रंजीत रामचंद्रन: चौकीदार, जो बना IIM रांची में प्रोफेसर
रामचंद्रन के संघर्ष की कहानी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है। शनिवार को रामचंद्रन ने केरल के अपने घर की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिखा, 'आईआईएम के प्रोफेसर का जन्म इसी घर में हुआ है।'
कौन कहता है कि आसमां में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों...! महान कवि दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाया है केरल के रंजीत रामचंद्रन ने।
एक चौकीदार (पहरेदार) से आईआईटी और अब आईआईएम-रांची में सहायक प्रोफेसर बनने तक, 28 वर्षीय रंजीत रामचंद्रन का सफर काफी संघर्ष भरा रहा है। उनकी मेहनत, लगन, हौसले और सफलता की कहानी अपने जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ने के लिए कई लोगों को प्रेरित करती है।
हाल ही में बीते शनिवार को रामचंद्रन ने फेसबुक पर एक झोपड़ी की तस्वीर के साथ अपनी कहानी साझा करते हुए कैप्शन में लिखा, "इस आईआईएम प्रोफेसर का जन्म यहां हुआ था।"
उनकी इस वायरल पोस्ट को अब तक 39,000+ लाइक्स, 7000+ कमेंट्स और 11000+ शेयर मिले हैं।
केरल के वित्त मंत्री टी एम थॉमस इसाक ने भी रामचंद्रन को बधाई देते हुए कहा कि वह सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
अमर उजाला की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रामचंद्रन कासरगोड के पनाथुर में एक बीएसएनएल टेलीफोन एक्सचेंज में रात को चौकीदार के रूप में काम कर रहे थे, जबकि उन्होंने जिले के सेंट पियस एक्स कॉलेज से अर्थशास्त्र की डिग्री हासिल की।
उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, "मैंने दिन के समय कॉलेज में पढ़ाई की और रात में टेलीफोन एक्सचेंज में काम किया।"
न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने कहा, "स्कूली शिक्षा के बाद, मैंने अर्थशास्त्र में बीए करने के लिए राजापुरम में सेंट पायस एक्स कॉलेज में प्रवेश लिया। परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए मैं पढ़ाई छोड़ने का विचार कर रहा था, लेकिन तभी मैंने पनाथुर में बीएसएनएल टेलीफोन एक्सचेंज में रात के चौकीदार की नौकरी का विज्ञापन देखा। मैंने आवेदन किया है, और 'सौभाग्य से' मुझे काम मिल गया है।"
उन्होंने आगे कहा, "मैंने अपनी ग्रेजुएशन (ऑनर्स) के दिनों में पांच साल तक चौकीदार के रूप में काम किया।
हालांकि शुरुआत में उनका वेतन 3,500 रुपये प्रति माह था, लेकिन पांचवें वर्ष में यह बढ़कर 8,000 रुपये प्रति माह हो गया। उन्होंने कहा, "मैंने दिन में पढ़ाई की और रात में काम किया।"
ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी होने के बाद, वह आईआईटी-मद्रास में आ गए, जहाँ उन्हें पढ़ाई करने में मुश्किल हो रही थी क्योंकि वे केवल मलयालम जानते थे। निराश होकर, उन्होंने पीएचडी प्रोग्राम छोड़ने का फैसला किया, लेकिन उनके मार्गदर्शक डॉ. सुभाष ने ऐसा नहीं करने के लिए उन्हें मना लिया।
"मैंने अपने सपने को पूरा करने के लिए संघर्ष करने का फैसला किया," उन्होंने लिखा।
आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने सफलता का स्वाद चखते हुए पिछले साल अपनी डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। पिछले दो महीनों से, वह क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु में एक सहायक प्रोफेसर थे।
उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि पोस्ट वायरल हो जाएगी। मैंने अपने जीवन की कहानी साझा की, उम्मीद है कि यह दूसरे लोगों को प्रेरित करेगी। मैं चाहता हूं कि हर कोई अच्छे सपने देखे और अपने सपनों के लिए संघर्ष करे। मैं चाहता हूं कि दूसरे लोग भी इससे प्रेरित हों और सफलता पाएं।"
रामचंद्रन ने अपनी पोस्ट में बताया कि वित्तीय कठिनाइयों के कारण उन्होंने लगभग अपनी स्कूली शिक्षा छोड़ दी थी। उनके पिता एक दर्जी और मां, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत एक दिहाड़ी मजदूर हैं।
वहीं, वित्त मंत्री ने अपनी पोस्ट में, रामचंद्रन की प्रशंसा करते हुए कहा, "जिस पल उन्हें लगा कि वह हार गए हैं, उन्होंने अपने जीवन को बदल दिया और सफलता हासिल की और यह हर एक के लिए प्रेरणा है। हमारे सामने के आर नारायणन सहित महान हस्तियों की जीवन गाथाएँ हैं, जिन्होंने असाधारण इच्छाशक्ति के साथ सफलता प्राप्त की।”
उन्होंने आगे लिखा, "रंजीत जैसे लोगों का जीवन, जो विभिन्न संकटों के कारण हतोत्साहित होने से इनकार करते हैं और शिक्षा का उपयोग सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए एक हथियार के रूप में करते हैं, सभी के लिए प्रेरणा हैं।”