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कोरोना वायरस को खत्म करने वाली वैक्सीन आने में अभी कितना समय है? हालांकि अमेरिका ने शुरू कर दिया है ये काम

कोरोना वायरस ने दुनिया भर में अपना कहर बरपाया हुआ है। वैज्ञानिकों ने इससे निपटने के लिए वैक्सीन के निर्माण का काम तो शुरू कर दिया है, लेकिन आम लोगों तक इसके पहुँचने में अभी काफी समय है।

कोरोना वायरस से निपटने के लिए वैक्सीन के उपलब्ध होने में समय लग सकता है।

कोरोना वायरस से निपटने के लिए वैक्सीन के उपलब्ध होने में समय लग सकता है।



कोरोना वायरस से इस समय दुनिया के लगभग सभी देश प्रभावित हैं। चीन, इटली और स्पेन में इस वायरस का सर्वाधिक प्रभाव देखने को मिला है। भारत में भी कोरोना वायरस के प्रभावित लोगों की संख्या 110 के पार जा चुकी है, जबकि देश में कोरोना वायरस के चलते होने वाली मौतों का सिलसिला भी शुरू ही चुका है, लेकिन इस महामारी को रोका कैसे जाएगा, इस संबंध में कोई पुख्ता जानकारी सामने नहीं है। हालांकि दुनिया भर में लोगों को सफाई रखने और इससे बचने के लिए ऐतिहात बरतने के लिए कहा जा रहा है।


कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अभी कोई वैक्सीन मौजूद नहीं है। गौरतलब है किे वैज्ञानिकों ने इस पर काम शुरू कर दिया है, लेकिन इस वैक्सीन के निर्माण और आम लोगों तक पहुँचने में कितना समय लगेगा, उसे आप ऐसे समझ सकते हैं।

शुरू हुआ काम

शोधकर्ताओं ने अपना काम शुरू कर दिया है। कुछ फिलहाल के लिए अस्थाई वैक्सीन पर भी कम कर रहे हैं, जिससे अधिक प्रभावित लोगों को कुछ महीनों के लिए राहत दिलाई जा सके और इस बीच अन्य वैक्सीन को विकसित किया जा सके। उपचार की बात करें तो शोधकर्ता कालेट्रा ड्रग से भी उम्मीद लगा रहे हैं। कालेट्रा का निर्माण दो तरह के एंटी एचआईवी ड्रग और रेमेडिसवीर के संयोजन से किया गया है। इसका उपयोग कुछ साल पहले इबोला के लिए भी किया गया था। चीन में, डॉक्टर क्लोरोक्वीन पर भी काम कर रहे हैं। यह एक एक मलेरिया-रोधी दवा है, इसके साथ ही यह सस्ती और आसानी से उपलब्ध है, हालांकि इनके परिणाम मार्च के अंत तक आने की उम्मीद है।


कोरोना वायरस साल 2002 में चीन में फैले सार्स (सिवियर एक्यूट रेसपिरेटरी सिंड्रोम) के काफी समान है। सार्स के चलते दुनिया भर में 775 मौतें हुई थीं, जबकि 82 सौ से अधिक लोग इससे प्रभावित हुए थे।



लग जाएगा समय

वैक्सीन को विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों ने डेढ़ से दो साल का समय लगने की बात कही है, हालांकि किसी वैक्सीन के निर्माण में कई चरणों का पालन करना होता है, इसके चलते इस प्रक्रिया में लगने वाला समय भी अधिक ही होता है।


शुरुआती चरण में वैक्सीन का ट्रायल किया जाएगा और फिर प्रभावित क्षेत्रों में जाकर बड़ी संख्या में लोगों को टीका लगाया जाएगा। इस प्रक्रिया में ही 8 से 10 महीनों का समय लग जाएगा। इसके बाद भी वैक्सीन की टेस्टिंग और बड़ी संख्या में लोगों के बीच होगी और इसके बाद ही इसे स्वीकृति मिल सकेगी। इन सब चरणों को पूरा करने में लगने वाला समय डेढ़ साल के करीब ही है। गौरतलब है कि ऐसी जटिल बीमारियों या महामारी से निपटने वाली किसी वैक्सीन को विकसित करने में पाँच साल से भी अधिक समय लग जाता है, इस लिहाज से वैज्ञानिकों ने कोरोना से निपटने के लिए वैक्सीन विकसित करने के लिए जो अनुमानित समयावधि बताई है, वो कम ही है।

अमेरिका में शुरू हुआ टेस्ट

अमेरिका में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ट्रायल इस टेस्ट को फंड कर रहा है, जो सिएटल में कैसर परमानेंट वाशिंगटन हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट में हो रहा है। अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार अभी इसकी घोषणा सार्वजनिक तौर पर नहीं हुई है। इस परीक्षण के लिए एक 45 वर्षीय युवा को चुना गया है, हालांकि इस टेस्ट का मुख्य उद्देश्य वैक्सीन से होने वाले साइड इफेक्ट का पता लगाना है।