इस राज्य की सरकार खराब पड़े हैंडपंप से जल स्रोतों को कर रही पुनर्जीवित
परियोजना के तकनीकी सलाहकार हर्षपति उनियाल ने बताया कि हैंडपंप के इर्द-गिर्द एक मीटर व्यास का गड्ढा बना कर उसमें घर की छत का पानी जमा किया जा रहा है.
उत्तराखंड में सूख रहे जल स्रोतों को खराब पड़े हैंडपंप (चापाकल) से पुनर्जीवित करने की कवायद शुरू की गयी है. केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा स्वीकृत एक पायलट परियोजना के तहत राज्य के पौड़ी जिले में घरों की छतों पर जमा होने वाले बारिश के पानी से जल स्रोतों को पुनर्जीवित किया जा रहा है. इस कार्य में खराब पड़े 13 हैंडपंप का उपयोग किया जा रहा.
परियोजना के तकनीकी सलाहकार हर्षपति उनियाल ने बताया कि हैंडपंप के इर्द-गिर्द एक मीटर व्यास का गड्ढा बना कर उसमें घर की छत का पानी जमा किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इन गड्ढों में कंकड़, चारकोल और रेत का एक फिल्टर बनाया गया है जिससे पानी छनकर नीचे के जल स्रोत के जलीय चट्टानी परत (धरती की सतह के नीचे चट्टानों की एक परत, जहां भूजल संचित रहता है) तक पहुंच जाता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे इन क्षेत्रों में खासकर गर्मियों के मौसम में होने वाली पानी की किल्लत दूर होगी. उनियाल ने बताया कि छतों का पानी एक पाइप द्वारा हैंडपंप के गड्ढों में पहुंचाया जाता है. उन्होंने कहा, ‘‘विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों से इस बात की पुष्टि हुई है कि एक हैंडपंप से 1.08 लाख लीटर पानी हर साल एक्यूफर्स (जलीय चट्टानी परत) में संचित किया जा सकता है. अच्छी बात यह है कि इसमें वाष्पीकरण या अन्य कारणों से पानी कम नहीं होता और सारा पानी एक्यूफर्स में चला जाता है.’’
नवंबर 2000 में उत्तराखंड का गठन होने के बाद से प्रदेश में उत्तराखंड जल संस्थान द्वारा 10,162 हैंडपंप लगाए गए हैं, जिनमें से दो से ढाई हजार हैंडपंप जलस्रोतों के सूख जाने, अनियोजित परियोजनाओं सहित अन्य कारणों से खराब हो गए हैं. उनियाल ने कहा कि चालू हालत वाले हैंडपंप में भी इस तकनीक का उपयोग करके पानी की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है.
इससे पहले, गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) हैस्को के संस्थापक पद्मभूषण अनिल जोशी द्वारा ‘आइसोटोप’ तकनीक का उपयोग कर और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) की सहायता से जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने की कवायद की गयी थी. उन्होंने भी इस परियोजना की सराहना करते हुए उम्मीद जताई कि इससे लोगों को जल की कमी संबंधी समस्याएं दूर होंगी.
वर्ष 2018 की कैग रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड देश के उन प्रदेशों में आता है, जहां 50 फीसदी से भी कम जनसंख्या के लिए साफ और उचित मात्रा में पीने का पानी उपलब्ध हो. पानी की कमी के साथ ही प्रदेश भूजल के अत्यधिक दोहन, वनों की कटाई और सूखते हुए झरनों और जलाशयों की समस्याओं से भी जूझ रहा है.
Edited by Vishal Jaiswal