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वीकली रिकैप: पढ़ें इस हफ्ते की टॉप स्टोरीज़!

यहाँ आप इस हफ्ते प्रकाशित हुई कुछ बेहतरीन स्टोरीज़ को संक्षेप में पढ़ सकते हैं।

वीकली रिकैप: पढ़ें इस हफ्ते की टॉप स्टोरीज़!

Sunday March 20, 2022 , 10 min Read

इस हफ्ते हमने कई प्रेरक और रोचक कहानियाँ प्रकाशित की हैं, उनमें से कुछ को हम यहाँ आपके सामने संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनके साथ दिये गए लिंक पर क्लिक कर आप उन्हें विस्तार से भी पढ़ सकते हैं।

रूरल कॉमर्स स्टार्टअप VilCart की कहानी

प्रसन्ना कुमार एक सीए हैं जिन्होंने फाइनेंशियल सर्विस इंडस्ट्री में करीब एक दशक बिताया है। हालांकि उनकी अंतरात्मा हमेशा उन्हें आंत्रप्रेन्योरशिप की ओर कदम बढ़ाने और ग्रामीण भारत के लिए कुछ बनाने के लिए कहती रहती थी।

VilCart

स्टार्टअप इकोसिस्टम से लेकर भारतीय कारोबारी जगत तक, हर दूसरी कंपनी केवल कस्टमर/ यूजर्स के नजरिए से नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत में मौजूद संभावित क्षमता का लाभ उठाने में सक्षम होने के लिए खुद को नए सिरे से मजबूत कर रही है।

जब प्रसन्ना कुमार कॉर्पोरेट फाइनेंस सेक्टर में 10 साल बिताने के बाद ड्राइंग बोर्ड में वापस गए, तो उन्हें पता था कि वह अपने युवावस्था के सह-यात्रियों यानी किराना मालिकों के लिए कुछ समाधान बनाना चाहते हैं।

उन्होंने 2018 में तीन अन्य को-फाउंडरों- महेश भट, राजशेखर और अमित एस माली के साथ मिलकर VilCartको लॉन्च किया। यह एक ईकॉमर्स प्लेटफॉर्म है, जिसका उद्देश्य किराना दुकानों के लिए रूरल लॉजिस्टिक को आसान बनाना है।महेश, राजशेखर और अमित सभी प्रसन्ना की तरह ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं, और व्यक्तिगत रूप से ग्रामीण भारत में दुकानों की कमियों के साक्षी रहे हैं।

ऐसे में जब प्रसन्ना ने उन्हें बताया कि उनके मन में क्या विचार चल रहा है, तो उन्होंने भी प्रसन्ना के साथ उनकी यात्रा में शामिल होने का फैसला किया।

विलकार्ट अपनी तरह का एक स्टार्टअप है, जो "ग्रामीण किराना स्टोरों के लिए पुल का काम कर रहा है।" यह मूल रूप से डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करके लॉजिस्टिक, सप्लाई चेन और फाइनेंस से जुड़े ग्रामीण रिटेल स्टोरों के दर्द-बिंदुओं को खत्म करता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह ग्रामीण भारत को उन उत्पादों और वस्तुओं तक पहुंचने में मदद करता है जो आमतौर पर किसी गैर-शहरी स्टोर पर नहीं मिलते हैं।

प्रसन्ना कहते हैं, " पिछले तीन से चार सालों में हमने विलकार्ट के निर्माण में जो महसूस किया है, वह यह है कि ग्रामीण भारत नए उत्पादों का अनुभव करना चाहता है, लेकिन वे आसानी से उपलब्ध नहीं हैं।"

विलकार्ट वही करता है जो किराना स्टोर के मालिक परंपरागत रूप से करते हैं - वस्तुओं की खरीदना और उन्हें गांवों में रिटेल बिक्री के लिए ले जाना। लेकिन यह इसे एक कदम आगे बढ़कर किराना दुकानों को उन सामानों को भी खरीदने में मदद करता है जो कि आम तौर पर मांग की कमी और ट्रांसपोर्टेशन में कठिनाई सहित कई कारणों से उनके पास नहीं होता है।

पापा चाहते थे बिटिया बने IAS अधिकारी, बेटी ने खड़ा किया करोड़ों का व्यापार

राजस्थान के भीलवाड़ा में जन्मी पूजा चौधरी को आज किसी खास पहचान की जरूरत नहीं है। उन्होंने अपनी काबिलियत और जुनून की दम पर करोड़ों रुपए का कारोबार करने वाली नामचीन कंपनी 'लावण्या द लेबल’ खड़ी कर समाज में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है।

पूजा चौधरी

पूजा चौधरी

पूजा चौधरी बचपन से ही क्रिएटिव और आगे बढ़कर काम की जिम्मेदारी संभालने वाली लड़कियों में से थीं। हालांकि, घर के कामकाजों में उनका कभी मन नहीं लगा। इस कारण वह बाहरी दुनिया में ज्यादा बिजी रहती थीं।

वह बताती हैं, “मुझे बचपन से ही ऐसा काम करना पसंद था जिसमें क्रिएटिविटी हो। जो चैलेनजिंग हो और जिसमें 9 से 5 वाला झंझट न हो। झंझट से मेरा मतलब किसी समयसीमा में बांधकर करने से है। पर ये जानकारी नहीं थी कि आखिर करना क्या है? जिससे मुझे और मेरे सपनों को किक मिल सके। खुद को एक्सप्लोर कर भविष्य को एक सही दिशा देने के लिए कई जगह भटकना पड़ा।”

कई कामों में हाथ आजमाने के बाद मुझे टेक्सटाइल इंडस्ट्री में सफलता हासिल हुई जो आज नाएका, पिंटरेस्ट जैसे कई जानेमाने ब्रांडस के साथ मिलकर काम कर रहा है।

साल 2018 में लावण्या द लेबल नाम की वेबसाइट बनाकर एक मशीन और एक कारीगर के साथ ही उन्होंने बिजनेस की शुरुआत तो कर ली। लेकिन, कुछ ही महीनों में पापा ने भीलवाड़ा वापस बुला लिया। यहां आकर कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा। वुमन इंडस्ट्री के नाम पर कुछ भी नहीं था। इसके साथ ही फिर से पूरा सेटअप बनाना मुश्किल हो रहा था। क्योंकि जयपुर के कारीगर भीलवाड़ा आना नहीं चाह रहे थे। तब बंगाल से कारीगर बुलाए गए, उन्हें वेतन दिया और फिर काम चालू हुआ।

पूजा के कंपनी का वार्षिक टर्नओवर आज करीब 15 करोड़ तक पहुंच चुका है।

एक साक्षात्कार में वह बताती हैं, “मैंने अपनी कंपनी की शुरुआत अपनी पॉकेट मनी यानी 5 हजार रुपए से की थी। हालांकि, एक छोटी सी कंपनी को ब्रांड बनाने में काफी समय लगा, लेकिन हमने अपना मुकाम जरुर हासिल कर लिया। अब कंपनी का 15 करोड़ का टर्नओवर है। आने वाली नई पीढ़ी से मैं यही कहूंगी की किसी भी काम को शुरू करने में मेहनत तो लगती ही है, लेकिन कभी हार न मानें।”

इंश्योरटेक स्पेस में इनोवेशन ला रही हैं विद्या श्रीधरन

विद्या श्रीधरन ने 2018 में सुवेंदु प्रस्टी, सौरभ भंडारी और चिरंत पाटिल के साथ Riskcovryकी स्थापना की।

Riskcovry

विद्या श्रीधरन ने 2018 में सुवेंदु प्रस्टी, सौरभ भंडारी और चिरंत पाटिल के साथ Riskcovryकी स्थापना की। उन्होंने इसकी स्थापना तब की जब उन्हें एहसास हुआ कि इंश्योरटेक इन्फ्रास्ट्रक्चर में एक गैप था। उन्होंने विभिन्न उद्योगों की कंपनियों को उनके अंतिम ग्राहकों को डिजिटल बीमा उत्पादों और सेवाओं की पेशकश करने में सक्षम बनाने के लिए रिस्ककोव्री की स्थापना की।

अपने 'इंश्योरेंस इन बॉक्स' उद्देश्य के माध्यम से, स्टार्टअप का दावा है कि यह अपने भागीदारों को उनके ग्राहकों को बीमा प्रदान करने के लिए सभी आवश्यक बिल्डिंग ब्लॉक ऑफर करता है। इनमें प्रमुख बीमाकर्ताओं द्वारा अंडरराइट किए गए प्रोडक्ट, कस्टमचर टचप्वाइंट को मैनेज करने की तकनीक और पॉलिसी जारी करना, मैनेजमेंट और दावों के लिए डिजिटल प्रक्रियाएं आदि शामिल हैं, वो भी एक एक ही छत के नीचे।

विद्या के पास Oracle, McAfee, TCS, Intuit और Unilever जैसी वैश्विक दिग्गजों में काम करने का एक समृद्ध अनुभव है। असल में, वह ओरेकल इंडिया में उसके सर्वर टेक्नोलॉजीज वर्टिकल के तहत भारत में पहली इंजीनियर के रूप में शामिल हुईं थीं।

Riskcovry बीमा स्टार्टअप को अपने एपीआई-इन-द-बॉक्स प्रोडक्ट के साथ घंटों के भीतर लाइव होने की अनुमति देता है, जबकि इसके बुनियादी ढांचे के भीतर नियामक और अनुपालन आवश्यकताओं, व्यावसायिक अंतर्दृष्टि और एआई को भी मैनेज करता है।

विद्या का दावा है, "हम अपने 'इंश्योरटेक इन्फ्रास्ट्रक्चर' के क्षेत्र में भारत में सबसे तेजी से बढ़ने वाले स्टार्टअप हैं, जिसे हम वन-स्टॉप-शॉप प्लेटफॉर्म के रूप में परिभाषित करते हैं जो किसी भी बीमा उत्पाद (रिटेल, माइक्रो ग्रुप पाउच आदि) और बीमाकर्ता (स्वास्थ्य, सामान्य, जीवन) में किसी भी व्यवसाय के लिए ओमनीचैनल डिस्ट्रीब्यूशन (DIY, असिस्टेड, एम्बेडेड) को सक्षम कर सकता है।"

ज़रूरतमंद बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने वाले बाबू भाई परमार

महज नौ वर्ष की उम्र में बाबू भाई ने अपने दोनों हाथ खो दिए थे, लेकिन पढ़ने और पढ़ाने के जुनून ने पहले स्वयं को शिक्षित किया और अब गरीब और ज़रूरतमंद बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने का काम कर रहे हैं।

बाबू भाई परमार

बाबू भाई परमार

गुजरात राज्य में अहमदाबाद शहर के किनारे बसे एक गांव में बाबू भाई परमार का जन्म हुआ। उनके पिता खेतों में काम करके परिवार का गुजरा करते थे, जिस कारण बाबू भाई ने बचपन से ही गरीबी को बेहद नजदीक से देखा था। एक दिन खेतों में पिता के साथ काम करते वक्त बिजली के नंगे तार छू जाने के बाद उन्होंने अपने दोनों हाथ खो दिए।

इस हादसे के बाद वह गांव के सरकारी स्कूल में जाने तो लगे थे लेकिन कुछ लिख पढ़ नहीं पाते थे। बाबू भाई ने अपने जीवन की बहुत सारे साल ऐसे ही गुजारे। धीरे-धीरे समय बीतता जा रहा था और यह बात उन्हें अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। अब तक बाबू भाई को अहसास हो चुका था कि अगर यूं ही बैठा रहा तो जिंदगी काफी कठिन हो जाएगी।

मीडिया से बात करते हुए बाबू भाई कहते हैं, "दोनों हाथ गंवाने के बाद, मैंने जान लिया था कि अगर पढूंगा नहीं तो एक इज्जत भरी जिंदगी नहीं जी पाऊंगा। इसलिए मैंने मुँह में पेन्सिल रखकर लिखना शुरू किया और धीरे धीरे मुझे इसी तरह लिखने की आदत हो गई।"

पढ़ाई के प्रति बाबू भाई की दिलचस्पी देखकर, पिता ने बाबू भाई का दाखिला शहर के एक दिव्यांग स्कूल में करवा दिया। बाबू भाई ने कड़ी मेहनत व लगन के दम पर पहले दसवीं तक की पढ़ाई पूरी की और फिर बाद में दो साल का टीचर ट्रेनिंग कोर्स भी किया। वह हमेशा से एक शिक्षक बनना चाहते थे।

टीचर की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद, उन्होंने अहमदाबाद में रहकर ही कुछ बच्चों को ट्यूशन देना शुरु किया। साल 2003 में उनकी शादी हुई और वह अहमदाबाद में ही रहने लगे। घर पर कुछ बच्चों को पढ़ाकर आमदनी नहीं हो रही थी, जिस कारण उनकी पत्नी ने भी काम करना शुरु कर दिया। वर्तमान में बाबू भाई लगभग 50 बच्चों को नि:शुल्क पढ़ा रहे हैं।

आइसक्रीम कंपनी वाडीलाल की कहानी

पुरानी आइसक्रीम कंपनी वाडीलाल ने अहमदाबाद में अपना पहला नाउ फॉर एवर कैफे आउटलेट 18-35 आयु वर्ग के मिलेनियल्स (युवाओं) से जुड़ने के लिए लॉन्च किया। आइसक्रीम-थीम वाली सजावट के साथ, कैफे अपने मेनू में 60 से अधिक इनोवेटिव डिशेस परोसता है।

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हम सभी अपने दोस्तों और परिवारों के साथ Vadilalआइसक्रीम का आनंद लेते हुए बड़े हुए हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि यह मेड इन इंडिया ब्रांड स्वतंत्र भारत से भी पुराना है। वाडीलाल की शुरुआत 1907 में रणछोड़लाल गांधी ने की थी जब आइसक्रीम हाथ से बनाई जाती थी। वाडीलाल की ब्रांड निदेशक आकांक्षा गांधी कहती हैं, ''उनका विजन शहर को कुछ ऐसा देना था, जिसका अनुभव पहले कभी नहीं हुआ था।''

1926 में, कंपनी ने आइसक्रीम बनाने वाली मशीनों को आयात करने का फैसला किया, और तब से वाडीलाल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इन वर्षों में, विरासत कंपनी ने संदी (sundaes), डॉली (dollies) बनाने तक विस्तार किया है, और फ्रोजन सब्जियों का निर्यात भी किया है। वर्तमान में, वाडीलाल कैफे-एक्सपीरियंस स्पेस में एंट्री करने के लिए ट्रैक पर है, और अहमदाबाद में इसके पहले आउटलेट को नाउ फॉर एवर कहा जाता है।

योरस्टोरी के साथ एक इंटरव्यू में, चौथी पीढ़ी की उद्यमी, आकांक्षा ने इस श्रेणी और कंपनी की भविष्य की योजनाओं की खोज के पीछे के इरादे को साझा किया।

आकांक्षा कहती हैं कि 2019 से, वाडीलाल का कैफे-एक्सपीरियंस प्रोजेक्ट- 18 से 35 वर्ष के बीच के ग्राहकों को टारगेट करने -की प्रगति पर था। हालांकि, 2020 में COVID-19 महामारी के बीच इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। मई 2021 में दूसरी लहर के ठीक बाद, वाडीलाल ने प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करने का फैसला किया और फरवरी 2022 में अहमदाबाद में पहला आउटलेट लॉन्च किया।

वाडीलाल अब अपने नाउ फॉर एवर आउटलेट्स के लिए एक ब्रांड रणनीति विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, और अगले साल के अंत तक तीन और आउटलेट्स तक विस्तार करने का लक्ष्य है।