपने भाई-बहनों की पढ़ाई का खर्च भी उठाने लगीं। इस बीच उन्होंने कानपुर विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन भी कर लिया।
उषा बताती हैं कि उन्होंने इसलिए रेड ब्रिगेड बनाई ताकि कोई भी लड़की बेचारी न कहलाए। दरअसल, वर्ष 2006 में एक दिन स्कूल के सुनसान माहौल का फायदा उठाकर एक शिक्षक ने उषा विश्वकर्मा के साथ दुराचार का प्रयास किया था। वह उसके चंगुल से बच तो निकलीं लेकिन उन्हे काफी चोटें आईं। इससे उन्हें गहरा मानसिक आघात लगा। वह एक साल तक मेंटल ट्रॉमा सेंटर में भर्ती रहीं। छह महीने बाद उन्होंने अपनी एक सहेली को आपबीती बताई तो उसने वह वाकया उषा के माता-पिता को बताया। पिता ने स्कूल में पता किया तो वह शिक्षक नौकरी छोड़ चुका था। ऐसे में उन्हें मलाल रहा कि आरोपी पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। उसके बाद उन्होंने शहर की लड़कियों के सेल्फ डिफेंस ट्रेनिंग का आगाज किया।
लखनऊ में हर साल 16 से 29 दिसंबर तक दामिनी-निर्भया की याद में रेड ब्रिगेड द्वारा शाम 6 से रात 10 बजे तक 'रात का उजाला अभियान' चलाया जाता है। रेड ब्रिगेड टीम ने ‘युद्ध 936 के विरुद्ध’ थीम पर नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया। पिछले साल रेड ब्रिगेड ने दिसंबर में प्रतिदिन 936 दामिनी की याद में 936 दीप जलाकर महिला हिंसा पर तत्काल रोक का आह्वान किया। इस दौरान प्रशासन की मदद से गांवों की लड़कियों को खास तौर से अभियान में शामिल किया गया। रेड ब्रिगेड के इस अभियान में पिछले साल दामिनी के माता-पिता भी शामिल हुए थे और इसमें वर्ल्ड रिकॉर्डर ,चाइल्ड लाइन एम्बेसडर अंकिता बाजपाई मार्मिक नृत्य की प्रस्तुति दे चुकी हैं। हरैस्मेंट का शिकार होने वाली लड़कियों को फिर से उठ खड़े होने का जज्बा देने वाली केबीसी में साढ़े 12 लाख का इनाम जीत चुकीं उषा विश्वकर्मा के साहस के कायल केबीसी-8 के मंच पर अमिताभ बच्चन और प्रियंका चोपड़ा भी हो चुकी हैं।
उषा विश्वकर्मा जब वर्ष 2010 में लखनऊ में लैंगिक समानता के मुद्दे पर एक कार्यशाला कर रही थीं, उसमें शामिल 55 लड़कियों में से 53 ने स्वीकार किया कि वे छेड़छाड़, बैड टच, रेप या इसकी कोशिश जैसी वारदातों का सामना कर चुकी हैं। उसके बाद 15 लड़कियों ने मिलकर एक ग्रुप बनाया। साथ ही आपसी सहमति से लाल और काले रंग का ड्रेस कोड बना, क्योंकि लाल संघर्ष का और काला रंग विरोध का प्रतीक होता है। जब ग्रुप की लड़कियां ड्रेस कोड में एक साथ शहर में निकलने लगीं, आवारा लड़के फब्तियां कसते कि वो देखो रेड ब्रिगेड जा रही है। उसके बाद उषा विश्वकर्मा ने अपने ग्रुप का नाम ही 'रेड ब्रिगेड' रख दिया। ग्रुप लड़कियों ने एक बार छेड़छाड़ कर रहे लड़कों को दौड़ा दौड़ा कर पीटा। उसके बाद से छेड़छाड़ की वारदातें शहर में थमने लगीं।
दिसंबर, 2017 में रेड ब्रिगेड ट्रस्ट की ओर से निर्भया ज्योति ट्रस्ट नई दिल्ली, महिला समाख्या उत्तर प्रदेश और महिला-बाल कल्याण विभाग के साथ 14 दिवसीय महिला अधिकार साइकिल यात्रा लखनऊ से निर्भया के गृह जनपद बलिया तक निकाली जा चुकी है। निर्भया के माता-पिता की मौजूदगी में यात्रा को कैबिनेट मंत्री प्रो. रीता बहुगुणा जोशी ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था। इस साल मार्च 2019 में रेड ब्रिगेड ने सरोजिनी नायडू की 140वीं जयंती पर 18 दिनों तक लखनऊ भर में 140 स्थानों पर ‘सैल्यूट टू सरोजिनी’ का आयोजन किया। हजरतगंज में नायडू की प्रतिमा के सामने सरोजिनी नायडू पार्क में पूरे दिन उपवास रखा।
यह अभियान प्रदेश के साठ से अधिक जिलों में चलाया गया। देश की 100 वीमेन अचीवर में शामिल उषा विश्वकर्मा को वर्ष 2013 में फिलिप्स गॉडफ्रे राष्ट्रीय बहादुरी पुरस्कार से और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा लक्ष्मी बाई अवार्ड से नवाज़ा गया। वर्ष 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के साथ उन्हे लंच का मौका मिला।
उषा विश्वकर्मा खासकर आजकल ग्रामीण क्षेत्रों में समाज की जहनियत बदलने की जरूरत महसूस करती हैं। इस कोशिश में उन्होंने पुरुषवादी मानसिकता को तोड़ते हुए न केवल अपनी छोटी तीन बहनों, बल्कि हर आम लड़की की आत्मरक्षा का रास्ता बनाया है। रेड बिग्रेड की सदस्य आफरीन बताती हैं कि उनके साथ बचपन में एक ऐसी घटना हुई थी, जिससे वह बहुत आहत थीं, मगर किसी से कुछ कह नहीं पाती थीं। जब वह उषा विश्वकर्मा के संपर्क में आईं तो उन्हें आपबीती सुनाई। उसके बाद वह रेड ब्रिगेड से जुड़ गईं। आज वह भी लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देने के साथ ही नुक्कड़ नाटकों के जरिए महिलाओं में जागरूरता फैला रही हैं।
उषा विश्वकर्मा अब तक राजधानी में 'सुरक्षित महिलाएं, सुरक्षित लखनऊ' अभियान चलाकर दस हजार से अधिक लड़कियों को 'निःशस्त्र' नाम से सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दे चुकी हैं। इसमें लड़कों का भी सहयोग लिया। अब फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के विशेषज्ञ भी उनके साथ मिलकर काम करने लगे हैं। वह स्कूल-कॉलेजों में जाकर लड़कियों के लिए वर्कशॉप भी कर रही हैं।
उषा विश्वकर्मा चाहती हैं कि सभी प्रचार माध्यम इस दिशा में समाज को जागरूक करें। महिला सुरक्षा कानूनों का कड़ाई से पालन हो। हेल्प लाइन को ठीक से संचालित किया जाए। महिला हिंसा के अभियुक्तों पर त्वरित कार्रवाई हो। पीड़िताओं और उनके परिजनों को समय से न्याय मिले। हर स्कूल में लड़कियों को अनिवार्य रूप से सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दी जाए। मासूम बच्चियों के शोषण के खिलाफ सख्त और प्रभावी कानून बने। सिर्फ एक दिन महिला दिवस मना कर पुरुषवादी मानसिकता से समाज मुक्त नहीं हो सकता, इसके लिए सरकारी स्तर पर साल भर लगातार लोगों को जागरूक करने की जरूरत है।