शेयर बाजार में क्या होता है अपर-लोअर सर्किट, समझिए कब लगता है और कब हटता है
जब कभी बात सर्किट की आती है तो लोगों को कई तरह के कनफ्यूजन होते हैं. किसी शेयर में 5 फीसदी पर सर्किट लग जाता है तो किसी में 10 फीसदी तो किसी में 20 फीसदी. आइए समझते हैं ये कब और कैसे लगता है.
जब से अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग (Hindenburg Research Report) ने गौतम अडानी (Gautam Adani) पर आरोप लगाने वाली रिपोर्ट जारी की है, तब से अडानी ग्रुप की तमाम कंपनियों के शेयर गिर (Gautam Adani Share Fall) रहे हैं. यह गिरावट भी मामूली नहीं है, बल्कि आए दिन तमाम कंपनियों में लोअर सर्किट (Lower Circuit) लग रहे हैं. जब कभी बात सर्किट की आती है तो लोगों को कई तरह के कनफ्यूजन होते हैं. किसी शेयर में 5 फीसदी पर सर्किट लग जाता है तो किसी में 10 फीसदी तो किसी में 20 फीसदी. इसे अच्छे से समझने के लिए Yourstory ने बात की जीसीएल ब्रोकिंग प्राइवेट लिमिटेड के इक्विटी रिसर्च एनालिस्ट वैभव कौशिक से. आइए समझते हैं कब और कैसे लगता है सर्किट.
दो तरह के होते हैं सर्किट
किसी भी शेयर या शेयर बाजार में दो तरह के सर्किट लगते हैं. पहला है अपर सर्किट और दूसरा है लोअर सर्किट. यह सर्किट कितने फीसदी पर लगेगा यह एक्सचेंज की तरफ से कंपनी की वैल्यू और उसमें उतार-चढ़ाव को देखते हुए तय किया जाता है. जैसे निफ्टी और सेंसेक्स के लिए सर्किट 10 फीसदी पर लग जाता है. उसके बाद यह 15 फीसदी पर लगता है और फिर 20 फीसदी पर लगता है.
निफ्टी और सेंसेक्स में सर्किट लगने के क्या हैं नियम
अगर निफ्टी और सेंसेक्स की बात करें तो इसमें सर्किट लगने के बाद मार्केट बंद होने के कुछ नियम हैं. अगर 1 बजे से पहले बाजार 10 फीसदी चढ़ जाता है या टूट जाता है तो सर्किट लग जाएगा. इसके बाद बाजार में 1 घंटे बाद दोबारा ट्रेडिंग शुरू होगी. अगर 10 फीसदी का सर्किट 1-2.30 बजे के बीच लगा तो बाजार आधे घंटे के लिए बंद होगा. अगर 10 फीसदी का सर्किट 2.30 बजे के बाद लगा तो मार्केट चलता रहेगा.
दूसरा नियम 15 फीसदी के सर्किट के लिए है. इसके तहत अगर 1 बजे से पहले सर्किट लगा तो बाजार 2 घंटों के लिए बंद होगा. अगर सर्किट 1-2 बजे के बीच लगा तो बाजार 1 घंटे के लिए बंद होगा. 2 बजे के बाद सर्किट लगा तो मार्केट पूरे दिन के लिए बंद हो जाएगा. वहीं अगर बाजार में किसी भी वक्त 20 फीसदी का सर्किट लगता है तो बाजार उसी वक्त पूरे दिन के लिए बंद हो जाएगा.
कैश मार्केट के लिए क्या हैं सर्किट के नियम?
कैश मार्केट में निफ्टी और सेंसेक्स की तरह सर्किट फिक्स नहीं है. अलग-अलग स्टॉक के लिए यह अलग-अलग हो सकता है. यह सर्किट 5%, 10%, 15% और 20% हो सकता है. कुछ माइक्रोशेयर्स में तो यह 2 या 2.5% तक भी हो सकता है. इसमें जैसे ही कोई शेयर सर्किट लिमिट तक गिरा या चढ़ा तो उस शेयर में पूरे दिन के लिए कारोबार बंद हो जाता है. अडानी ग्रुप के अडानी ग्रीन एनर्जी, अडानी ट्रांसमिशन, अडानी टोटल गैस, अडानी पावर और अडानी विल्मर के साथ-साथ एनडीटीवी कैश मार्केट के शेयर हैं. यही वजह है कि इनमें 5 या 10 फीसदी का सर्किट लगते ही उसमें ट्रेडिंग बंद हो जाती है और फिर पूरे दिन नहीं चलती है.
फ्यूचर एंड ऑप्शन मार्केट के लिए क्या हैं सर्किट के नियम?
अगर बात फ्यूचर एंड ऑप्शन के शेयरों की करें तो इनमें अपर और लोअर दोनों की तरह के सर्किट कई बार लग सकते हैं. यही वजह है कि पिछले दिनों अडानी एंटरप्राइजेज का शेयर 35 फीसदी तक गिर गया था. उस वक्त बहुत सारे लोग इस बात को लेकर कनफ्यूज थे कि 20 फीसदी की गिरावट के बाद तो कारोबार ही बंद हो जाता है, तो फिर अडानी एंटरप्राइजेज इतना क्यों गिरा. इस गिरावट की वजह यही रही कि यह शेयर फ्यूचर एंड ऑप्शन मार्केट का है. अडानी ग्रुप के अडानी एंटरप्राइजेज, अडानी पोर्ट्स, अंबुजा सीमेंट और एसीसी जैसे शेयर फ्यूचर एंड ऑप्शन मार्केट के हैं.
जीरोधा से मिली जानकारी के अनुसार फ्यूचर एंड ऑप्शन वाली इक्विटी के लिए कोई तय सर्किट लिमिट नहीं होती है, जिस पर मार्केट रुक जाए. हालांकि, शेयर के 10 फीसदी चढ़ने या गिरने पर सर्किट हिट होता है और 15 मिनट के लिए ट्रेडिंग बंद होती है. इसे शेयर बाजार की भाषा में कूलिंग पीरियड कहा जाता है. इसके बाद सर्किट लिमिट को और बढ़ा दिया जाता है, जिसके बाद शेयर और नीचे गिर सकता है या ऊपर चढ़ सकता है. जब-जब शेयर गिरता है तो सर्किट लिमिट हिट होती जाती है और बढ़ती जाती है.
क्यों लगाया जाता है अपर या लोअर सर्किट?
शेयर बाजार में या किसी स्टॉक में अपर या लोअर सर्किट लगाने की वजह यह होती है कि भारी गिरावट को रोका जा सके. कई बार किसी कंपनी के बारे में कोई बड़ा खुलासा होता तो अक्सर उसके शेयर तेजी से गिरते जाते हैं. अक्सर अफवाहों से भी ऐसा हो जाता है और शेयर गिरते या चढ़ते चले जाते हैं. ऐसे में उस शेयर में बहुत ज्यादा तेजी या गिरावट ना आए, इसलिए सर्किट लगाया जाता है, ताकि निवेशकों को बहुत बड़ा नुकसान ना हो. भारत में अपर और लोअर सर्किट को सेबी ने 28 जून 2001 में लागू किया गया था. यह व्यवस्था लागू होने के बाद इसका पहली बार इस्तेमाल 17 मई 2004 को हुआ था.